क्या आप जानते हैं कि दुनिया में कहीं न कहीं एचआईवी/एड्स के कारण हर मिनट एक की मौत हो रही है। यह जानकारी यूनाइटेड नेशंस प्रोग्राम ऑन एचआईवी /एड्स (यूएनएड्स) द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘इन डेंजर: ग्लोबल एड्स अपडेट 2022’ में सामने आई है, जो कल जारी की गई थी।
रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए हैं उनके अनुसार अकेले 2021 में एचआईवी संक्रमण के 15 लाख नए मरीज सामने आए थे। वहीं 6.5 लाख लोगों को एड्स की वजह से असमय जान से हाथ धोना पड़ा था। इसका मतलब है कि इस बीमारी के हर रोज 4,000 नए मामले सामने सामने आ रहे हैं, जबकि हर रोज 1,800 लोगों की जान जा रही है।
इस बारे में यूएनएड्स की निदेशक मैरी माही का कहना है कि यह 4,000 लोग वो हैं जिनका हर रोज परीक्षण और उपचार शुरू करने की जरुरत है जिससे वो सहयोगियों को संक्रमित न कर सकें। इसका मतलब है कि इन लोगों को जीवनभर इलाज की जरुरत होगी।
धीमी पड़ गई है उपचार और रोकथाम की रफ्तार
वैश्विक स्तर पर इस बीमारी का बोझ कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2021 में करीब 3.8 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी के साथ जीने को मजबूर हैं। जिनमें से 70 फीसदी का इलाज हो रहा है।
यूएन एड्स के अनुसार, दुनिया भर में एचआईवी के नए मामलों में वर्ष 2020-2021 के दौरान केवल 3.6 फीसदी की गिरावट आई है, जोकि 2016 के बाद से नए एचआईवी संक्रमण में आई सबसे कम वार्षिक गिरावट है। ऐसे में यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि दुनिया भर में इसकी रोकथाम और उपचार की रफ्तार धीमी हो गई है जिसकी वजह से लाखों लोगों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है।
रिपोर्ट से पता चला है कि एचआईवी संक्रमण के नए मामले उन स्थानों पर भी बढ़ रहे हैं जहां पहले उनमें गिरावट आ रही थी, जोकि एक चिंता का विषय है। इन क्षेत्रों में एशिया और प्रशान्त जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं, जोकि दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्र हैं। इसी तरह अफ्रीका के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में, पहले के वर्षों में रोकथाम में आई तीव्र प्रगति 2021 में धीमी पड़ गई है।
इसी तरह अफ्रीका के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में, पहले के वर्षों में रोकथाम में आई तीव्र प्रगति 2021 में धीमी पड़ गई है। दुर्भाग्य देखिए की एचआईवी संक्रमण का पता लगाने, उसकी रोकथाम और उपचार के प्रभावी उपकरण होने के बावजूद भी यह महामारी कोविड-19 के दौरान फली-फूली है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 में करीब 1.2 लाख बच्चों की जान एचआईवी संक्रमण के कारण गई थी। यही नहीं 2020 में कम से कम 300,000 बच्चे एचआईवी संक्रमित हुए थे, जिसका मतलब है कि हर दो मिनट में एक बच्चा इस बीमारी की चपेट में आता है।
चिंता की बात तो यह है कि दुनिया में पांच में से दो एचआईवी संक्रमित बच्चे यह नहीं जानते कि वो इस बीमारी से ग्रस्त हैं। वहीं इनमें से केवल आधे बच्चों को एंटीरेट्रोवायरल उपचार (एआरटी) मिल पा रहा है। पिछले काफी समय से इन बच्चों को एचआईवी का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। इसमें उनके साथ किया जा रहा भेदभाव और लैंगिक असमानता भी शामिल है।
बड़ी बाधा हैं उपचार की बढ़ती लागत और कीमतें
इस बारे में मैरी माही का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2025 तक केवल एक वर्ष में एचआईवी संक्रमण के नए मामलों की संख्या 12 लाख हो जाएगी। इस बारे में मैरी माही का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2025 तक केवल एक वर्ष में एचआईवी संक्रमण के नए मामलों की संख्या 12 लाख हो जाएगी। मतलब यह आंकड़ा 2025 में अनुमानित 3.7 लाख मामलो की तुलना में लगभग तीन गुना हो जाएगा।
रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण अफ्रीकी देशों में पहले की तुलना में 2020-21 के दौरान करीब दोगुने ज्यादा मरीजों के लिए उपचार उपलब्ध है। मतलब की उपचार पाने वाले मरीजों की संख्या 8.2 लाख से 16 लाख पर पहुंच गई है।
हालांकि इसके बावजूद अब भी उपचार पाने वाले का आंकड़ा यूएन एड्स द्वारा 2025 के लिए निर्धारित एक करोड़ के लक्ष्य से काफी पीछे है। देखा जाए तो कोविड-19 के बाद से दुनिया भर में बढ़ती लागत और कीमतों की वजह से उपचार बहुत से लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है।
रिपोर्ट की मानें तो देशों के भीतर और उनके बीच मौजूद विषमताओं के कारण भी एचआईवी की रोकथाम के लिए किए जा रहे प्रयासों की प्रगति में गिरावट आई है। खुद इस बीमारी ने भी निर्बलता का दायरा और व्यापक कर दिया है। गौरतलब है कि 2021 में युवा महिलाओं और किशोरियों में हर दो मिनट में संक्रमण का एक नया मामला सामने आया है। यह स्पष्ट तौर पर मौजूद विषमता को दर्शाता है।
विशेष रूप से अफ्रीका में कोविड-19 के दौरान इसका प्रभाव पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट हो गया है। देखा जाए तो अफ्रीका में करोड़ों लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं। इतना ही नहीं किशोरियों के गर्भधारण करने के मामलों में भी वहां वृद्धि देखी गई है। साथ ही उनके खिलाफ हिंसा के मामले भी बढे हैं।
महामारी के चलते वहां एचआईवी उपचार और रोकथाम संबंधी सेवाएं भी बाधित हुई हैं। देखा जाए तो सब सहारा अफ्रीका में, लड़कों की तुलना में किशोर युवतियों के एचआईवी के चपेट में आने की सम्भावना तीन गुना ज्यादा है।
रिपोर्ट की माने तो दुनिया के सबसे कमजोर देशों पर बढ़ता ऋण एक बड़ी चुनौती है। 2021 में ऋण की एवज में जो धनराशि चुकाई गई थी थी वो संयुक्त रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर किए कुल खर्च का 171 फीसदी तक पहुंच गई थी। ऐसे में इसने एड्स से निपटने के लिए देशों की क्षमता को प्रभावित किया है।