एक समय था जब गली-मोहल्ले बच्चों की उछल-कूद के कोलाहल से गूंजा करते थे। कभी क्रिकेट तो कभी गिल्ली-डंडा जैसे खेल वातावरण को एक अलग ही ऊर्जा से भर देते थे। लेकिन समय बीता धीरे-धीरे इन खेलों की जगह मोबाइल फोन, कंप्यूटर और वीडियो गेम्स ने ले ली। अब खिलाड़ियों की एक नई जमात तैयार हो चुकी हैं, जिन्हें वीडियो गेमर्स कहा जाता है। इसमें बच्चों से लेकर बड़े तक सभी शामिल हैं।
आज यह वीडियो गेमर्स रोडरैश, नीड फॉर स्पीड जैसे कंप्यूटर गेम्स हों या मोबाइल पर चलने वाले एंग्री बर्ड्स, कैंडी क्रश, पब्जी, कॉल ऑफ ड्यूटी जैसे गेम्स, इनके दीवाने बन चुके हैं। इन खेलों का जूनून कुछ ऐसा है कि यह वीडियो गेमर्स घंटों अपने कंप्यूटर, मोबाइल फोन और अन्य गेमिंग उपकरणों से चिपके रहते हैं। ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि आज बच्चे इसकी लत का शिकार हो चुके हैं।
देखा जाए तो यह शौक उनके खुद के स्वास्थ्य के लिए ही खतरा बन रहा है, जो न केवल उनके शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसी कड़ी में विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने एक नया अध्ययन किया है, जिसके नतीजे दर्शाते हैं, लम्बे समय तक बेहद तेज शोर में रहने के कारण वीडियो गेमर्स के सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। यह शोर उनके सुनने की क्षमता को इस कदर नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे उबर पाना मुमकिन नहीं है।
इसके साथ ही इन वीडियो गेमर्स में टिनिटस की समस्या भी देखी गई है। बता दें कि टिनिटस एक ऐसी समस्या है जिसके पीड़ितों को अक्सर कान में रह रहकर घंटी, सीटी और सनसनाहट जैसी आवाजे सुनाई पड़ती है। यह समस्या रात में सोते वक्त और गंभीर हो सकती है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित इस रिसर्च के मुताबिक वीडियो गेमर्स अक्सर कई घंटों तक तेज आवाज में इन वीडियो गेम्स को खेलते हैं। उनके कानों में लगे हैडफोन इसे कहीं ज्यादा बढ़ा देते हैं। पाया गया है कि इस दौरान अक्सर ध्वनि का स्तर कानों के लिए निर्धारित सुरक्षित सीमा के या तो करीब या उससे अधिक होता है।
शोध के मुताबिक दुनिया भर में यह वीडियो गेम्स आज खाली समय बिताने का एक बेहद लोकप्रिय साधन बन गए हैं। अनुमान है कि 2022 के दौरान दुनिया भर में इन गेमर्स का आंकड़ा 300 करोड़ से ज्यादा था।
गौरतलब है कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उत्तरी अमेरिका, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और एशिया के नौ देशों में प्रकाशित 14 अध्ययनों की समीक्षा की है। इन अध्ययनों में 53,833 लोगों को शामिल किया गया था।
इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक मोबाइल में ध्वनि का औसत स्तर 43.2 डेसिबल (डीबी) से लेकर गेमिंग सेंटर में 80-89 डीबी के बीच था। हालांकि यह भी सामने आया है कि गेमर्स खेलते समय वॉल्यूम को कम करके इस जोखिम को कम कर सकते हैं, लेकिन अध्ययन से पता चला है कि समस्या का एक हिस्सा वह समय है जिसके दौरान यह गेमर्स कहीं ज्यादा शोर के संपर्क में रहते हैं। मतलब कि जितने ज्यादा समय तक यह गेमर्स इस शोर के संपर्क में रहते हैं, स्वास्थ्य के लिहाज से वो भी मायने रखता है।
उदाहरण के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक एक वयस्क यदि सप्ताह में 40 घंटे तक 80 डेसिबल (डीबी) से ज्यादा शोर में रहता है तो वो उसके लिए सुरक्षित नहीं है। देखा जाए तो 80 डेसिबल करीब-करीब एक दरवाजे की घंटी से होने वाली आवाज के बराबर है। हालांकि यदि शोर का स्तर इससे बढ़ता है, तो इसके संपर्क में सुरक्षित रहने की समय सीमा बड़ी तेजी से कम होने लगती है।
बच्चों के लिए कहीं ज्यादा हानिकारक है बढ़ता शोर
अनुमान है कि इस शोर में हर तीन डेसिबल की वृद्धि से सुरक्षित समय सीमा घटकर आधी रह जाती है। उदाहरण के लिए यदि हम सप्ताह में 20 घंटे से ज्यादा समय 83 डेसिबल (डीबी) शोर में रहते हैं तो वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसी तरह सप्ताह में किसी वयस्क को 86 डेसिबल (डीबी) शोर में केवल 10 घंटे, 90 डेसिबल में चार घंटे, 92 डेसिबल में ढाई घंटे, 95 डेसिबल में एक घंटा, और 98 डेसिबल में 38 मिनट से ज्यादा नहीं रहना चाहिए। यदि वो इससे ज्यादा समय इस शोर में रहते हैं तो वो उनके स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित नहीं है।
वहीं यदि बच्चों की बात करें तो यह उनके लिए स्वीकार्य सीमा इससे कहीं कम है। उनके लिए जो मानक तय किए गए हैं उनके तहत कोई बच्चा सप्ताह में केवल 40 घंटे तक 75 डेसिबल के शोर में सुरक्षित रह सकता है। इसके बाद 83 डीबी में करीब लगभग साढ़े छह घंटे, 86 डीबी में करीब 3.25 घंटे, 92 डीबी पर 45 मिनट तक और 98 डीबी शोर को प्रति सप्ताह केवल 12 मिनट तक सुरक्षित रूप से सुन सकते हैं।
हालांकि इन गेमर्स ने इस शोर में कितना समय व्यतीत किया उसमें काफी भिन्नता थी। जो हर दिन से लेकर महीने में एक बार तक दर्ज किया गया। इसी तरह इन गेमर्स ने औसतन हर बार कम से कम एक घंटा और प्रति सप्ताह औसतन तीन घंटे तक इस शोर के बीच समय व्यतीत किया था।
शोधकर्ताओं ने जिन अध्ययनों की समीक्षा की हैं उनमें से एक में पता चला है कि पांच शूटिंग गेम्स में शोर का औसत स्तर 88.5 से 91.2 डेसिबल के बीच पाया गया। बता दें कि इनको खेलते समय गेमिंग उपकरणों के साथ हेडफोन का भी इस्तेमाल किया गया था। इसी तरह रेसिंग गेम्स में पैदा हुए शोर का स्तर 85.6 दर्ज किया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि लोग लंबे समय तक गेम खेलते हैं, जिसके दौरान बीच-बीच में कुछ आवाजें जैसे शूटिंग और गाड़ी की रफ्तार काफी ऊंची हो सकती हैं। शोध के मुताबिक वीडियो गेम्स खेलने के दौरान बीच-बीच में इस तरह की बहुत तेज आवाजें होती है, जो एक सेकंड से भी कम समय तक रहती है। इसके दौरान शोर का स्तर सामान्य से 15 डेसिबल तक अधिक होता है।
समीक्षा किए गए एक अन्य अध्ययन में सामने आया है कि एकदम से होने वाली इस आवाज का स्तर 119 डेसिबल तक पहुंच गया था। जो तय मानकों से काफी ज्यादा है। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि बच्चों के लिए इस तरह के शोर का सुरक्षित स्तर 100 डेसीबल जबकि वयस्कों के लिए 130 से 140 डीबी के बीच है।
इस तरह तीन अलग-अलग अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि लड़के, लड़कियों की तुलना में कहीं ज्यादा और अधिक समय तक वीडियो गेम्स खेलते हैं। एक अध्ययन में सामने आया है कि अमेरिका में एक करोड़ से ज्यादा लोग वीडियो या कंप्यूटर गेम खेलते समय तेज या बहुत तेज शोर के संपर्क में आ सकते हैं।
ऐसे में विशेषकर बच्चों और किशोरों के बीच वीडियो गेमिंग की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए विशेषज्ञों का सुझाव है कि, उन्हें इससे जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूक और शिक्षित करना बेहद जरूरी है।