हैंड सैनिटाइजर से पर्यावरण और स्वास्थ्य को हो रहा है नुकसान: अध्ययन

हैंड सैनिटाइजर के उत्पादन और उपयोग सामान्य कार्बन को लगभग 2 फीसदी बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है
हैंड सैनिटाइजर से पर्यावरण और स्वास्थ्य को हो रहा है नुकसान: अध्ययन
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महामारी के इस दौर में हाथों को साफ रखना वायरस से रोग फैलने से बचने या उसे कम करने के सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक है। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और दुनिया भर में तमाम डॉक्टर कोविड-19 से अपने आपको बचने के लिए साबुन और पानी से हाथ धोने या अल्कोहल युक्त सैनिटाइजर से हाथ साफ करने की सलाह देते हैं। 

लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान हैंड सैनिटाइजर जैल और हाथ धोने के बढ़ते अभ्यास से पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा है। अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में वैज्ञानिक इस बात को सामने लाते हैं कि इससे होने वाली पर्यावरणीय क्षति बहुत भारी है। साथ ही उन्होंने पर्यावरण के अधिक अनुकूल विकल्पों की आवश्यकताओं पर जोर दिया है।

अधिकांश व्यावसायिक हैंड सैनिटाइजर को अपने हाथों पर कम से कम 15 सेकंड तक रगड़ने से कई वायरस की संख्या 1000 तक कम हो जाती है और बैक्टीरिया की एक विस्तृत संख्या 1,00,000 तक कम हो जाती है। हैंड सैनिटाइजर में या तो आइसोप्रोपेनॉल या इथेनॉल हो सकता है। पर्यावरण के दृष्टिकोण से, हैंड सैनिटाइजर में इथेनॉल को विषाक्त (वॉन ब्लॉटनिट्ज और कुरेन) के रूप में जाना जाता है।

इथेनॉल के वाष्पीकरण से पर्यावरणीय समस्याएं होती है, जैसे सतह और भूजल में पाए जाने वाले इथेनॉल में वृद्धि और फोटोकैमिकल ओजोन की मात्रा में बदलाव और परिणामस्वरूप यह गर्मी में धुंध जो कि बायोएथेनॉल ईंधन के साथ दिखता है। हालांकि आइसोप्रोपेनॉल का फैलना कम खतरनाक माना गया है, क्योंकि यह कार्बनिक यौगिकों में तेजी से टूट जाता है, फिर भी यह पदार्थ जल निकाय में ऑक्सीजन को खत्म कर सकता है। 

हैंड सैनिटाइज़िंग जैल के उत्पादन और उपयोग सामान्य कार्बन को लगभग 2 फीसदी बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है। औसतन इस्तेमाल किए गए सैनिटाइजिंग जेल या हाथ धोने के अभ्यास के आधार पर कहा गया है  कि इससे लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। इसकी वजह से व्यापक विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (डीएएलवाई) प्रभाव विश्लेषण के आधार पर लोगों को प्रति वर्ष 16 से 114 घंटों का नुकसान हो सकता है।

हालांकि इन कामों से धरती की पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिसमें प्राकृतिक प्रणालियां शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हाथ धोने के लिए पानी की आवश्यकता होती है, जबकि सैनिटाइज़िंग जेल पैकेजिंग का उत्पादन कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। इस प्रकार यह ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेवार है।

अब तक इन प्रभावों के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक विस्तृत विश्लेषण किया जिसमें उन्होंने एक वर्ष के दौरान निम्नलिखित हाथ धोने की चार विधियों में से प्रत्येक को अपनाते हुए यूके की आबादी के प्रभावों का मॉडल तैयार किया: 1) इथेनॉल आधारित सैनिटाइजिंग जेल, 2) आआआआआआइसोप्रोपेनॉल-आधारित सैनिटाइजिंग जेल, 3) तरल साबुन और पानी और 4) बार साबुन और पानी का उपयोग।

उन्होंने इस अध्ययन में 16 विभिन्न श्रेणियों - जिसमें जलवायु परिवर्तन, मीठे या ताजे पानी के स्रोतों में प्रदूषण या विषाक्तता, ओजोन परत का नुकसान, पानी का उपयोग आदि शामिल हैं, इनके प्रभावों की तुलना की गई है।

हाथों को साफ रखने के सभी रूपों की पर्यावरणीय लागत होती है अर्थात इसका हमारे पर्यावरण पर असर पड़ता है जिसकी हमें भरपाई करनी पड़ती है। 

अध्ययन में पाया गया कि आइसोप्रोपेनॉल-आधारित सैनिटाइजिंग जैल का 16 में से 14 श्रेणियों में सबसे कम प्रभाव पड़ा।

जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले प्रभाव के लिए, इन जैल का तरल साबुन से हाथ धोने की तुलना में चार गुना कम प्रभाव पाया गया। जोकि 4,240 मिलियन किलोग्राम सीओ2 की तुलना में 1,060 मिलियन किलोग्राम सीओ2 के उत्पादन के बराबर है।

अध्ययन में कहा गया है कि आइसोप्रोपेनॉल-आधारित सैनिटाइज़िंग जैल का उपयोग करने से विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों में प्रति व्यक्ति 16 घंटे का नुकसान होगा, यह जीवन प्रत्याशा में एक छोटी सी कमी के बराबर है। एक तरल साबुन और हाथ धोने के दृष्टिकोण का उपयोग करने से प्रति व्यक्ति 114 घंटे या जीवन प्रत्याशा में लगभग पांच दिन का नुकसान होगा।  

अध्ययनकर्ता डॉ ब्रेट डुआने ने कहा कि हाथों को साफ रखने से निश्चित रूप से पिछले दो वर्षों में कोविड-19 के फैलने को धीमा करने में एक अहम भूमिका निभाई है। लेकिन यह शोध अपनी तरह का पहला है जो सैनिटाइजिंग जैल के उपयोग का आकलन करता है और हाथ धोने की अभ्यास में वृद्धि करता है। यह  इंसानों और धरती के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है। उन्होंने बताया की अध्ययन से पता चला है कि ये प्रथाएं भारी नुकसान पहुंचाती हैं। डॉ डुआने ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन स्कूल ऑफ डेंटल साइंस में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

 अध्ययन के माध्यम से पता चलता है कि सैनिटाइजिंग जैल साबुन और पानी की तुलना में कम नुकसान पहुंचाते हैं, विशेष रूप से आइसोप्रोपेनॉल-आधारित जैल अपेक्षाकृत अपने कम प्रभाव छोड़ते हैं। यह आगे के नुकसान को कम करने के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान करता है साथ ही नए आवश्यकता को भी रेखांकित करता है जिसमें ऐसे जैल का उपयोग शामिल है जो पर्यावरण के अधिक अनुकूल हैं। यह अध्ययन 'एनवायरमेंटल साइंस एंड पोलुशन रिसर्च' पत्रिका में प्रकाशित हुआ हैं।

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