मानसून की बारिश के बाद उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में पिछले 23 दिनों से लगातार जारी चमकी बुखार का कहर तो कम होता नजर आ रहा है लेकिन गया और मगध क्षेत्र के जिलों में हर साल होने वाले जापानी इन्सेफलाइटिस (जेई) का खतरा अभी सिर पर मंडरा रहा है। हर साल बारिश के मौसम में इन जिलों में जेई का प्रकोप बढ़ जाता है और कई बच्चों की मौत हो जाती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2011 से अब तक इस रोग से 613 बच्चे बीमार हुए हैं और इनमें से 93 बच्चों की मौत हो गयी है। पिछले साल भी इस रोग से 74 बच्चे बीमार हुए थे, जिनमें 11 की मौत हो गयी थी। ऐसे में क्या सरकार इस साल इन जेई से होने वाली मौतों पर विराम लगा पायेगी?
मुजफ्फरपुर में 175 से अधिक बच्चों की चमकी बुखार की मौत के बाद से बिहार सरकार को जिस तरह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी है, उसके बाद से जेई पर नियंत्रण के लिए आदेश-निर्देश और दौरोंं का सिलसिला चल पड़ा है। 20 जून को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गया जिले का दौरा किया और अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि इस साल मगध में जेई की वजह से एक भी बच्चे की मौत न हो। जागरूकता अभियान चलाने के साथ ही गया के मेडिकल कॉलेज में जेई के लिए स्पेशल वार्ड स्थापित करने के निर्देश भी दिए गए हैं। गया के मेडिकल कॉलेज में न सिर्फ मगध प्रमंडल बल्कि झारखंड के जेई प्रभावित बच्चे हर वर्ष आते हैं। बिहार के गया, जहानाबाद, अरवल, नवादा, औरंगाबाद जिलों में जेई का प्रकोप सबसे ज्यादा रहता है।
इस रोग के जानकार बताते हैं कि अमूमन बारिश के महीने में यह रोग फैलता है। जुलाई से अक्तूबर तक इसका सर्वाधिक प्रकोप रहता है। जहां मुजफ्फरपुर में एइएस की वजह गर्मी और ग्लूकोज लेवल का कम होना होता है, गया में जेइ मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। यूनिसेफ के बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा हुबे अली कहते हैं, यह रोग गंदगी की वजह से फैलता है और घोड़ों और सूअर के इलाकों में इसका सर्वाधिक प्रकोप रहता है, क्योंकि यह इनके जरिये फैलता है। मगध के इलाके में महादलित बस्तियों में सूअर पाले जाते हैं, इसलिए इनका प्रकोप अधिक रहता है। इसलिए इस रोग को रोकने के लिए साफ-सफाई का सर्वाधिक महत्व है। इसके अलावा सूअर बाड़े से बच्चों को दूर रखना, मच्छ्ड़दानी का इस्तेमाल करना जरूरी है। हुबे अली कहते हैं, मगध के इलाके में इस रोग के नियंत्रण को लेकर जागरुकता अभियान शुरू हो गया है। डॉक्टरों और आयुष चिकित्सकों को ट्रेनिंग दी जा रही है। देखिये, इसका कैसा नतीजा रहता है।
हालांकि 2013 से बिहार सरकार इसके प्रभाव वाले जिलों में जेइ का वेक्सीनेशन भी करवाती है। मगर आंकड़े बताते हैं कि वैक्सीन देने के बावजूद पिछले कुछ साल से जेइ का प्रकोप घटने के बदले बढ़ा ही है। नियंत्रित नहीं हुआ है। हालांकि डा अली कहते हैं, 2015 के बाद से इस रोग का सर्विलांस शुरू हुआ है इसलिये आंकड़े बढ़े दिखते हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जेई से बीमार और मरने वाले बच्चों का आंकड़ा इस प्रकार है
बीमार मृत
2011 199 26
2012 42 02
2013 29 03
2014 24 03
2015 71 12
2016 100 25
2017 74 11
2018 74 11