अफ्रीका से आई अच्छी खबर, करीब दस साल बढ़ी औसत जीवन प्रत्याशा

2000 से 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर औसत जीवन प्रत्याशा में केवल पांच वर्षों की वृद्धि हुई है, इसके बावजूद एक औसत अफ्रीकी की जीवन प्रत्याशा अभी भी वैश्विक औसत से आठ वर्ष कम है
अफ्रीका से आई अच्छी खबर, करीब दस साल बढ़ी औसत जीवन प्रत्याशा
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विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट ‘ट्रैकिंग यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज इन द डब्लूएचओ अफ्रीकन रीजन 2022' के हवाले से पता चला है कि अफ्रीका में जीवन प्रत्याशा करीब दस साल बढ़ गई है। रिपोर्ट के अनुसार जहां 2000 में एक अफ्रीकी व्यक्ति की औसत जीवन प्रत्याशा 46 वर्ष थी वो 2019 में बढ़कर 56 वर्ष हो गई है।

वहीं दूसरी तरफ इस दौरान वैश्विक स्तर पर औसत जीवन प्रत्याशा में केवल पांच वर्षों की वृद्धि हुई है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस अवधि के दौरान दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में यह वृद्धि कहीं ज्यादा है। इस लिहाज से देखे तो अफ्रीका में इसमें आई बढ़ोतरी एक अच्छा संकेत देती है।

हालांकि इसके बावजूद एक औसत अफ्रीकी की जीवन प्रत्याशा अभी भी वैश्विक औसत से आठ वर्ष कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वैश्विक स्तर पर एक स्वस्थ व्यक्ति की औसत जीवन प्रत्याशा 64 वर्ष है। वहीं दूसरी तरफ वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो जहां भारत में एक व्यक्ति की औसत जीवन प्रत्याशा 69.66 वर्ष है जबकि कनाडा में यह 82 और अमेरिका में 78.79 वर्ष के करीब है।

22 फीसदी बढ़ा है स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का आंकड़ा

इस बारे में अफ्रीका में डब्ल्यूएचओ की क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर मात्शिदिसो मोएती का कहना है कि इसके लिए अफ्रीका में स्वास्थ्य मंत्रालयों द्वारा लोगों के स्वास्थ्य और भलाई में सुधार के लिए किए प्रयासों को श्रेय दिया जाना चाहिए । उनके अनुसार अफ्रीका को विशेष रूप से आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच से लाभ हुआ है। जहां 2000 में 24 फीसदी लोगों तक इन सेवाओं तक पहुंच थी वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 46 फीसदी पर पहुंच गया है। इसमें प्रजनन, मातृ, नवजात और बाल स्वास्थ्य की दिशा में हुई वृद्धि शामिल है।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ ने 2005 के बाद से एचआईवी, तपेदिक और मलेरिया नियंत्रण उपायों में आई तेजी की ओर इशारा करते हुए कहा कि संक्रामक रोगों के खिलाफ हुई उल्लेखनीय प्रगति ने भी जीवन प्रत्याशा के सुधार में योगदान दिया है।

संक्रामक रोगों की रोकथाम और उपचार में हुई सराहनीय पहल के बावजूद संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने आगाह किया है कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अन्य गैर-संचारी रोग इस वृद्धि में "नाटकीय" रूप से कमी का कारण बन सकते हैं। ऊपर से इन बीमारियों को लक्षित करने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की कमी अपने आप में अफ्रीका के लिए एक बड़ी समस्या है।

इस बारे में डॉक्टर मोएती का कहना है कि “संक्रामक रोगों के कम खतरों, देखभाल और रोग निवारण सेवाओं तक बेहतर पहुंच के साथ लोग स्वस्थ और लंबा जीवन जी रहे हैं|” उनके अनुसार यह प्रगति रुकनी नहीं चाहिए। लेकिन जब तक देश कैंसर और अन्य गैर-संचारी रोगों से बचने का उपाय नहीं ढूंढ़ लेते तब तक इस स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुए इस फायदे पर तलवार मंडराती रहेगी।

कोविड-19 महामारी और जेब पर बढ़ता भार हैं बड़ी चुनौती

इस रिपोर्ट में कोविड-19 को लेकर भी आगाह किया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान जीवन प्रत्याशा में जो वृद्धि हुई है उसपर यह महामारी ग्रहण लगा सकती है। कोविड-19 को लेकर डब्ल्यूएचओ द्वारा किए एक सर्वेक्षण का 36 में से 90 फीसदी देशों ने जवाब दिया था, जिसमें उन्होंने एक या उससे अधिक स्वास्थ्य सेवाओं पर महामारी के असर की सुचना दी थी। पता चला है कि इस महामारी के चलते बुनियादी टीकाकरण से लेकर पोषण संबंधी सेवाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी।  

ऐसे में डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में जोर देकर कहा है कि सरकारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य पर किए जा रहे अपने खर्च में इजाफा करने की दरकार है। अफ्रीका में केवल केवल अल्जीरिया, बोत्सवाना, काबो वर्डे, इस्वातिनी, गैबॉन, सेशेल्स और दक्षिण अफ्रीका ही ऐसे हैं जहां सरकारें देश में स्वास्थ्य पर हो रहे खर्च का आधे से ज्यादा हिस्सा वहन करने में मदद कर रही हैं।

ऐसे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि दवाओं और परामर्श पर किए जा रहे भारी-भरकम खर्च में कटौती करने की जरुरत है। आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले 20 वर्षों के दौरान 15 अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य पर अपनी जेब से किए जा रहे खर्च में इजाफा हुआ है, जोकि इस क्षेत्र में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है।

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