2020 के लिए छपे ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने भारत को 107 देशों में 94 वें स्थान पर रखा है, जो स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थिति कोई ज्यादा बेहतर नहीं है।हालांकि 2019 के मुकाबले स्थिति में कुछ सुधार जरूर आया है।गौरतलब है कि इससे पहले 2019 में छपे ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को 117 देशों में 102 वें स्थान पर जगह दी गई थी।रिपोर्ट के अनुसार जहां 2000 में भारत को 38.9 अंक दिए गए थे।उनमें सुधार के देखा गया है और वो 2020 में 27.2 पर पहुंच गए हैं।इसके बावजूद अभी भी देश में भुखमरी की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।
जबकि यदि दक्षिण एशिया में भारत के सबसे करीबी पड़ोसियों को देखें तो उसमें श्रीलंका की स्थिति सबसे बेहतर है जिसे 64 वें स्थान पर रखा गया है।इसके बाद नेपाल को 73, बांग्लादेश को 75 और पाकिस्तान को 88 वां स्थान दिया गया है।इन सभी देशों में हालात भारत से बेहतर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार देश की 14 फीसदी आबादी अभी भी कुपोषण का शिकार है।जबकि यदि स्टंटिंग की बात करें तो स्थिति सबसे ज्यादा ख़राब है।आंकड़ों के अनुसार पांच वर्ष से कम आयु के करीब 35 फीसदी बच्चे स्टंटिंग से ग्रस्त हैं।गौरतलब है कि स्टंटिंग के शिकार बच्चों में उनकी कद-काठी अपनी उम्र के बच्चों से कम रह जाती है। हालांकि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर में पिछले कुछ वर्षों में काफी सुधार आया है और वो 2020 में घटकर 3.7 फीसदी रह गई है।जबकि यदि वेस्टिंग की बात करें तो पांच वर्ष से छोटे करीब 17.3 फीसदी बच्चे अभी भी उसका शिकार हैं।
भारत में पोषण की स्थिति कोई बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है। भले ही हम विकास के कितनी बड़ी बातें करते रहें, पर सच यही है कि आज भी भारत में लाखों लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है, वो आज भी दाने-दाने के लिए मोहताज हैं। हाल ही में छपी यूनिसेफ रिपोर्ट के अनुसार भारत में 50 फीसदी बच्चे कुपोषित है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन की ओर से 18 सितंबर 2019 को कुपोषण पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर 21.4 फीसदी थी। जबकि जिन बच्चों का विकास नहीं हो रहा है, उनकी संख्या 39.3 फीसदी, जल्दी थक जाने वाले बच्चों की संख्या 15.7 फीसदी, कम वजनी बच्चों की संख्या 32.7 फीसदी, अनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 59.7 फीसदी, 15 से 49 साल की अनीमिया पीड़ित महिलाओं की संख्या 59.7 फीसदी और अधिक वजनी बच्चों की संख्या 11.5 फीसदी पाई गई थी।
पांच साल की उम्र से छोटे हर तीन में दो बच्चों की मौत का कारण कुपोषण
हालांकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के कुल मामलों में 1990 के मुकाबले 2017 में कमी आई है। 1990 में यह दर 2,336 प्रति एक लाख थी, जो 2017 में 801 पर पहुंच गई है, लेकिन कुपोषण से होने वाली मौतों के मामले में मामूली सा अंतर आया है। 1990 में यह दर 70.4 फीसदी थी जोकि 2017 में 2.2 फीसदी घटकर, 68.2 पर ही पहुंच पाई है। यह चिंता का एक बड़ा विषय है, क्योंकि इससे पता चलता है कि पिछले सालों में किए जा रहे अनगिनत प्रयासों के बावजूद देश में कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है।
जबकि भारत सरकार द्वारा किये गए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18) में जो आंकड़ें प्रस्तुत किए गए तो वो गंभीर स्थिति की ओर इशारा करते हैं।इसके अनुसार देश में 58 फीसदी नौनिहालों (6 से 23 माह के बच्चों) को भरपेट भोजन नहीं मिलता है।वहीं 93.6 फीसदी नौनिहालों के भोजन में पोषक तत्वों की कमी है।भारत में बच्चों की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है, जिसके पीछे की बड़ी वजह बच्चों के आहार में विविधता की कमी है। आंकड़ें दर्शाते हैं कि भारत में 79 फीसदी नौनिहालों के भोजन में विविधता की कमी है। जबकि 91.4 फीसदी के भोजन में है आयरन की गंभीर कमी है।
इस रिपोर्ट में विश्व की जो तस्वीर सामने आई है वो सचमुच भयावह है।आंकड़ों के अनुसार दुनिया में 69 करोड़ लोग कुपोषित हैं। जबकि 14.4 करोड़ बच्चे स्टंटिंग यानी ऐसे बच्चे जिनका विकास अवरुद्ध हो जाता है। वहीं 4.7 करोड़ बच्चे वेस्टिंग का शिकार है जो निश्चित तौर पर कुपोषण की स्थिति को बयां करने के लिए काफी है। वहीं 2018 के आंकड़ों के अनुसार करीब 53 लाख बच्चों की मौत उनके पांचवे जन्मदिन से पहले हो गई थी।रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि जो स्थिति है उसको देखते हुए लगता है कि 2030 तक जीरो हंगर के लक्ष्य को हासिल करना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है। रिपोर्ट के अनुसार 37 देश ऐसे हैं जो इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे।
क्या सुधार के लिए नीतियों में बदलाव की है जरूरत
विडम्बना देखिए जहां एक और सरकार लगातार यह कहती रही है कि भारत में जो खाद्य उत्पादन हो रहा है वो देश में सभी का पेट भरने के लिए पर्याप्त है।इसके बावजूद देश की एक बड़ी आबादी आज भी खाली पेट सोने को मजबूर हैं।बच्चे कुपोषित हैं और महिलाएं अनीमिया का शिकार हैं।यदि देश में सब कुछ सही है तो कुपोषण की समस्या इतनी गंभीर क्यों है।बार-बार रिपोर्ट इस और इशारा क्यों करती है कि देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति बदतर है।क्या कहीं इसके पीछे हमारी नीतियां तो जिम्मेवार नहीं हैं जिनमें वास्तविकता में जरूरतमंदों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।या फिर यह बदलती मानसिकता का नतीजा है जिसमें पोषण से ज्यादा पेट भरने को तवज्जो दी जाने लगी है, क्योंकि कुपोषण की यह समस्या सिर्फ गरीब तबके तक ही सीमित नहीं है।इसका शिकार देश का समृद्ध वर्ग भी है।
इसी को देखते हुए मार्च 2018 में नेशनल न्यूट्रिशन मिशन की स्थापना की गई थी।सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) भी ऐसी ही एक पहल थी, जिसका लक्ष्य देश के गरीब तबके को सस्ते दर पर भोजन मुहैया कराना था। हाल ही में सितम्बर 2020 को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाया गया था।जबकि सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कृषि में सुधार लाने की बात कही जा रही है, लेकिन इन सबके बावजूद आंकड़े दिखाते हैं कि अभी भी हम 2030 तक जीरो हंगर के लक्ष्य को हासिल करने के काफी पीछे हैं।