जियो-इंजीनियरिंग से एक अरब लोग मलेरिया की जद में आ सकते हैं: अध्ययन

जियो-इंजीनियरिंग से एक अरब लोग मलेरिया की जद में आ सकते हैं: अध्ययन

जियो-इंजीनियरिंग का उपयोग करके उष्णकटिबंधीय इलाकों को ठंडा करना भविष्य के सापेक्ष कुछ स्थानों में मलेरिया के खतरे को बढ़ा सकता है
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वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक नई खोज के मुताबिक जलवायु को जियो-इंजीनियरिंग करने से उष्णकटिबंधीय देशों में रहने वाले अरबों लोगों के स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ सकता है।

यह इस बात का पहला आकलन है कि जलवायु पर की जाने वाली जियो-इंजीनियरिंग संक्रामक रोगों के बोझ को कैसे प्रभावित कर सकती है। अध्ययन सौर विकिरण प्रबंधन (एसआरएम) पर आधारित है, एक ऐसी छेड़-छाड़ जो जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभावों को कम करने के उद्देश्य की परिकल्पना है। यह अध्ययन जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

इसके अंतर्गत एक ऐसे काम के बारे में सुझाव दिया गया है, जिसमें स्ट्रेटोस्फीयर या समताप मंडल में एरोसोल को छोड़ा या इंजेक्ट किया जाता है जो आने वाली धूप को प्रतिबिंबित करता है, जिससे यह अस्थायी रूप से ग्लोबल वार्मिंग को रोक देता है। बड़ी बात यह है कि एसआरएम पर अक्सर जलवायु के असंतुलन को कम करने के तरीके के रूप में चर्चा की जाती है, स्वास्थ्य पर इसके पड़ने वाले प्रभावों का शायद ही कभी अध्ययन किया गया है।

जियो-इंजीनियरिंग होती क्या है?

जियो-इंजीनियरिंग को क्लाइमेट इंजीनियरिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाकर या ग्रह की सतह तक पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश की मात्रा को सीमित करके जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों को कम करने की एक वैचारिक विधि है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता प्रोफेसर कॉलिन कार्लसन ने कहा कि जियो-इंजीनियरिंग हो सकता है जीवन बचाएं, लेकिन यह सभी के लिए समान रूप से काम करेगा कहा नहीं जा सकता है। इसके बारे निर्णय लेने का समय आने पर कुछ देशों को इससे नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा यदि जियो-इंजीनियरिंग जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर आबादी की रक्षा करने के बारे में है, तो हमें इसके खतरों और फायदों दोनों को देखना होगा।

विशेष रूप से उन इलाकों में जहां स्वास्थ्य की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, जैसे कि कुछ क्षेत्रों में मच्छरों से होने वाली बीमारी को ही ले लें। निर्णय लेने के लिए अध्ययन के परिणाम महत्वपूर्ण हैं। कार्लसन, जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ साइंस एंड सिक्योरिटी में एक सहायक प्रोफेसर हैं।

जियो-इंजीनियरिंग से संबंधित अध्ययन के लिए अमेरिका, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी के आठ शोधकर्ताओं की एक टीम ने जलवायु मॉडल का उपयोग किया। जिसका उद्देश्य यह जानना था कि मलेरिया के फैलने के भविष्य के दो परिदृश्यों में इसका रूप कैसा हो सकता है।

इसमें बढ़ते तापमान के मध्यम या उच्च स्तर और जियो-इंजीनियरिंग के साथ और इसके बिना। मॉडल इस बात का पता लगता है कि एनोफिलीज मच्छर द्वारा संचरण के लिए कौन सा तापमान सबसे अनुकूल हैं और यह इस बात का भी पता लगता हैं कि कितने लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहां यह फैल सकता है।

बढ़ते तापमान के मध्यम और उच्च दोनों परिदृश्यों में, मलेरिया के खतरे अलग-अलग इलाकों में भिन्न हो सकते हैं। लेकिन बढ़ते तापमान के उच्च परिदृश्य में, सिमुलेशन ने पाया कि जियो-इंजीनियरिंग से दुनिया भर में एक अरब अतिरिक्त लोगों पर मलेरिया का खतरा बढ़ सकता है।

कार्लसन कहते हैं कि एक ग्रह जो मनुष्यों के लिए बहुत गर्म है, यह मलेरिया के परजीवी के लिए भी बहुत गर्म हो जाता है। जीवन को बचाने के लिए ग्रह को ठंडा करना एक आपातकालीन विकल्प हो सकता है, लेकिन ठंडा करने से पड़ने वाले विपरीत प्रभाव भी पड़ेंगे।

शोधकर्ताओं ने नए अध्ययन में अब एक परिकल्पना की पुष्टि की, क्योंकि 25 डिग्री सेल्सियस पर मलेरिया बहुत तेजी से फैलेगा। जियो-इंजीनियरिंग का उपयोग करके उष्णकटिबंधीय इलाकों को ठंडा करना भविष्य के सापेक्ष कुछ स्थानों में मलेरिया के खतरे को बढ़ा सकता है।

ट्रिसोस कहते हैं जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे को कम करने के लिए जियो-इंजीनियरिंग की क्षमता को कम समझा जाता है, यह लोगों और पारिस्थितिक तंत्र के लिए कई नए खतरों को बढ़ा सकता है।

कार्लसन ने कहा कि सबसे आश्चर्यजनक निष्कर्षों में से एक यह है कि यह विभिन्न क्षेत्रों के बीच संभावित समझौते का एक पैमाना हो सकता है। उदाहरण के लिए, दोनों परिदृश्यों में, अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जियो-इंजीनियरिंग वर्तमान समय की तुलना में भारतीय उपमहाद्वीप में मलेरिया के जोखिम को काफी हद तक कम कर सकती है।

हालांकि दक्षिण-पूर्व एशिया में खतरे में वृद्धि के साथ उस सुरक्षात्मक प्रभाव की भरपाई भी की जा सकती है। निर्णय लेने वालों के लिए, यह जलवायु हस्तक्षेप की जियोपॉलिटिकल वास्तविकता को जटिल बना सकता है।

कार्लसन ने कहा हम इस प्रक्रिया में इतनी जल्दी में हैं कि बातचीत अभी भी जियो-इंजीनियरिंग शोध में ग्लोबल साउथ के नेतृत्व को बढ़ाने के बारे में हो रही है। उन्होंने बताया कि हमारे अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि जलवायु संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर जब स्वास्थ्य की बात आती है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।

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