जीनोमिक निगरानी से टीबी और कोविड-19 का एक साथ होगा उपचार

ब्रिक्स देशों का समूह नैदानिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य तकनीकों के लिए अग्रणी जीनोमिक आंकड़ों से संबंधित जानकारी में तेजी लाएगा।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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हाल ही के कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कोविड-19 के संक्रमण के ठीक होने के पश्चात, लोगों में तपेदिक अथवा टीबी रोग की शिकायत पाई गई। टीबी रोगियों पर कोविड-19 का असर कितना खतरनाक हो सकता है। अब भारतीय वैज्ञानिक इसके बारे में और शोध के लिए ब्रिक्स देशों के साथ सहयोग कर जीनोमिक निगरानी तकनीक एवं जानकारी आदान प्रदान कर इससे निपटने की तरकीब खोज रहे हैं।

इसी क्रम में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने टीबी रोगियों पर गंभीर कोविड-19 के प्रभाव के अध्ययन को आगे बढ़ाया है। इसके लिए ब्रिक्स देशों का सहयोग लिया जा रहा है तथा सार्स-सीओवी-2 एनजीएस-ब्रिक्स देशों के समूह के साथ बहुत सारे कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं।

सार्स-सीओवी-2 एनजीएस-ब्रिक्स देशों के समूह के साथ कोविड-19 स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को आगे बढ़ाने और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करने के लिए एक दूसरे का सहयोग करना है। ब्रिक्स देशों का समूह नैदानिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य तकनीकों के लिए अग्रणी जीनोमिक आंकड़े संबंधी जानकारी में तेजी लाएगा।

नैदानिक और निगरानी करके नमूनों की जीनोमिक तकनीकों के द्वारा जांच की जाएगी। यह भविष्य में उपयोग के लिए महामारी विज्ञान और जैव सूचना विज्ञान उपकरण में उपकरण की तरह काम करेगा। यह कोविड-19 और इसी तरह के अन्य वायरसों के फैलने तथा उनकी गतिशीलता पर नजर रखेगा।

भारतीय टीम में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स के प्रोफेसर अरिंदम मैत्रा, प्रोफेसर सौमित्र दास, डॉ निदान के विश्वास, सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स के डॉ अश्विन दलाल और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के डॉ मोहित के जॉली शामिल हैं।

ब्राजील से वैज्ञानिक संगणना के लिए राष्ट्रीय प्रयोगशाला - एलएनसीसी/एमसीटीआई के डॉ एना तेरेजा रिबेरो डी वैस्कॉन्सलोस, रूस से स्कोल्कोवो इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से प्रोफेसर जॉर्जी बाज़ीकिन, बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स, चीनी विज्ञान अकादमी के प्रोफेसर मिंगकुन ली, चीन और दक्षिण अफ्रीका के क्वाज़ुलु-नेटाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टुलियो डी ओलिवेरा भी इस टीम का हिस्सा होंगे।

दूसरे अलग-अलग केंद्रों के कार्यक्रमों में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं की एक टीम शामिल है। जो महामारी विज्ञान और सह रुग्णता के लिए टीबी रोगियों में क्षणिक परिधीय इम्यूनो संप्रेषण और फेफड़ों की हाइपरइन्फ्लेशन स्थितियों पर कोविड-19 के खतरनाक प्रभावों की जांच करेगी।

इस टीम में भारत के राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान के डॉ. सुभाष बाबू, डॉ. अनुराधा राजमानिकम, डॉ. बनुरेखा वेलायुथम और डॉ. दीना नायर भी शामिल होंगे। साथ ही ब्राज़ील और साउथ से अफ्रीका के वैज्ञानिक भी इसमें शामिल होंगे।

ब्रिक्स देशों का सहयोग से किए जा रहे अध्ययन से कोविड-19 संक्रमण के साथ टीबी रोगियों से संबंधित आंकड़ों को साझा करने की उम्मीद है जिससे बेहतर रोग प्रबंधन में मदद मिलेगी। जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. रेणु स्वरूप ने कहा कि विभाग ने ब्रिक्स देशों के साथ सहयोग की सही दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाए हैं।

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