भारत में कोविड-19 के कुछ मरीज खासकर जो अस्पतालों में भर्ती थे उन्हें ब्लैक फंगस नामक रोग हुआ। यह एक कवक से फैलने वाला रोग है। कौन से कवक है जो कोविड के दौर में हमारे स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर सकते हैं, इसी तरह का एक कैंडिडा ऑरिस कवक अथवा फंगस है जिस पर शोध किया गया है। यह शोध जर्नल ऑफ ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस में प्रकाशित हुआ है।
कवक (फंगी, फंगस) से एंटीबायोटिक दवाएं बनाई जाती है, पेनिसिलियम नामक कवक से पेनिसिलिन तथा साथ ही खमीर (यीस्ट) और अन्य किण्वन एजेंट जो ब्रेड को फुलाते हैं, पनीर को उसका स्वाद देते हैं तथा कई अन्य चीजों में कवकों का उपयोग होता है।
हममें से बहुत से लोगों को यह भी एहसास नहीं होगा कि कुछ कवक रोग पैदा कर सकते हैं। हालांकि, खाज, दाद और अन्य बीमारियां कवक के कारण होती हैं और कुछ स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरनाक हैं। यही कारण है कि ऐंटिफंगल प्रतिरोध का उदय एक ऐसी समस्या है जिस पर ज्यादा गौर करने की आवश्यकता है। अनके दवाओं के लिए प्रतिरोधी (मल्टी ड्रग-रेसिस्टेंट) सूक्ष्म जीव (बैक्टीरिया) से तपेदिक हो सकता है।
शोधकर्ता ने बताया कि उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सा प्रयोगशालाओं में तीन दशकों से अधिक समय तक काम किया। उन्होंने कैंडिडा ऑरिस नामक रोग पैदा करने वाले कवक के सीमित और आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले एंटी-फंगल एजेंटों के बढ़ते प्रतिरोध पर काम किया। चूंकि परंपरागत रूप से कवकों से बड़ी बीमारियां नहीं होती है, लेकिन दवा प्रतिरोधी कवकों से खतरनाक बीमारी हो सकती है।
कवक अथवा फंगस क्या है?
कवक से होने वाली बीमारियों का इलाज विशेष रूप से एंटीफंगल दवाओं से किया जाता है क्योंकि ये जीव जीवन का एक अनूठे रूप हैं। कवक बीजाणु का उत्पादन करने वाला जीव हैं, जिनमें फफूंदी, खमीर, मशरूम और टोडस्टूल शामिल हैं। अपनी अनूठी विशेषताओं के बीच, कवक कार्बनिक पदार्थों को विघटित करके खाते हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यह जानवरों की तरह न तो निगलते हैं, न ही पौधे की जड़ों की तरह पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं।
जीवाणुओं के विपरीत, इनमें सरल प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं होती हैं, यह बिना नाभिक के कोशिकाओं रहित होती हैं। कवक में जटिल यूकेरियोटिक कोशिकाएं होती हैं, जिनमें एक नाभिक होता है जो जानवरों और पौधों की तरह एक झिल्ली से घिरा होता है।
दुनिया भर में अधिकांश फंगल संक्रमण कैंडिडा नामक कवक की जाति के कारण होते हैं, यह कैंडिडा अल्बिकन्स नामक प्रजाति के नाम से जानी जाती है। लेकिन कैंडिडा ऑरिस सहित अन्य तरह के कवक पहली बार जापान में 2009 में एक बाहरी कान नामक नहर में पहचाने गए थे।
कैंडिडा आम तौर पर त्वचा पर और शरीर के अंदर, जैसे मुंह, गले, आंत और योनि में बिना किसी समस्या के रहता है। यह एक खमीर (यीस्ट) के रूप में मौजूद होता है और इसे सामान्य वनस्पतियों, या रोगाणुओं के रूप में जाना जाता है। अगर हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तो ही ये कवक उस समय बीमारी का कारण बनते हैं। दुनिया भर में मल्टी ड्रग-रेसिस्टेंट सी. ऑरिस के साथ यही हो रहा है।
कैंडिडा ऑरिस क्यों है चिंता का विषय?
सी. ऑरिस का संक्रमण, जिसे कवकनाशी भी कहा जाता है, अमेरिका सहित 30 या उससे अधिक देशों में पाया गया है। वे अक्सर रक्त, मूत्र, थूक, कान बहने, मस्तिष्कमेरु द्रव और कोमल ऊतकों में तथा सभी उम्र के लोगों में पाए जाते हैं। दुनिया भर में कवक के फैलने के बारे में शोधकर्ताओं ने गहन देखभाल और गंभीर रूप से बीमार रोगियों के बीच सी. ऑरिस के प्रकोप में मृत्यु दर 30 फीसदी से 70 फीसदी होने का अनुमान लगाया है।
शोध के आंकड़ों से पता चलता है कि इससे होने वाले खतरों में हाल में की गई सर्जरी, मधुमेह और व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक और एंटीफंगल उपयोग शामिल हैं। इससे मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों की तुलना में कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को इससे अधिक खतरा होता है।
सी. ऑरिस को पारंपरिक सूक्ष्म जीव विज्ञानी कलचर तकनीकों के साथ पहचानना मुश्किल हो सकता है, जिसके कारण बार-बार इसकी गलत पहचान होती है। यह खमीर (यीस्ट) चिकित्सा उपकरणों सहित मानव शरीर और पर्यावरण में आसानी से ढल जाता है।
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों ने सी. ऑरिस संक्रमण को खतरनाक श्रेणी में रखा है क्योंकि 90 फीसदी कम से कम एक एंटिफंगल, 30 फीसदी से दो एंटीफंगल के प्रतिरोधी हैं और कुछ एंटीफंगल के सभी तीन उपलब्ध वर्गों के प्रतिरोधी होते हैं। इस मल्टी ड्रग-रेसिस्टेंट ने स्वास्थ्य देखभाल की व्यवस्था, विशेष रूप से अस्पतालों और नर्सिंग होम में इस प्रकोप को जन्म दिया है, जिन्हें नियंत्रित करना बेहद मुश्किल है।
कोविड-19 और कैंडिडा ऑरिस एक और घातक संयोजन और भारत में इसका प्रभाव
अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों के लिए, रोगाणुरोधी प्रतिरोधी संक्रमण खतरनाक हो सकता है। गंभीर कोविड-19 के इलाज के लिए अक्सर उपयोग किए जाने वाले यांत्रिक वेंटिलेटर सी. ऑरिस जैसे पर्यावरणीय रोगाणुओं के प्रवेश के लिए प्रजनन स्थल हो सकता हैं। इसके अलावा, शोधकर्ता अनुराधा चौधरी और अमित शर्मा द्वारा लिखित सितंबर 2020 के एक पेपर के अनुसार, भारत में कोविड-19 का इलाज करने वाले अस्पतालों के बिस्तर, एयर कंडीशनर नलिकाएं, खिड़कियां और अस्पताल के फर्श सहित सतहों पर सी. ऑरिस का पता लगाया है। शोधकर्ताओं ने कोविड-19 महामारी के बीच कवक को "गुप्त संकट" करार दिया है।
उन्हीं शोधकर्ताओं ने नवंबर 2020 के प्रकाशन में बताया कि अप्रैल 2020 से जुलाई 2020 तक नई दिल्ली के आईसीयू में भर्ती 596 कोविड-19 के रोगियों में से 420 रोगियों को यांत्रिक वेंटिलेशन की आवश्यकता थी। इनमें से 15 मरीज कैंडिडेमिया फंगल रोग से संक्रमित थे और उनमें से आठ संक्रमितों (53 फीसदी) की मृत्यु हो गई। 15 में से 10 मरीज (60 फीसदी) सी. ऑरिस से संक्रमित थे, उनमें से 6 की मृत्यु हो गई।
इसे कैसे रोका जा सकता है?
प्रभावी एंटीफंगल के प्रभाव को कम करने के विकल्पों के साथ, शोधकर्ता शुरू होने से पहले सी. ऑरिस संक्रमण को रोकने पर गौर करने की सिफारिश कर रहे हैं। इन कदमों में हाथ की बेहतर स्वच्छता और चिकित्सा देखभाल व्यवस्था में संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण में सुधार, रोगाणुरोधी दवाओं के विवेकपूर्ण उपयोग और एंटीबायोटिक दवाओं की बिना पर्ची के उपलब्धता को सीमित करने वाले मजबूत नियम शामिल हैं।
जब हम लॉकडाउन या क्वारंटाइन में खुद को अलग कर रहे थे, या सिर्फ एक-दूसरे से शारीरिक रूप से दूर रह रहे होते हैं, तो दुनिया के मल्टी ड्रग-प्रतिरोधी रोगाणुओं जिनमें सी. औरिस शामिल ही नहीं था।