दिल्ली की सड़कों पर ओपन किचन में बनते समोसे: फोटो: आईस्टॉक
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तले व्यंजन के शौकीन हैं तो हो जाइए खबरदार! ज्यादा तला बढ़ा सकता है चिंता और अवसाद

रिसर्च से पता चला है कि तले हुए आलू का ज्यादा सेवन चिंता में 12 फीसदी और अवसाद के जोखिम में सात फीसदी की वृद्धि कर सकता है
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यदि आप और आपके परिचित तले व्यंजनों जैसे फ्रेंच फ्राइज, चिप्स, पकोड़ों आदि के शौकीन हैं तो यह खबर आपके लिए ही है। एक नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि तले हुए भोजन का ज्यादा सेवन चिंता और अवसाद को बढ़ा सकता है।

जर्नल द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि तले हुए भोजन, विशेष रूप से तले हुए आलू का ज्यादा सेवन चिंता में 12 फीसदी और अवसाद के जोखिम में सात फीसदी की वृद्धि कर सकता है।

रिसर्च के मुताबिक तले हुए खाद्य उत्पादों और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला असर युवा उपभोक्ताओं में कहीं ज्यादा स्पष्ट था। हालांकि यह क्यों होता है इस बारे में अभी तक कई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। यह रिसर्च चीन में 140,728 लोगों पर किए अध्ययन पर आधारित है।

रिसर्च के मुताबिक ऐसा एक्रिलामाइड के कारण होता है जो खाद्य पदार्थों तो तलने और पकाने के दौरान बनने वाला एक रसायन है। जो विशेष रूप से तले हुए आलू और चिंता एवं अवसाद से जुड़ा है।

देखा जाए तो यह तले आलू युक्त जहां एक तरफ बनाने में आसान होते हैं वहीं स्वाद में भी अच्छे होते हैं। इनके व्यापार से जुड़ी कंपनियां भी इन्हें स्वादिष्ट और सेहत के लिए फायदेमंद दर्शाकर बेचती हैं, जिसकी वजह से बच्चे और युवा आसानी से इनके झांसे में आ जाते हैं फिर खाने का शौक कब आदत में बदल जाता है पता ही नहीं चलता।

इस बारे में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि खाद्य पदार्थों में पोषण की कमी मानसिक स्वस्थ को प्रभावित कर सकती है। वहीं हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि जो लोग बहुत ज्यादा तला हुआ भोजन करते हैं उनमें मधुमेह और ह्रदय रोग का खतरा कहीं ज्यादा हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार डिप्रेशन एक सामान्य मानसिक विकार है, जो आत्महत्या का कारण बन सकता है। अनुमान है कि दुनिया भर में करीब पांच फीसदी वयस्क अवसाद से पीड़ित हैं। वहीं पुरुषों से ज्यादा महिलाएं डिप्रेशन का शिकार हैं।

जर्नल लैंसेट में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक 2020 में कोविड-19 के दौरान चिंता और अवसाद में वृद्धि हुई है। आंकड़ों के मुताबिक जहां 2020 के दौरान अवसाद में 27.6 फीसदी और चिंता या व्याग्रता में 25.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। 

जंक फूड के खतरों को लेकर सीएसई भी कर चुका है आगाह

लम्बे समय से सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) तले भोजन और जंक फ़ूड से जुड़े खतरों को लेकर आगाह करता रहा है। इस बारे में सीएसई ने एक व्यापक अध्ययन भी जारी किया था इस रिपोर्ट में जंक फ़ूड से जुड़े खतरों को लेकर चेताया गया था।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इतना ही नहीं यह मात्रा भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय मानकों से भी ज्यादा है। जो मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ा रहा है।

यदि देश में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री को देखें तो जहां 2005 में यह दो किलोग्राम प्रति व्यक्ति थी, वो 2019 में बढ़कर छह किलोग्राम तक पहुंच गई है। वहीं अनुमान है कि 2024 तक इसकी बिक्री आठ किलोग्राम प्रति व्यक्ति तक जा सकती है। यही वजह है की सीएसई और एम्स के डॉक्टरों ने सलाह दी थी कि जंक फूड के पैकेटों पर शुगर, साल्ट और फैट की जानकारी दी जानी चाहिए, जिससे ग्राहकों को इन उत्पादों के बारे में सही जानकारी मिल सकें और वो जंक फूड को खरीदने के बारे में सही फैसला ले सकें।

आ बीमारी मुझे मार

ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओप्थोमोलॉजी में भी इसके खतरे को लेकर एक शोध प्रकाशित हो चुका है जिसके मुताबिक जंक फ़ूड बुजुर्गों में मैक्यूलर डिजनरेशन नामक विकार को जन्म दे रहा है, जोकि उनकी आंखों के लिए गंभीर खतरा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक हर साल जरूरत से ज्यादा नमक (सोडियम) का सेवन दुनिया में 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से रक्तचाप और हृदय रोग का खतरा भी बढ़ रहा है। इसी तरह डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ-लांसेट आयोग द्वारा बच्चों के स्वास्थ पर जारी नई रिपोर्ट से पता चला है कि जंक फ़ूड बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है।

देखा जाए तो ज्यादा तले भोजन और जंक फूड का सेवन ऐसा ही है जैसे हम कह रहे हों की आ बीमारी मुझे मार। जहां भारत जैसे देशों में यह बच्चों और बड़ों की पहली पसंद बनता जा रहा है। आज लोग पोषण की जगह स्वाद को तरजीह दे रहे हैं जो उनके शरीर को अंदर ही अंदर दीमक की तरह खा रहा है।

वहीं जब इसके खतरों का आभास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और लोग इससे जुड़ी बीमारियों का शिकार हो चुके होते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम स्वयं भी इसके सेवन से बचे और अपने बच्चों को भी समझाएं की वो इस तले वसायुक्त जंक फ़ूड की जगह पोषण से भरपूर आहार को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। यह जितना दिखता है उतना मुश्किल भी नहीं है बस इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है।

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