हाल ही में किये एक शोध से पता चला है कि दुनिया में 10 में से चार व्यस्क फंक्शनल गॅस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर्स नामक बीमारी से ग्रस्त हैं| गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय द्वारा दुनिया के 33 देशों के 73,000 लोगों पर किये अध्ययन में यह बात सामने आई है।
फंक्शनल गॅस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर्स (जठरांत्र विकार) से तात्पर्य पाचन तंत्र सम्बन्धी विकारों से है| जिसमें हमारी आंते ठीक से काम नहीं करती हैं। इसमें कब्ज की समस्या होना आम बात है। इस विकार में पेट में सूजन और भारीपन, एसिडिटी, अपच, जलन, जी मिचलाना, सर्दी और खांसी के साथ बुखार, दस्त, उल्टी, डीहाइड्रेशन, खुजली, खून के साथ दस्त, थकान, जीभ में कड़वाहट का अनुभव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
यह अध्ययन जर्नल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में प्रकाशित हुआ है| जिसमें दुनिया भर में इस बीमारी के प्रसार का विवरण दिया गया है। इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने वेब आधारित प्रश्नोत्तर और साक्षात्कार के माध्यम से डेटा इकट्ठा किया है। यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के प्रोफेसर मैग्नस सिमरन जोकि इस अंतराष्ट्रीय अध्ययन से भी जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि शोध से पता चला है कि दुनिया के ज्यादातर देशों में इस विकार ने सभी को एक समान तरीके से प्रभावित किया है| यदि कुछ भिन्नताओं को छोड़ दें तो सभी देशों में अध्ययन के एक जैसे नतीजे सामने आये हैं।
शोध से पता चला है कि इस विकार से पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक ग्रस्त हैं, जोकि उनके जीवन की खुशहाली और गुणवत्ता में कमी का एक बड़ा कारण था| आंकड़ों पर गौर करने से पता चला है कि 37 फीसदी पुरुषों और 49 फीसदी महिलाओं में फंक्शनल गॅस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर्स (एफजीआईडी) के एक न एक लक्षण मौजूद थे, जिसमें ज्यादातर प्रश्न इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम और फंक्शनल गॅस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसॉर्डर्स के बारे में पूछे गए थे।
जिसमें बीमारी के लक्षण, जीवन स्तर, खान-पान, स्वास्थ्य की देखभाल आदि से जुड़े प्रश्न पूछे गए थे। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम आमतौर पर उन लोगों को होता है, जिन्हें जंक फूड खाना बहुत पसंद है| यह संक्रमण न होकर एक आम समस्या है| इसमें कब्ज, डायरिया, सूजन और कभी-कभी पेट में दर्द जैसी समस्याएं होती हैं।
इसमें गर्मी बढ़ने पर बहुत ज्यादा पसीना आता है और प्यास लगती है। कुछ लोगों में इसका गंभीर असर देखा गया है जबकि कुछ में केवल हल्की परेशानी देखी गई है| जबकि कुछ में यह उनके जीवन की गुणवत्ता पर असर डाल रहा है। सामान्यतः एफजीआईडी कितना प्रभावित करता है यह स्वास्थ्य सेवाओं की उपलबध्ता पर भी निर्भर है।