जंगल की आग से उठता धुआं आपके त्वचा में पैदा कर सकता है रोग : अध्ययन

जंगल में आग लगने के दौरान पीएम 2.5 के स्तर में लगभग नौ गुना वृद्धि हो सकती है, जो सांस और हृदय संबंधी समस्याओं के साथ-साथ त्वचा को गंभीर रूप से रोग ग्रस्त कर सकता है।
Photo : Wikimedia Commons
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जंगल में आग लगने से निकलने वाला धुआं सांस और हृदय संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकता है, जिसमें बहती नाक और खांसी से लेकर जीवन लील लेने वाले दिल के दौरे या स्ट्रोक तक हो सकता है। एक नए अध्ययन से पता चलता है कि जंगल की आग के धुएं से उत्पन्न खतरे मानव शरीर के सबसे बड़े अंग तक फैल सकते हैं, और बाहरी खतरे के खिलाफ हमारी सबसे पहले रक्षा करने वाली त्वचा को रोग ग्रस्त कर सकता है।

नवंबर 2018 में दो सप्ताह के दौरान जब जंगल में लगी आग के धुएं ने सैन फ्रांसिस्को खाड़ी क्षेत्र को घेर लिया था, उस समय सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में चर्म रोग (एक्जिमा) के रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी गई, जिसे एलर्जिक (एटोपिक) और सामान्य तौर पर खुजली के रूप में भी जाना जाता है। अध्ययन में पाया गया कि 2015 और 2016 में भी जंगल में लगी आग से भी लगभग समान रूप में रोगी पाए गए थे।  

निष्कर्ष बताते हैं कि जंगल की आग के धुएं से वायु गुणवत्ता में कमी का खतरा तो होता ही है, साथ ही यह त्वचा के लिए हानिकारक हो सकता है। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के शोधकर्ताओं के सहयोग से सैन फ्रांसिस्को स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में चिकित्सीय शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

यूसी बर्कले-यूसीएसएफ संयुक्त चिकित्सा कार्यक्रम में एक छात्र और प्रमुख अध्ययनकर्ता राज फडदु ने कहा वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर मौजूदा शोध ने मुख्य रूप से हृदय और सांस को लेकर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन वायु प्रदूषण और त्वचा के स्वास्थ्य को जोड़ने वाले शोध में एक अंतर है।

त्वचा मानव शरीर का सबसे बड़ा अंग है और यह बाहरी वातावरण के साथ निरंतर संपर्क में रहता है। तो, यह समझ में आता है कि बाहरी वातावरण में परिवर्तन, जैसे वायु प्रदूषण में वृद्धि या कमी, हमारी त्वचा को प्रभावित कर सकती है।

वायु प्रदूषण के कण त्वचा में घुस सकते हैं

जंगल की आग से होने वाला वायु प्रदूषण, जिसमें सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम 2.5), पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) और गैसें होती हैं, जो सामान्य और चर्म रोग (एक्जिमा) दोनों प्रकार की त्वचा को कई तरह से प्रभावित कर सकती हैं। इन प्रदूषकों में अक्सर रासायनिक यौगिक होते हैं जो चाबी की तरह काम करते हैं, जिससे उन्हें त्वचा के बाहरी अवरोध को खत्म कर, कोशिकाओं में घुस सकते हैं, जहां वे जीन में छेड़-छाड़ कर सकते हैं, जिससे ऑक्सीडेटिव तनाव या सूजन, जलन हो सकती है।

चर्म रोग (एक्जिमा) एक पुरानी स्थिति है जो पर्यावरणीय कारकों के खिलाफ एक बड़ी बाधा के रूप में काम करता है, जिससे त्वचा की क्षमता पर असर पड़ता है। क्योंकि त्वचा प्रभावित हो रही है, इस तरह के लोग चिड़चिड़े हो जाते है, इस प्रतिक्रिया में त्वचा का लाल होना, त्वचा में खुजली हो सकती हैं और वायु प्रदूषण से नुकसान होने का और भी अधिक खतरा हो सकता है।

यूसीएसएफ के एक त्वचा विशेषज्ञ और मेलेनोमा के विशेषज्ञ, वरिष्ठ अध्ययनकर्ता डॉ. मारिया वेई ने कहा, त्वचा एक बहुत ही उत्कृष्ट शारीरिक अंग है जो हमें वातावरण के हानिकारक चीजों से बचाती है। जब हम वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं, तो इस स्थिति वाले लोगों को त्वचा पर असर दिख सकता है।

पहले के अध्ययनों से पता चलता है कि कारों और उद्योग से वायु प्रदूषण की अधिक स्तर वाले शहरों में चर्म रोग सूजन, जलन और वायु प्रदूषण के बीच एक संबंध पाया गया है। हालांकि, जंगल की आग से होने वाले बेहद खतरनाक प्रभावों की जांच करने वाला यह पहला अध्ययन है। आग के दौरान पीएम 2.5 के स्तर में लगभग नौ गुना वृद्धि देखी गई।

अध्ययन करने के लिए, टीम ने 2015, 2016 और 2018 के अक्टूबर और फरवरी के बीच वयस्कों और बच्चों दोनों की त्वचा विज्ञान अस्पतालों में 8,000 से अधिक आंकड़ों की जांच की। उन्होंने पाया कि, जंगल की आग के दौरान, चर्म रोग जैसे खुजली, त्वचा में सूजन, जलन वयस्क और बाल रोगियों दोनों में काफी बढ़ा हुआ पाया गया।

वेई ने कहा कि जंगल की आग के दौरान खुजली वाले रोगियों में से 89 फीसदी में एटोपिक, सूजन, जलन का कोई सही निदान नहीं था, यह सुझाव देते हुए कि सामान्य त्वचा वाले लोगों को बहुत कम समय के भीतर जलन या विषाक्त पदार्थों के अवशोषण का अनुभव होता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि चर्म रोग (एक्जिमा) और खुजली जैसी त्वचा रोग भले ही जानलेवा हो, लेकिन सांस और हृदय रोग पर इसका बहुत बड़ा असर पड़ सकता है। अध्ययन में यह भी निर्धारित किया गया कि वायु प्रदूषण के दौरान दवाओं की बढ़ी हुई दरों जैसे कि स्टेरॉयड, आदि का अनुभव किया गया।  

जामा डर्मेटोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि व्यक्ति घर के अंदर रहकर अपनी त्वचा की सुरक्षा कर सकते हैं, घर के अंदर रहकर, ऐसे कपड़े पहने जो त्वचा को पूरी तरह ढकते हों यदि वे बाहर जाते हैं, और एमोलिएटर्स का उपयोग करते हैं, जो त्वचा के अवरोध कार्य को मजबूत कर सकते हैं। चर्म रोग (एक्जिमा) के इलाज के लिए एक नई दवा, जिसे टैपिनेरॉफ कहा जाता है, यह अब परीक्षणों में और खराब हवा के समय भी उपयोगी हो सकती है।

फडदु ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य संबंधी समस्या के बारे में बहुत सारी बातचीत हुई है, लेकिन त्वचा पर ध्यान नहीं दिया गया है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि त्वचा की स्थिति लोगों के जीवन की गुणवत्ता, उनकी सामाजिक सहभागिता और उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकती है।

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