सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने डेयरी क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभावकारी विकल्प के रूप में एथ्नोवेटरिनरी मेडिसिन (ईवीएम) के उपयोग को सही करार दिया है। सीएसई ने यह बात एक वैश्विक वेबिनार में कही। ध्यान रहे इन दिनों विश्व सूक्ष्मजीवरोधी (ऐन्टीमाइक्रोबीअल) जागरूकता सप्ताह (18-24 नवंबर) मनाया जा रहा है।
ध्यान रहे कि मवेशियों में रोगों के निदान के लिए पारंपरिक रूप से ईवीएम का उपयोग किया जाता है। सीएसई का कहना है कि हम इस बात की इसलिए वकालत कर रहे हैं क्योंकि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के नेतृत्व में ईवीएम पर चल रही परियोजना के नतीजे बहुत अधिक उत्साहवर्धक रहे हैं।
कोविड-19 के विपरीत एएमआर (ऐन्टीमाइक्रोबीअल रिजिस्टन्स) एक साइलेंट महामारी है। सीएसई का कहना है कि इस दौरान सबसे बड़ी चिंता का कारण एंटीबायोटिक प्रतिरोध है। इसका मतलब है कि जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स अप्रभावी साबित हो रहे हैं। वास्त्व में देखा जाए तो यह विश्व में तेजी से बढ़ता सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है। और यहां ध्यान देने की बात है कि यह खाद्य सुरक्षा, आजीविका और विकास को भी प्रभावित कर सकता है। यह भी सही है कि एएमआर के बढ़ने का प्रमुख कारण है एंटीबायोटिक का दुरुपयोग और मवेशियों में इसके उपयोग से उत्पादित किया जाना वाला अनाज।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि दुनिया एंटीबायोटिक्स को सदैव प्रभावकारी बनाए रखने के लिए उसे बचाना चाहती है। हालांकि अभी तक प्रभावी विकल्पों के अभाव में हमें ज्यादा सफलता नहीं मिली है। अब हम भारतीय डेयरी क्षेत्र में एथ्नोवेटरिनरी चिकित्सा पद्धतियों की प्रभावशीलता पर आए नए नतीजों को साझा करने के लिए तैयार हैं। ईवीएम इस क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं की जगह लेने और एंटीबायोटिक प्रतिरोध को कम करने में काफी मददगार साबित हो सकती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कम लागत वाला और किसान-हितैषी विकल्प है।
वेबिनार में इस विषय पर बोलते हुए एनडीडीबी के डिप्टी मैनेजर एवी हरि कुमार ने कहा कि हम हमेशा छोटे और सीमांत किसानों के साथ काम करते रहे हैं जो हमारे लिए हमेशा से प्रमुख रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब हमने ईवीएम पर आंकड़े एकत्र करना शुरू किया, तो हमें विश्वास हो गया कि यह अपनी लागत क्षमता के कारण एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
यही नहीं गुजरात में सबर डेयरी से मिले आंकड़ों ने ईवीएम के महत्व को और सही साबित कर दिया है। जैसे बुखार, दस्त और अपच आदि के लिए पारंपरिक तरीके से किए गए इलाज का प्रतिशत 67 था। इतना ही नहीं डेयरी ने पिछले पांच सालों में एंटीबायोटिक की खरीदी में भी कमी लाई। इस बात को इन आंकड़े से समझा जा सकता है कि 2017-18 में 2.1 करोड़ रुपये में खरीदी गई एंटीबायोटिक्स के मुकाबले 2021-22 में केवल 63 लाख रुपये की खरीदी की गई।
इसके अलावा 2017-18 से दिसंबर 2020 तक लगभग 2.29 लाख पशु चिकित्सा कॉलों में कमी दर्ज की गई और इसी अवधि में एंटीबायोटिक्स दवाओं की लागत पर 1.9 करोड़ रुपए की कुल बचत दर्ज की गई। सबर डेयरी के प्रबंधक निदेशक अनिल कुमार कहते हैं कि ग्रामीण स्तर हमारा अनुभव कहता है कि ईवीएम का उपयोग एलोपैथिक दवाओं के मुकाबले अधिक प्रभावी है और इसकी कीमत भी लगभग 10 गुना अधिक है। इसके कारण किसानों के बीच इसकी स्वीकृति अधिक है।
वेबिनार में अपनी बात रखते हुए सीएसई के फूड कार्यक्रम के निदेशक अमित खुराना कहते हैं कि यह स्पष्ट है कि ईवीएम कई बीमारियों में बहुत प्रभावीकारी साबित हो रहा है और जन सामान्य में बहुत अधिक प्रचलित है। क्योंकि सामान्यतया इससे पांच में से चार मामले ठीक हो रहे हैं। इसका मतलब है कि एंटीबायोटिक के अति प्रयोग और दुरुपयोग से बचा जा सकता है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बात हैं।
इसका सीधा मतलब यह भी है कि किसान दूध में एंटीबायोटिक्स की उपस्थिति के कारण होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं और अधिक दिनों तक दूध बेचकर अधिक कमाई कर सकते हैं। दूध में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग करने से भी बचा जा सकता है।
वेबिनार के अंत में नारायण ने कहा कि ईवीएम परंपराओं के साथ काम करने वाले भारतीय डेयरी क्षेत्र के सामने वर्तमान में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग और अति-उपयोग को कम करने का एक बड़ा अवसर है। ऐसा करने के लिए सरकारों और अन्य हितधारकों को एक साथ आना होगा। यदि भारत के इस समाधान को दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपनाया जाए तो यह एएमआर के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ा कदम साबित होगा।