हर रोज एचआईवी/एड्स के कारण जा रही 274 बच्चों की जान, रोजाना सामने आ रहे 740 नए मरीज

रिपोर्ट के अनुसार 2022 के दौरान 2.7 लाख से ज्यादा बच्चों में एचआईवी संक्रमण का पता चला था। वहीं एक लाख से ज्यादा बच्चों की जान इस बीमारी ने ली थी
फोटो: आईस्टॉक
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बच्चों के लिए एचआईवी/एड्स किसी अभिशाप से कम नहीं। यह बीमारी हर दिन औसतन 274 बच्चों की जान ले रही है। इतना ही नहीं हर दिन 740 बच्चे इस बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा 13 जुलाई 2023 को जारी नई रिपोर्ट “द पाथ देट एंड्स एड्स” में सामने आई है।

रिपोर्ट में जारी आंकड़ों को देखें तो उसके अनुसार इस बीमारी की वजह से 2022 में एक लाख से ज्यादा बच्चों की जान गई थी। इनमें से 73,000 बच्चे तो वो हैं जिन्होंने अब तक अपना दसवां जन्मदिवस भी नहीं देखा था।

दुर्भाग्य की बात है कि इनमें से ज्यादातर जानें इस बीमारी की रोकथाम, देखभाल और उपचार सेवाओं तक पहुंच तक कमी के कारण गई थी। वहीं यदि इस बीमारी के बढ़ते संक्रमण की बात करें तो अकेले 2022 में 2.7 लाख से ज्यादा बच्चे इस बीमारी की चपेट में आए थे। इनमें से 1.3 लाख बच्चों की उम्र तो दस वर्ष से कम थी।

एड्स के चलते 1.39 करोड़ बच्चों के सर से उठ चुका है उनके माता-पिता का साया

इस तरह दुनिया भर में एड्स से पीड़ित बच्चों का आंकड़ा बढ़कर 25.8 लाख पर पहुंच गया है। इनमें से 9.3 लाख बच्चे की आयु तो अभी दस वर्ष भी नहीं हुई है। वहीं 16.5 लाख किशोर वो हैं जिनकी उम्र अभी 20 से कम है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2022 तक करीब 1.39 करोड़ बच्चों ने एड्स से जुड़े कारणों के चलते अपने माता-पिता में से एक या दोनों को खो दिया है। इन बच्चों की उम्र अब तक 18 की भी नहीं हुई है।

रिपोर्ट में जुड़े आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर करीब 3.9 करोड़ लोग इस बीमारी के साथ जीने को मजबूर हैं। जिनमें से करीब 2.98 करोड़ लोगों को इसकी रोकथाम के लिए एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी उपलब्ध है। हालांकि इसके बावजूद अभी भी 92 लाख लोगों के पास  उपचार की सुविधा नहीं है। इनमें एचआईवी के साए में जीवन गुजार रहे 6.6 लाख बच्चे भी शामिल हैं।

यूएन एजेंसी के अनुसार, एड्स की वजह से पिछले वर्ष प्रति मिनट एक व्यक्ति की मौत हुई है। मतलब की साल में इस बीमारी की वजह से 630,000 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। वहीं अनुमान है कि 2022 में एचआईवी के 13 लाख नए मामले सामने आए हैं।

हालांकि पिछले वर्ष, बच्चों में एड्स को रोकथाम के लिए जुटाए समर्थन और मदद में वृद्धि का ही नतीजा है कि दुनिया भर में एचआईवी के साथ जी रही 82 गर्भवती महिलाओं को एंटीरेट्रोवाइरल उपचार मिल पाया था। 2010 की तुलना में देखें तो इस दिशा में काफी सुधार हुआ है। उस समय केवल 46 फीसदी के पास ही उपचार तक पहुंच थी।

ऐसे में एचआईवी/एड्स के मामलों पर काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की अग्रणी संस्था यूएनएड्स का कहना है कि 2030 तक एड्स का खात्मा करने के लिए मजबूत राजनैतिक नेतृत्व के साथ विज्ञान को अपनाने, विषमताओं का मुकाबला करने और सतत निवेश का मार्ग सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता होगी।

इस बारे में यूएनएड्स की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयिमा का कहना है कि मौजूदा दौर के नेताओं के पास लाखों जिंदगियों को बचाने और भावी पीढ़ियों द्वारा याद रखे जाने का अवसर है।" “वे लाखों जीवन बचा  सकते हैं और सभी के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। वे दिखा सकते हैं कि नेतृत्व के जरिए क्या कुछ किया जा सकता है।”

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