15 मार्च 2020। यह कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा आधिकारिक रूप से महामारी घोषित करने का पांचवां दिन था। भारत के करीब 75 जिलों में कोविड के लगभग 300 मामले सक्रिय थे।
उस समय लोगों को अपने तात्कालिक भविष्य की चिंता थी। लोग आशंकित थे कि वायरस का व्यवहार कैसा होगा और हमें किस प्रकार मारेगा।
हमें एहसास नहीं था कि यह जल्द ही यह धरती की सबसे बड़ी महामारी बन जाएगा और 15 मार्च 2023 तक 68 लाख से अधिक लोगों की मौत की वजह बनेगा।
महामारी के तीन साल बाद हमने मरने वालों और संक्रमितों को गिनना छोड़ दिया है। अब दुनिया महामारी के अगले चरण में पहुंच रही है, जहां इसके दुष्प्रभाव एक बड़ी आबादी को आने वाले कई वर्षों तक भोगने होंगे।
2020 में 260 करोड़ लोगों की उम्र 20 वर्ष से कम थी। इसे कार्यबल आबादी की “नर्सरी” माना जा सकता है। इस लिहाज से देखें तो दुनिया का हर तीसरा शख्स हाल ही में “कार्यबल” आबादी में शामिल हुआ है। यह आबादी अपने जीवन के ऐसे मोड़ पर है जो उसका भविष्य निर्धारित करता है। यानी इस मोड पर वह शिक्षा प्राप्त करता है, बीमारियों से बचने व स्वस्थ रहने के लिए टीके लगवाता है और अपने जीवनयापन के लिए आवश्यक कौशल हासिल करता है। इन सभी को संयुक्त रूप से मानव पूंजी माना गया है। जिस शख्स के पास यह पूंजी जितनी अधिक होगी, उसके बेहतर रोजगार के अवसर प्राप्त करने की संभावना उतनी ही प्रबल होगी। अधिक मानव पूंजी वाले ऐसे लोगों का समूह अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाता है। विश्व बैंक का कहना है कि आबादी का यह समूह 2050 तक 90 प्रतिशत प्राइम ऐज एडल्ट होगा।
विश्व बैंक ने अपने विश्लेषण में माना है कि इस मानव पूंजी पर महामारी ने शताब्दी का सबसे गहरा आघात किया है। इस कारण दुनिया में कम मानव पूंजी बची है अथवा वह निकट भविष्य में कुशल कार्यबल आबादी में शामिल होने के लिए ठीक से तैयार नहीं है। विश्व बैंक का “कोलेप्स एंड रिकवरी : हाउ द कोविड-19 पेंडेमिक इरोडेड ह्यूमन कैपिटल एंड वाट टू डू अबाउट इट” नामक विश्लेषण हाल ही में प्रकाशित हुआ है जो कहता है कि महामारी ने मानव पूंजी को स्पष्ट रूप से नष्ट किया है।
मानव पूंजी का निर्माण बच्चे के पहले पांच वर्षों से शुरू हो जाता है जिसमें स्वास्थ्य और शिक्षित भविष्य की नींव पड़ती है। इसके बाद शिक्षा इस आबादी को 20 वर्षों तक कुशलता के रास्ते पर आगे बढ़ाती है। 25 वर्ष होने पर यह कार्यबल अपनी इस कुशलता का इस्तेमाल जीवनयापन में करने लगता है जिससे उसके भविष्य के रोजगार और परिवार के लिए की गई तैयारी निर्धारित होती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था का भी यही ईकोसिस्टम है। विश्व बैंक ने पाया है कि महामारी ने इसकी बुनियाद बुरी तरह से हिलाकर रख दी है।
लाखों बच्चे नियमित स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और स्वास्थ्य केंद्रों व स्कूलों में मिलने वाले पोषणयुक्त भोजन से वंचित रह गए। ऐसे अधिकांश बच्चे विकासशील और गरीब देशों में हैं। विश्लेषण के अनुसार, 100 करोड़ बच्चे कम से कम एक साल तक स्कूल से दूर हुए हैं। भारत समेत 180 देशों के स्कूल मार्च 2020 के अंत में बंद हो गए। एक साल बाद तक ये स्कूल बंद रहे अथवा 94 देशों में आंशिक रूप से बंद रहे।
विश्लेषण के निष्कर्ष के अनुसार, जितने महीने स्कूल बंद रहे, उतने महीने की पढ़ाई का नुकसान हुआ। ये बच्चे उस कौशलता को भी हासिल करने से वंचित रहे गए जो भविष्य में कार्यबल में शामिल होने के लिए आवश्यक है। बहुत से युवा महामारी के कारण अपनी नौकरी से भी हाथ धो बैठे। नष्ट मानव पूंजी के आर्थिक विश्लेषण के अनुसार, आज हुए पढ़ाई में नुकसान की वजह से दुनियाभर में भविष्य की कमाई में 21 ट्रिलियन डॉलर की कमी आ सकती है।
महामारी के बाद वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था में कार्यबल पीढ़ी को अप्रत्यक्ष रूप से एक परेशानी का सामना और करना पड़ेगा। इसका नाम “स्कारिंग” यानी महामारी के घाव है। विश्व बैंक का कहना है कि श्रम बाजार में बेरोजगारी अथवा कम भुगतान वाली नौकरी की स्थिति में यह हालात पैदा होंगे। विश्व बैंक के मुताबिक, साक्ष्य बताते हैं कि स्कारिंग 10 वर्षों तक रह सकता है।
हो सकता है कि हम सबको जल्द यह आधिकारिक घोषणा सुनने को मिले कि महामारी का अंत हो गया है। जो इससे बच गए, वो हर्षित होंगे लेकिन भविष्य में इसकी आंच से बचना मुश्किल है।