देश में इस समय करोना की दूसरी लहर ने कहर बरपा दिया है। कोरोना संक्रमण के मामलों की ताजा लहर के कारण वेंटिलेटर की मांग तेजी से बढ़ रही है। इस बार कोरोना की लहर में मरीजों को संक्रमण होने के पांच से छह दिनों के बाद वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है, जबकि पहले वेंटिलेटर की आवश्यकता 10 से 15 दिनों के बाद होती थी। ऐसे में इस बार करोना संक्रमित मरीज को पहले के मुकाबले शीघ्र ही वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि वेंटिलेटर की कमी का रोना एक तरफ है जबकि जहां वेंटिलेटर हैं, उसे चलाने वाला कोई तकनीशियन ही उपलब्ध नहीं है। ऐसे में वेंटिलेटर की दोहरी समस्या पैदा हो गई है। सरकार केवल वेंटिलेटर की आपूर्ति पर अपना सब कुछ ध्यान लगा रही है जबकि उसे चलाने वाले तकनीशियनों पर उसने चुप्पी साधे हुए है। डाउन टू अर्थ ने देश के कई राज्यों में इसकी जानकारी एकत्रित की है - पढ़िए पहली कड़ी :
अब हम क्या करें? जब वेंटीलेटर (जीवन रक्षक उपकरण) चलाने वाला ही नहीं है तो हम लाख कोशिश कर लें मरीज को बचाने के लिए लेकिन नहीं बचा पा रहे हैं। यह हताशा भरा बयान गाजियाबाद के उच्च पदस्थ स्वास्थ्य अधिकारी का ऐसे समय आया है जब गाजियाबद सहित पूरे देश में कारोनो की दूसरी लहर अपनी चरम सीमा पर है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय लगातार हर हफ्ते अपने प्रेस कांफ्रेंस में यह कहते हुए नहीं अघाता कि हमने राज्यों को पर्याप्त मात्रा में वेंटिलेटर उपलब्ध करा दिया है। लेकिन वह यह कभी नहीं बताता कि इस उपकरण को चलाने वाले तकनीशियन कहां से आएंगे। ऐसे में हालात यह हो रहे हैं कि अस्पतालों में वेंटिलेटर होने के बावजूद उसे चलाने वाला तकनीशियन नहीं होने के कारण यह जीवन रक्षक कहा जाने वाला उपकरण कोई काम का नहीं रह गया है।
चूंकि इस बार करोना की दूसरी लहर इतनी तेज है कि यह उत्तर प्रदेश सहित पूरे राज्य के ग्रामीण् अंचलों को भी अपनी चपेट में ले लिया हे ऐसे में राज्य के बड़े नगरों में स्थिति बड़े अस्पतालों में उपलब्ध वेंटिलेकर को चलाने वाला तकनीशियन भी एक जिले से दूसरे जिले को जाने को तैयार नहीं है। गत वर्ष राज्य सरकार ने तकनीशियन की कमी को दूसरे जिलों से नकनीशियन को बुला कर पूरा कर लिया था। लेकिन अब ऐसी स्थिति की कल्पना राज्य सरकार ने भी नहीं की थी कि हालात ऐसे हो जाएंगे।
ध्यान रहे कि गत वर्ष मार्च, 2020 तक राज्य के 36 जिलों में एक भी वेंटिलेटर नहीं था लेकिन पिछले एक साल में अब हालात पहले से बेहतर हुए हैं और हर जिले में कम से कम पांच वेंटिलेटर हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि इसका संचालन करना। बीते मार्च में देश के सरकारी अस्पतालों में 14,220 आईसीयू वेंटिलेटर युक्त थे और कोविड-19 के रोगियों के लिए बनाए गए अस्पतालों में करीब 6,000 वेंटिलेटर थे। उत्तर प्रदेश के 36 जिलों में बीते साल 25 मार्च तक एक भी वेंटिलेटर नहीं था।
अब कोरोना संक्रमण के मामलों की ताजा लहर के कारण वेंटिलेटर की मांग प्रदेश सहित देशभर में बढ़ रही है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि इस बार कोरोना की लहर में मरीजों को संक्रमण होने के पांच से छह दिनों के बाद वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है, जबकि पहले वेंटिलेटर की आवश्यकता 10 से 15 दिनों के बाद होती थी।
ऐसे में इस बार वेंटिलेटर की मांग बहुत अधिक है लेकिन फिर वही कि वेंटिलेटर तो सरकार पैसे खर्च कर खरीद ले रही है लेकिन तकनीशियन से कहां से खरीदेगी। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के लिए यह सबसे यक्ष प्रश्न मुंह बाए खड़ा है।
राज्य में हर कोई बस यही कहता है कि वेंटिलेटर की कमी है लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है। जितने उपलब्ध हैं उसे भी चलाया जाए। ऐसे में केवल कमी की बात करना हकीकत को झुठलाना है।