शुरुआती दौर में उत्तराखंड के जो पहाड़ कोविड-19 के मामले में पूरी तरह से सुरक्षित माने जा रहे थे और इसी सुरक्षा के कारण कई लोग देश के विभिन्न शहरों से वापस लौट रहे थे, वे पहाड़ अब सुरक्षित नहीं रह गये हैं। राज्य में संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। स्थिति यह है कि यहां संक्रमितों को दोगुना होने की दर भी राष्ट्रीय औसत से कम नहीं बल्कि कुछ ज्यादा ही दर्ज की जा रही है।
राज्य में अब सामुदायिक संक्रमण जैसी स्थिति बन गई है, हालांकि सामुदायिक संक्रमण नापने की कोई वैज्ञानिक पद्धति अब तक तय नहीं की गई है, इसकी आड़ में केन्द्र और राज्य सरकारें संक्रमण सामुदायिक स्तर पर पहुंच जाने की बात स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। उधर पर्वतीय क्षेत्रों में क्वारंटीन सेंटरों में होने वाली मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है। इस स्थिति में बाहर से आने वाले लोग अब क्वारंटीन सेंटर के बजाय अपने घर जा रहे हैं। इससे सामुदायिक संक्रमण का खतरा और बढ़ गया है।
उत्तराखंड में संक्रमण का डबलिंग रेट राष्ट्रीय से कुछ अधिक दर्ज किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर संक्रमितों की संख्या 51 हजार से 1 लाख पहुंचने में 12 दिन और 1 लाख से 2 लाख पहुंचने में 15 दिन लगे थे। उत्तराखंड के आंकड़ों पर नजर डालें तो संक्रमितों की संख्या 100 से 200 पहुंचने में मात्र 4 दिन का समय लगा। 19 मई को राज्य में संक्रमितों की संख्या 111 थी, जबकि 23 मई को यह संख्या 244 हो गई थी। 5 दिन बाद 28 मई को यह संख्या 500 के पार पहुंच गई, जबकि अगले 5 दिन बाद 2 जून में संक्रमितों की संख्या 1023 हो गई।
फिलहाल 4 जून सुबह तक राज्य में कोविड-19 संक्रमितों की संख्या 1085 है। राज्य में अब तक कोरोना से 8 लोगों की मौत हुई है। इनमें 5 की मौत देहरादून में हुई, जबकि नैनीताल, पौड़ी और चम्पावत जिलों में एक-एक व्यक्ति की मौत दर्ज की गई है। राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का दावा है कि ये मौतें सिर्फ कोरोना के कारण नहीं हुई, बल्कि मरने वाले सभी लोगों को दूसरी बीमारियां भी थी।
कोरोनाकाल में राज्य में अव्यवस्था से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है। गुजरात से एक ट्रक में रुड़की पहुंचकर करीब 100 किमी पैदल उत्तरकाशी पहुंचने वाले युवक की डिहाइड्रेशन के कारण मौत हो गई थी, जबकि नैनीताल जिले में क्वारंटीन सेंटर में सांप के डसने से 5 साल की बच्ची की मौत हो गई थी। पौड़ी जिले में भी एक क्वारंटीन सेंटर में एक युवती की मौत हो गई है।
राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में गांव लौटने वाले लोगों को क्वारंटीन करने की जिम्मेदारी बिना कोई बजट दिये ग्राम प्रधानों को सौंप दी गई। बिना संसाधनों के ग्राम प्रधानों द्वारा किसी तरह क्वारंटीन सेंटर्स बनाये गये, लेकिन इनमें सभी व्यवस्थाएं उपलब्ध करवा पाना उनके लिए संभव नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि क्वारंटीन सेंटर्स में अव्यवस्था संबंधी खबरें पूरे राज्य से आ रही है। क्वारंटीन सेंटरों से आ रही ऐसी खबरों के बाद ज्यादातर लोग इन सेंटरों के बजाय अपने घरों में जा रहे हैं, यह स्थिति सामुदायिक संक्रमण के मामले में खतरनाक साबित हो सकती है।
देहरादून में एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कहते हैं कि उत्तराखंड में पिछले कुछ दिनों में टेस्ट की संख्या बढ़ी है, लेकिन वे इस कम मानते हैं। उनका कहना है कि राज्य में एक लाख की आबादी पर लगभग 225 टेस्ट किये गयेे हैं, जबकि पड़ोसी हिमाचल प्रदेश में प्रति एक लाख की आबादी पर किये गये टेस्ट की संख्या 525 के करीब है। उत्तराखंड में सैंपल जांच किये जाने की रफ्तार भी बेहद धीमी है। पिछले 15 दिनों में सैंपल लेने में तेजी आई है, लेकिन जांच की प्रक्रिया धीमी होने से पेंडिंग सैंपल की संख्या में हर रोज इजाफा हो रहा है। राज्य में अब तक लगभग 34000 सैंपल लिये गये हैं, जिनमें 7000 की जांच रिपोर्ट आनी अभी बाकी है। पेडिंग सैंपल की संख्या रोज बढ़ रही है।