छत्तीसगढ़ इन दिनों डेंगू संक्रमण से लगातार जूझ रहा है। राजधानी रायपुर इन दिनों डेंगू संक्रमण का मुख्य केंद्र बना हुआ है। एडिज मच्छर के काटने से होने वाला डेंगू संक्रमण से अब तक पांच जानें जा चुकी हैं और जनवरी से लेकर अब तक डेंगू संक्रमित मरीजों की संख्या 350 हो चुकी है। करीब 23 लाख के आबादी वाले रायपुर में अमूमन 18-20 मरीज प्रतिदिन डेंगू संक्रमित पाए जा रहे हैं।
अगस्त के दूसरे हफ्ते में राजधानी रायपुर के 38 नंबर वार्ड में रहने वाली 13 वर्षीय बच्ची की मौत डेंगू से हो गई। उसका इलाज राजधानी के ही एक निजी अस्पताल में चल रहा था। बच्ची का इलाज करने वाले डॉक्टर कुलदीपक वर्मा ने बताया कि बच्ची सिकलिन (सिकल सेल) बीमारी से पीड़ित थी। हिमोग्लोबिन काफी कम था जांच के दौरान उसमें डेंगू संक्रमण पाया गया था और उसका जांच डेंगू टेस्ट एंटीजन कार्ड से किया गया था। पर उसका इसका एलाइजा टेस्ट नहीं किया गया था। उसी प्रकार से नेहा सोनी, डिंपल अग्रवाल नामक महिला और अभनपुर निवासी एक ग्रामीण की भी डेंगू से मौत हो गई।
उधर सरकारी अधिकारी न तो डेंगू संक्रमण के गति को लेकर चिंतित है न ही ये मानने को तैयार है कि राजधानी में किसी भी व्यक्ति की मौत डेंगू के कारण से गई है। रायपुर की सीएमएचओ डॉ. मीरा बघेल बताती है कि राजधानी में किसी भी मरीज की मौत डेंगू मच्छर के काटने से नहीं हुई है। डॉ. मीरा बघेल कहती है जिन भी पांच मरीजों की मरने की बात कही जा रही है, वे डेंगू से पीड़ित तो हुए लेकिन उनकी मौत डेंगू से नहीं हुई है, क्योंकि मृतकों में से किसी का भी एलाइजा टेस्ट नहीं करवाया गया था जो कि डेंगू से मौत के पुष्टि के लिए अत्यंत ही आवश्यक है।
डॉ. मीरा बघेल इस बात से इनकार नहीं करती है लगातार डेंगू मरीजों की संख्या बढ़ रही है। पर मीरा कहती हैं कि उनमें से अधिकांश में डेंगू के माइल्ड सिंप्टम पाए गए हैं। वह बताती है कि राजधानी रायपुर के सभी अस्पतालों में डेंगू टेस्टिंग किट उपलब्ध है और राजधानी रायपुर में 40 बेड डेंगू के गंभीर स्थिति वाले मरीजों के लिए उपलब्ध है।
वहीं पर छत्तीसगढ़ सरकार के स्वास्थ्य अमला के सूत्र बताते हैं कि जो सैंपल अभी लिए जा रहे हैं उनमें से करीब 85 फीसद सैंपल में डेंगू संक्रमण दिख रहें हैं। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव स्वास्थ्य अमले को डेंगू से लड़ने के लिए कोताही नहीं बरतने के निर्देश दे चुके हैं। पर जगह-जगह से लगातार लापरवाही की शिकायत आ रही है।
रायपुर की वरिष्ठ पत्रकार सरिता दुबे बताती हैं कि साफ-सफाई और मच्छरों से निपटने के लिए रायपुर नगर निगम प्रत्येक महीने साफ-सफाई और संक्रमित बीमारियों से निपटने के के नाम पर 9.65 करोड़ रुपये अधिक खर्च करता है लेकिन गंदगी और बजबजाती नालियां आपको दिख जाएंगी।
सोशल एक्टिविस्ट दुर्गा झा कहती है कि बारिश से पहले नालों की सफाई हो जाती थी लेकिन ड्रेनेज सिस्टम व्यवस्थित नहीं था तो कई जगहों पर जल जमाव की समस्या दिखती थी और संक्रमण फैलने की आशंका रहती थी। लेकिन अब तो सफाई भी नियमित रूप से नहीं होती। वहीं कई नालों पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है, सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट का क्या हुआ, पता ही नहीं चल रहा है तो इसलिए राजधानी रायपुर के बीचों-बीच रामनगर जैसे इलाकों में डेंगू संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
राजधानी रायपुर के अलावा 2018 में दुर्ग जिले में डेंगू से 52 लोगों की मौत हो गई थी। स्थानीय लोग बताते हैं उनके शहर में संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। लेकिन सरकारी इंतजाम जितने कागजों में अच्छे रहते हैं उतने ही अगर धरातल पर भी होते तो हालात काफी बेहतर होते। तीन तीन दिन तक लोगों को एलाइजा टेस्ट के लिए इंतजार करना पड़ता है, किट खत्म होने के बाद पूर्ति में बहुत समय लगता है।