विश्व स्वास्थ्य संगठन की कैंसर एजेंसी, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) ने कैंसर के वैश्विक बोझ का नवीनतम अनुमान जारी किया है। डब्ल्यूएचओ ने 115 देशों के सर्वेक्षण के परिणाम प्रकाशित किए हैं, जिसमें दिखाया गया है कि अधिकांश देश सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) में कैंसर रोगियों पर पर्याप्त खर्च नहीं किया जा रहा है।
आईएआरसी के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में लगभग दो करोड़ कैंसर के नए मामले सामने आए और कैंसर की वजह से 97 लाख लोगों की मौत हुई। कैंसर की जांच के बाद पांच साल तक जीवित रहने वाले लोगों की अनुमानित संख्या 5.35 करोड़ थी।
भारत में कैंसर के मामले
अकेले भारत में 1,413,316 नए मामले दर्ज किए गए, जिनमें महिला रोगियों का अनुपात अधिक है - 691,178 पुरुष और 722,138 महिलाएं। देश में 192,020 नए मामलों के साथ स्तन कैंसर का अनुपात सबसे अधिक है, जो सभी रोगियों में 13.6 प्रतिशत और महिलाओं में 26 प्रतिशत से अधिक है।
भारत में, स्तन कैंसर के बाद होंठ और मौखिक गुहा (143,759 नए मामले, 10.2 प्रतिशत), गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय (127,526 नए मामले, 9 प्रतिशत), फेफड़े (81,748, 5.8 प्रतिशत), और ग्रासनली कैंसर (70,637 नए, 5.5 प्रतिशत) ) के मामले सामने आए ।
आंकड़े यह भी बताते हैं कि लगभग हर पांच में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर हो जाता है और लगभग नौ में से एक पुरुष और 12 में से एक महिला की इस बीमारी से मृत्यु हो जाती है।
तीन प्रमुख कैंसर के प्रकार: फेफड़े, स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर
आईएआरसी के ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी में दुनिया के 185 देशों को शामिल किया गया है। साथ ही 36 तरह के कैंसर रोगियों को शामिल किया गया और पाया गया कि 10 तरह के कैंसर ऐसे हैं, जिनसे दुनिया की दो तिहाई आबादी पीड़ित हैं और इन्हीं कैंसर की वजह से सबसे अधिक मौतें होती हैं।
फेफड़े का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम तौर पर होने वाला कैंसर है, जिसके 25 लाख नए केस सामने आए, जो कुल नए मामलों का 12.4 फीसदी है। महिलाओं में स्तन कैंसर दूसरे स्थान पर है, जिसके 23 लाख मामले यानी 11.6 फीसदी, इसके बाद कोलोरेक्टल (मलाशय से शुरू होने वाला) कैंसर के 19 लाख मामले (9.6 फीसदी), प्रोस्टेट कैंसर 15 लाख मामले (7.3 फीसदी) और पेट के कैंसर के 9.70 लाख मले (4.9 फीसदी) हैं।
फेफड़े का कैंसर मौत का प्रमुख कारण बनता है। 2022 में इससे 18 लाख मौतें, कुल कैंसर से होने वाली मौतों का 18.7 फीसदी था। इसके बाद कोलोरेक्टल कैंसर के 9 लाख मौतें (9.3 फीसदी), लीवर कैंसर के 7.60 लाख मौतें (7.8 फीसदी), स्तन कैंसर के 6.70 लाख मौतें (6.9 फीसदी) और पेट के कैंसर के 6.60 लाख मौतें (6.8 फीसदी) होती हैं। फेफड़ों के कैंसर का सबसे आम कैंसर के रूप में फिर से उभरना संभवतः एशिया में लगातार तंबाकू के उपयोग से संबंधित है।
महिलाओं में सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर और कैंसर से होने वाली मृत्यु का प्रमुख कारण स्तन कैंसर था, जबकि पुरुषों में फेफड़ों के कैंसर की वजह से सबसे अधिक मौतेंं हुई। 185 में से 157 देशों में महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे आम कैंसर पाया गया।
पुरुषों में प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर दूसरे और तीसरे सबसे आम कैंसर थे, जबकि लीवर और कोलोरेक्टल कैंसर कैंसर से होने वाली मृत्यु के दूसरे और तीसरे सबसे आम कारण थे। महिलाओं में, फेफड़े और कोलोरेक्टल कैंसर के नए मामलों और मौतों की संख्या दोनों के मामले में दूसरे और तीसरे स्थान पर थे।
सर्वाइकल कैंसर वैश्विक स्तर पर आठवां सबसे आम तौर पर होने वाला कैंसर रहा और कैंसर से होने वाली मौतों का नौवां प्रमुख कारण था, जिसके 6,61,044 नए मामले और 3,48,186 मौतें हुईं। यह 25 देशों में महिलाओं में सबसे आम कैंसर है, जिनमें से कई उप-सहारा अफ्रीका में हैं। विभिन्न घटनाओं के स्तर को पहचानते हुए भी, डब्ल्यूएचओ सर्वाइकल कैंसर उन्मूलन पहल के माध्यम से, सर्वाइकल कैंसर को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त किया जा सकता है।
कैंसर के असमानता पर प्रहार
वैश्विक अनुमान मानव विकास के अनुसार कैंसर के बोझ में भारी असमानताएं उजागर हुई हैं। यह स्तन कैंसर के लिए विशेष रूप से सच है। उच्च मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) वाले देशों में 12 में से एक महिला को अपने जीवनकाल में स्तन कैंसर होता है और 71 में से एक महिला की इससे मृत्यु हो जाती है। इसके विपरीत, कम एचडीआई वाले देशों में 27 में से केवल एक महिला को अपने जीवनकाल में स्तन कैंसर का पता चलता है, 48 में से एक महिला की इससे मृत्यु हो जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि कम एचडीआई वाले देशों में महिलाओं में उच्च एचडीआई वाले देशों की महिलाओं की तुलना में स्तन कैंसर की जांच होने की संभावना 50 फीसदी कम है, फिर भी देर से जांच और गुणवत्तापूर्ण उपचार तक पहुंच में कमी के कारण बीमारी से मरने का खतरा बहुत अधिक है।
औसतन कम आय वाले देश की तुलना में उच्च आय वाले एचबीपी में विकिरण सेवाओं को कवर किए जाने की संभावना चार गुना अधिक थी। किसी भी सेवा के लिए सबसे बड़ी असमानता स्टेम-सेल प्रत्यारोपण थी, जिसके कम आय वाले देश की तुलना में उच्च आय वाले एचबीपी में शामिल होने की संभावना 12 गुना अधिक थी।
2050 में कैंसर का बोझ बढ़ने के आसार
2050 में 3.5 करोड़ से अधिक नए कैंसर मामलों का पूर्वानुमान लगाया गया है, जो 2022 में लगभग दो करोड़ मामलों से 77 फीसदी अधिक है। तेजी से बढ़ता वैश्विक कैंसर का बोझ जनसंख्या की उम्र बढ़ने और वृद्धि दोनों को दर्शाता है। कैंसर की बढ़ती घटनाओं के पीछे तम्बाकू, शराब और मोटापा प्रमुख कारक हैं, वायु प्रदूषण अभी भी पर्यावरणीय खतरों का प्रमुख कारण है।
उच्च एचडीआई वाले देशों में मामलों में सबसे बड़ी वृद्धि होने की आशंका है, 2022 के अनुमान की तुलना में 2050 में 48 लाख अतिरिक्त नए मामलों का पूर्वानुमाल लगाया गया है।
प्रेस विज्ञप्ति में आईएआरसी में कैंसर निगरानी शाखा के प्रमुख डॉ. फ्रेडी ब्रे के हवाले से कहा गया है कि जिन लोगों के पास अपने कैंसर के बोझ को प्रबंधित करने के लिए सबसे कम संसाधन हैं, उन्हें वैश्विक कैंसर के बोझ का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
जबकि यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल के प्रमुख डॉ. कैरी एडम्स ने कहा है कि कैंसर का शीघ्र पता लगाने और कैंसर रोगियों के उपचार और देखभाल में जो प्रगति हुई है, उसके बावजूद कैंसर के उपचार के परिणामों में भारी असमानताएं न केवल दुनिया के उच्च और निम्न-आय वाले क्षेत्रों के बीच, बल्कि देशों के भीतर भी मौजूद हैं।
उन्होंने आगे कहा, सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कैंसर की जांच व इलाज सस्ती दरों पर आसानी से उपलब्ध हो, क्योंकि यह सिर्फ संसाधन का मुद्दा नहीं है, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति का मामला भी है।