दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) सप्ताह मनाया जा रहा है, इस साल यह 18 से 24 नवंबर तक मनाया जाएगा। दवा प्रतिरोध के कारण, एंटीबायोटिक और अन्य रोगाणुरोधी दवाएं बेअसर हो जाती है और संक्रमण का इलाज करना कठिन या असंभव हो जाता है, जिससे रोग फैलने, खतरनाक बीमारी और यहां तक की मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
इसको लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के द्वारा किए गए अध्ययन ने खतरे की घंटी बजा दी है। आईसीएमआर ने दक्षिण भारत के राज्य केरल व तेलंगाना में बेचे जा रहे बॉयलर मुर्गियों में खतरनाक बैक्टीरिया की मौजूदगी की पुष्टि की है जो दवाओं का प्रतिरोध कर सकते हैं अर्थात इन पर दवाओं का असर नहीं होगा।
यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब होता है जब बैक्टीरिया दवाओं को मात देने की क्षमता विकसित कर लेते हैं।
पोल्ट्री फार्मों में एंटीबायोटिक दवाओं का बेतहाशा उपयोग इसके लिए जिम्मेदार है। आईसीएमआर के द्वारा एकत्र किए गए नमूनों में दवाओं को मात देने वाले बैक्टीरिया की एक सूची भी तैयार की है। यह चिंताजनक है कि इस सूची में क्लेबसिएला निमोनिया स्टैफिलोकोकस जैसे कई खतरनाक बैक्टीरिया शामिल हैं।
इसके अलावा पेचिश के लिए जिम्मेवार ई-कोली बैक्टीरिया और त्वचा रोग पैदा करने वाले स्टैफिलोकोकस बैक्टीरिया भी नमूनों में पाए गए हैं। कई बैक्टीरिया उच्च तापमान पर पकाने से भी नष्ट नहीं हो सकते हैं।
अध्ययन में केरल को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया, रोगाणुरोधी प्रतिरोध ज्यादातर दक्षिणी इलाकों से एकत्र किए गए नमूनों में पाया गया। अध्ययन चिकन के नमूनों को इकट्ठा करके और उनसे डीएनए को अलग करके किया गया था।
निष्कर्षों को देखे तो यह स्वास्थ्य को लेकर चुनौती देती दिख रही है। इन जीवाणुओं के कारण होने वाली बीमारियों का इलाज उनके रोगाणुरोधी प्रतिरोध के कारण बेअसर हो जाएगा।
यह बात भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के औषधि सुरक्षा प्रभाग द्वारा तुलनात्मक प्रतिरक्षा विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान और संक्रामक रोगों में प्रकाशित शोधपत्र में कही गई है।
इसके अलावा आईसीएमआर के आंकड़ों में यूरोपीय संघ (ईयू) पोल्ट्री फार्मों की कई सामान्य एएमआर प्रोफाइल की विशेषताएं थीं, लेकिन एमसीआर-एक की कमी पाई गई, वह जीन जो कोलिस्टिन के प्रति प्रतिरोध पैदा करता है। जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की जरुरी दवाओं की सूची में अंतिम उपाय के रूप में एंटीबायोटिक है।
आंकड़ों से पता चलता है कि मध्य और दक्षिण भारत में एएमआर जीन किस हद तक विकसित हुआ है और यह ईयू डेटा के बराबर है, लेकिन इसकी गंभीरता ईयू की तुलना में कम है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि इस प्रकार अब भारत के पास खाद्य श्रृंखला में एएमआर प्रसार को नियंत्रित करने का अवसर है, साथ ही जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सरकारी हस्तक्षेप की मांग की गई है।
अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि सुरक्षित चिकन ही खरीदें, इसके लिए प्रतिष्ठित दुकानों, प्रमाणित जैविक या अन्य फार्म से खरीदें। जब भी संभव हो जैविक चिकन चुनना चाहिए, इसलिए कि वे हार्मोन से मुक्त होते हैं।
फ्रोजन या फ्रिज में रखे चिकन से बचा जाना चाहिए, जब भी संभव हो ताजा चिकन ही खरीदना चाहिए। फ्रोजन चिकन में प्रिजर्वेटिव और पानी मिलाया जा सकता है और इसका स्वाद भी अलग हो सकता है। इन प्रक्रियाओं को मिलावट से बचने के लिए सावधानीपूर्वक खाद्य सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए किया जाना चाहिए।