रोजाना कोल्ड ड्रिंक पीने से मौत के करीब पहुंच सकते हैं आप : स्टडी

जामा इंटरनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है इन 16 वर्षाें की अवधि में प्रतिदिन दो या उससे अधिक गिलास सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करने वाले 11.5 फीसदी लोगों की मृत्यु हो गयी
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अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि दिन में सिर्फ दो गिलास सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन सकता है, भले ही वो सॉफ्ट ड्रिंक्स चीनी युक्त हो या नहीं

बच्चे हो या बड़े आजकल हर कोई स्वास्थ्यकर पेय पदार्थों जैसे दूध, लस्सी नीम्बू पानी के स्थान पर सॉफ्ट ड्रिंक्स लेना ज्यादा पसंद करते हैं। इन्हें हिंदी में शीतल पेय कहा जाता है और कई अन्य नामों से जाना जाता है जैसे सोडा, कोक, सोडा पॉप, फिजी ड्रिंक, टॉनिक, फ्रूट ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक आदि। पर क्या आप जानते हैं कि सिर्फ रोजाना दो गिलास सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन आपकी मृत्यु का कारण बन सकता है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ ) द्वारा 10 यूरोपीय देशों के 450,000 से अधिक वयस्कों पर किये अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि दिन में सिर्फ दो गिलास सॉफ्ट ड्रिंक पीना जल्द मृत्यु का कारण बन सकता है । इस बात से कोई बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता चाहे वह सॉफ्ट ड्रिंक चीनी युक्त हो या कृत्रिम मिठास वाला। इस अध्ययन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों की औसत आयु 51 वर्ष के करीब थी । साथ ही उनमें से 71 फीसदी महिलाएं थी | वहीं उन लोगों को कैंसर, हृदय रोग या मधुमेह जैसी बीमारियां नहीं थी, इस बात का भी ध्यान रखा गया था।

जो लोग 1992 से 2000 के बीच इस अध्ययन में शामिल हुए थे, औसतन 16 वर्षों तक उनके स्वास्थ्य का अध्ययन किया गया। गौरतलब है कि इस अवधि के दौरान 41,600 से अधिक लोगों को मृत्यु हो गयी। इस अध्ययन के दौरान, प्रतिभागियों से उनकी जीवनशैली के विभिन्न पहलुओं जैसे व्यायाम, धूम्रपान और वजन के साथ-साथ आहार और पोषण के बारे में कई सवाल पूछे गए। जिनमें सॉफ्ट ड्रिंक्स, फलों के जूस और एनर्जी ड्रिंक्स की औसत खपत शामिल है।

जामा इंटरनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है कि इन 16 वर्षों की अवधि में कुल मिलाकर प्रति दिन दो या उससे अधिक गिलास सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करने वाले 11.5 फीसदी लोगों की मृत्यु हो गयी, जबकि एक गिलास या उससे कम सेवन करने वालों की मृत्युदर 9.5 फीसदी रिकॉर्ड की गयी। हालांकि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह सॉफ्ट ड्रिंक्स चीनी युक्त थी या फिर कृत्रिम रूप से मीठी की गयी। किसी भी तरह की सॉफ्ट ड्रिंक का लगातार एक महीने तक सेवन जल्द मृत्यु के जोखिम को बढ़ा देता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि जब बॉडी मास इंडेक्स, आहार, शारीरिक गतिविधि धूम्रपान और शिक्षा जैसे अन्य कारकों को ध्यान में रखा गया, तो प्रतिदिन एक गिलास या उससे कम सॉफ्ट ड्रिंक पीने वालों की तुलना में प्रति दिन दो गिलास सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करने वालों में मृत्यु का खतरा 17 फीसदी अधिक पाया गया । इस अध्ययन में चीनी और कृत्रिम रूप से मीठी की गयी सॉफ्ट ड्रिंक दोनों के रुझान को देखा गया । साथ ही पुरुषों और महिलाओं दोनों के अलग अलग अध्यन में भी एक जैसे परिणाम सामने आये। हालांकि जब शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के बीच मृत्यु के विशिष्ट कारणों का अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि कृत्रिम रूप से मीठी सॉफ्ट ड्रिंक्स के लगातार सेवन से संचारी रोगों से होने वाली मृत्यु का खतरा कहीं अधिक था।

वहीं चीनी युक्त सॉफ्ट ड्रिंक्स से पाचन सम्बन्धी रोगों से होने वाली मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है । जबकि सभी प्रकार के सॉफ्ट ड्रिंक्स पार्किंसंस डिजीज से होने वाली मृत्यु के जोखिम को बढ़ा देती हैं। हालांकि वैज्ञानिकों ने यह भी माना है कि अध्ययन यह साबित नहीं करता है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन जल्द मृत्यु के खतरे का एकमात्र कारण है । सॉफ्ट ड्रिंक्स में मौजूद फास्फोरिक एसिड हमारी हड्डियों को कर देता है । इसके रोजाना सेवन से वजन तो बढ़ता ही है साथ ही कैफीन की लत भी लग जाती है। गैस और नींद न आना इसके सेवन से होने वाली आम समस्या है।

डब्लूएचओ की अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संस्था और इस अध्ययन के सह-लेखक डॉ नील मर्फी ने बताया कि,“ हमारा यह अध्ययन चीनी युक्त सॉफ्ट ड्रिंक्स की खपत को कम करने और उनके स्थान पर अन्य स्वास्थ्यवर्धक पेय पदार्थों के उपभोग की सलाह देती है ।" मर्फी ने कहा कि कृत्रिम मिठास वाली सॉफ्ट ड्रिंक्स स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, और इसके संभावित कारणों की खोज के लिए और अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि यह इस साल में प्रकाशित हमारा तीसरा बड़ा अध्ययन है जो कि कृत्रिम रूप से मीठे किये गए पेय पदार्थों और उनका स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के सीधे सम्बन्ध को दर्शाता है ।"

भारत में भी लगातार बढ़ रही है सॉफ्ट ड्रिंक्स की मांग

मार्केट रिसर्च फर्म यूरोमॉनिटर के मुताबिक 2015 में कार्बोनेटेड ड्रिंक्स की मांग भारत में 9 फीसदी बढ़ी गयी थी, जबकि वैश्विक स्तर पर इसकी मांग में केवल 1 फीसदी का इजाफा हुआ था। जबकि यूरोमॉनिटर के अनुसार भारत में बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती आय और युवाओं में बढ़ते रुझान के चलते गैर-कार्बोनेटेड पेय की मांग बढ़ गई है। इसके अतिरिक्त, काम के बढ़ते दबाव और सामाजिक समारोहों के बढ़ने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं में एनर्जी ड्रिंक्स की मांग बढ़ती जा रही है। यदि इसी तरह भारत में सॉफ्ट ड्रिंक्स की खपत बढ़ती रही तो वह स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हो सकती है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा किये अध्ययन के अनुसार दुनियाभर में हर साल 184,000 मौतें शुगर ड्रिंक्स की वजह से होती हैं। इनमें 133,000 मौत डायबिटीज की वजह से और 45,000 मौत हार्ट की बीमारियों की वजह से होती हैं।

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