सीएसई लैब रिपोर्ट: दुनिया भर में हैं जंक फूड के नियम पर भारत में नहीं

#Everybitekills बहुत से देशों को यह समझ में आ गया है कि बहुत सारे लेबल्स काम नहीं करते। इसके बदले चेतावनी का लेबल सबसे कारगर विकल्प है
सीएसई लैब रिपोर्ट: दुनिया भर में हैं जंक फूड के नियम पर भारत में नहीं
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भारत में पहले ही देर हो चुकी है। गलत भोजन से स्वास्थ्य की चुनौतियों को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि एफएसएसएआई दुनियाभर में अपनाए जा रहे सर्वोत्तम तरीकों से सीखेगा। बहुत से देशों को यह समझ में आ गया है कि बहुत सारे लेबल्स काम नहीं करते। इसके बदले चेतावनी का लेबल सबसे कारगर विकल्प है। एक अन्य चिंता यह है कि पैकेट के सामने बहुत से आंकड़े, एक कंपोनेंट के लिए एफओपी पर लाल निशान उपभोक्ताओं को भ्रमित कर सकते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि दूसरे कंपोनेंट सीमा से ऊपर नहीं जाते। अगर यह हरे निशान में है तो हम हरे रंग के बॉक्स बनाम लाल रंग के बॉक्स के आधार पर निर्णय ले सकते हैं। इससे गलत संदेश जाएगा और भ्रम की स्थिति बनेगी।

एफएसएसएआई ने 2019 के मसौदे में एफओपी की लेबलिंग में रंग बढ़ाने का विकल्प खुला रखा था। इसलिए हरा जैसा रंग जो सकारात्मक संकेत देता है, भविष्य में शामिल किया जा सकता है। ऐसी लेबलिंग उपभोक्ता को मिश्रित संकेत देती है। इससे उपभोक्ता को मदद नहीं मिलती।

यही वजह है कि विभिन्न देश चेतावनी के स्तर को लेबलिंग में शामिल कर रहे हैं जो हर न्यूट्रिएंट में प्रमुखता से अंकित किया जाता है। यह विश्व का सबसे उत्तम तरीका है। चिली में अधिक कैलोरी और न्यूट्रिएंट्स वाले खाद्य पैकेट में चेतावनी का स्तर लाल और सफेद रंग के अष्टकोणीय चिह्न के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। इस लेबल को समझना आसान है। इसमें आंकड़े अंकित नहीं होते, इसलिए गणना की जरूरत नहीं होती। इसमें लिखा होता है- “हाई इन शुगर” या “हाई इन कैलोरी”। अगर किसी खाद्य पदार्थ में दो अवयवों का मात्रा अधिक है तो उसे दो अष्टकोणीय चिह्न में प्रदर्शित किया जाता है। पहली नजर में इससे उपभोक्ता को यह चेतावनी मिलती है कि कोई उत्पाद स्वास्थ्य के लिए कितना हितकर या अहितकर है। चिली में चेतावनी के स्तर सर्वप्रथम 2016 में लागू किए गए थे। अडोल्फो इबान्येज विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर गियरमो परीजे बताते हैं, “चेतावनी का स्तर छह साल का बच्चा भी समझ सकता है। ये बहुत स्पष्ट, समझ में आने वाले और वह इच्छित संदेश देते हैं।” यह बहुत प्रभावी और पोषण की जानकारी को आसानी से समझाते हैं।

अमेरिका स्थित यूएनसी गिलिंग्स स्कूल ऑफ ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में न्यूट्रिशन के प्रोफेसर बैरी पॉपकिन बताते हैं, “चिली में इसके लागू होने के एक साल बाद कार्बोनेटेड बेवरेजेस का प्रति व्यक्ति उपभोग 24.9 प्रतिशत कम हो गया। जो मांएं पहले लेबल को समझ नहीं पाती थी, अब वे लेबल के आंकड़ों को मार्गदर्शक के रूप में देखती हैं। उन्हें समझ में आ गया है कि अधिक लेबल वाला उत्पाद स्वास्थ्य के लिए ज्यादा ठीक नहीं है।

चेतावनी के स्तर पेरू और कनाडा में भी लागू किए गए हैं। उरुग्वे, सिंगापुर, मैक्सिको और इजराइल भी इन्हें लागू करने के विभिन्न चरणों में हैं। चिली में चेतावनी बड़े आकार और पैकेट के सामने वाले हिस्से के बड़े भाग में होती है। यह पैक के दायीं तरफ के ऊपरी हिस्से में होती है और काले रंग के लेबल में सफेद रंग का बोर्डर ध्यान खींचता है। इससे पैकेट में चेतावनी के स्तर की स्पष्टता से पहचान हो जाती है। इस तरह के लेबल भारत में भी सफल हो सकते हैं क्योंकि आबादी का बड़ा हिस्सा निरक्षर और अंग्रेजी पढ़ने में असमर्थ है। आमतौर पर पैकेटों में अंग्रेजी का ही इस्तेमाल किया जाता है। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन में एफओपी लेबल काफी सफल रहे हैं। एफएसएसएआई वर्तमान नियमों के अनुसार, इसे लाल और हरे रंग के बिंदुओं से स्पष्ट करता है ताकि सूचना को समझना आसान हो लेकिन खाद्य नियामक अपने अनुभवों से सीखने को तैयार नहीं है।

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