कोविड टीकाकरण से नहीं बढ़ता दिल के दौरे का खतरा: अध्ययन का दावा

अध्ययन के मुताबिक, कोविड-19 वैक्सीन न केवल सुरक्षित है, बल्कि छोटी अवधि और छह महीने में मृत्यु दर में कमी के संदर्भ में सुरक्षात्मक प्रभाव भी डालती है।
फोटो साभार: आईस्टॉक
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कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं और टीकों सहित उपचार रणनीतियों का तेजी से विकास हुआ। अधिकांश टीके कम समय में विकसित किए गए थे, फिर भी उनकी प्रभावकारिता और सुरक्षा काफी थी। भारत में, दो टीकों को "आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण" प्रदान किया गया था।

पहला टीका, कोविशील्ड जिसे भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया लिमिटेड और दूसरा कोवैक्सीन जिसे भारत बायोटेक लिमिटेड के द्वारा बनाया गया था। भारत में 2 वर्षों के दौरान कोविड-19 वैक्सीन की 2.2 अरब खुराकें जिसमें कोविशील्ड की 79.3 फीसदी और कोवैक्सीन की 16.5 फीसदी, दी गई।

एक अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविड-19 टीकाकरण से दिल का दौरा पड़ने का खतरा नहीं बढ़ता है। यह अगस्त 2021 से अगस्त 2022 के बीच दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में भर्ती किए गए 1,578 दिल के दौरे के रोगियों के मामले के इतिहास के विश्लेषण पर आधारित है। यह अध्ययन पीएलओएस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि, डॉ. मोहित गुप्ता की अगुवाई में किए गए अध्ययन के मुताबिक, कुल रोगियों में से 1,086 यानी 69 फीसदी को कोविड-19 का टीका लगाया गया था, जबकि 492 यानी 31 फीसदी लोगों को टीका नहीं लगाया गया था। टीका लगाने वाले समूह में से, 1,047 96 फीसदी को टीके की दो खुराकें दी गई थीं, जबकि 39 या चार फीसदी को केवल एक खुराक दी गई थी।

अध्ययनर्ताओं ने पाया कि टीकाकरण के बाद दिल का दौरा पड़ने से कोई थक्का या क्लस्टरिंग नहीं हुई। “एसटीईएमआई के कुल 185 या 12 फीसदी के हृदय को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों में आंशिक या पूर्ण रुकावट के कारण दिल का दौरा पड़ा, जो कि, टीकाकरण के 90 से 150 दिनों के भीतर हुआ, जबकि 175 यानी 11 फीसदी मामलों में 150 से 270 दिनों के बीच हुआ। एएमआई के केवल 28 या दो फीसदी मामले पहले 30 दिनों के भीतर घटित हुए।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि दिल के दौरे के 1,578 मरीजों में से 201 या 13 फीसदी की 30 दिन में मृत्यु हुई। इनमें से 116 या 58 फीसदी टीकाकृत समूह के थे जबकि 85 या 42 फीसदी बिना टीके वाले समूह के थे।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि, जब घटना को दोनों समूहों में पहले से मौजूद खतरों के को जोड़ा गया था, तो टीकाकरण वाली आबादी में 30 दिनों की मृत्यु दर की संभावना काफी कम पाई गई। इसके विपरीत, बढ़ती उम्र, मधुमेह रोगियों और धूम्रपान करने वालों में 30 दिन की मृत्यु दर की आशंका अधिक थी।

30 दिनों से छह महीने की अवधि के दौरान, 75 रोगियों की मृत्यु हुई, जिनमें से 43.7 फीसदी को टीका लगाया गया था। अध्ययन के हवाले से डॉ. गुप्ता ने कहा कि टीका लगाए गए लोगों में मृत्यु दर की संभावना कम थी।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि, यह अध्ययन एएमआई रोगियों के बीच आयोजित किया जाने वाला पहला अध्ययन है, जिससे पता चलता है कि कोविड-19 वैक्सीन न केवल सुरक्षित है, बल्कि छोटी अवधि और छह महीने में मृत्यु दर में कमी के संदर्भ में सुरक्षात्मक प्रभाव भी डालती है।

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