उत्तर प्रदेश के आगरा में कोरोना के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन बढ़ती संख्याओं के मद्देनजर अब अधिकारियों पर कार्रवाई भी होने लगी है। आगरा के सीएमओ के हटाए जाने के बाद अब एसएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. जीके अनेजा को भी उनके पद से हटा दिया गया है। कोरोना के बढ़ते मामले और फिर इन कार्रवाईयों से यह सवाल उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश का 'आगरा मॉडल' फ्लॉप साबित हुआ है?
आगरा मॉडल क्या है?
उत्तर प्रदेश के आगरा में कोरोना का पहला मामला 2 मार्च को आया था। इसके बाद से ही आगरा प्रशासन ने भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के कंटेनमेंट प्लान को अपने यहां लागू कर दिया। इसका फायदा भी मिला और 11 अप्रैल तक वहां 92 मरीज ही पॉजिटिव पाए गए। आगरा मॉडल का जिक्र खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया था।
11 अप्रैल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, ''कोरोना मामलों का पहला क्लस्टर आगरा में आया था। वहां के बारे में आपको बताना चाहूंगा कि आज तक वहां 92 केस आए हैं, जिसमें से 5 मरीज पूरी तरह रिकवर हो गए हैं। 87 मरीजों पर निगरानी रखी जा रही है और खुशी की बात है कि उनमें से कोई भी केस क्रिटिकल नहीं है।''
यहीं से सबका ध्यान 'आगरा मॉडल' पर गया। लेकिन इसके बाद स्थिति बदलती गई। 13 मई तक आगरा में मरीजों की संख्या 791 हो गई। इनमें से 364 मरीज ठीक हो चुके हैं। वहीं, 24 लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। इन आंकड़ों के साथ आगरा उत्तर प्रदेश में कोरोना के मामलों में टॉप पर है।
बीते एक महीने में ऐसा क्या हुआ कि जिस आगरा मॉडल की तारीफ खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलाय कर रहा था वहां कोरोना की स्थिति इतनी भयावह हो गई। इस बारे में जब स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल से 29 अप्रेल को पूछा गया था तो उन्होंने कहा था, ''हम आपके सामने बेस्ट प्रैक्टिस लेकर आते हैं ये बताने के लिए कि वहां अच्छे प्रयास किए गए। हमने हमेशा कहा है कि हम एक इंफेक्शन वाली बीमारी से डील कर रहे हैं। हमारी एक दिन की चूक, हमें उस जगह दोबारा ले जा सकती है, जिससे हमारा सक्सेस नॉन सक्सेस में बदल जाए।''
चूक कहां हुई?
लेकिन 'आगरा मॉडल' में चूक कहां हुई? इस बात को समझने के लिए डाउन टू अर्थ ने लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के रेसपिरेट्री मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत से बात की। डॉ. सूर्यकांत उत्तर प्रदेश सरकार की एक थर्ड पार्टी ऑडिट टीम का नेतृत्व कर रहे हैं, जो 17 से 19 अप्रैल तक आगरा में थी।
डॉ. सूर्यकांत कहते हैं, ''हमारी टीम जब आगरा पहुंची तो हमने कोरोना वॉरियर्स के साथ एक मीटिंग की। इसमें स्थानीय प्रशासन के अधिकारी शामिल नहीं थे। इस मीटिंग से हमें पता चला कि आगरा में कोरोना जांच की सुविधा कम थी। एसएन मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सिर्फ दो शिक्षक थे और टेक्नीशियन और दूसरा स्टाफ भी कम था। माइक्रोबायोलॉजी विभाग को जांच करने वाली एक मशीन मिली हुई थी, जिससे सिर्फ 100 जांच हो पाती थी और जांच के सैंपल रोजाना 400 से 500 आ रहे थे। हाल यह था कि जांच करने वाले कर्मचारियों पर इतना लोड था कि वो ठीक से सो नहीं पा रहे थे।''
''मुझे ख्याल आया कि आगरा में ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक लैब है, जिसका नाम जालमा (JALMA) है। जालमा वहां टीबी की जांच और रिसर्च करती है। हमारी टीम ने प्रस्ताव दिया कि इस लैब से भी कोरोना की जांच हो और 17 अप्रैल से ही जांच होने लगी, इससे वर्क लोड कम हुआ। फिर हमने जिला अस्पताल के कर्मचारियों को ट्रेनिंग देकर जांच कराने को भी कहा, जिससे जिला स्तर पर भी जांच होने लगी है। चूंकि अब अधिक जांच हो रही तो मरीज भी अधिक सामने आ रहे हैं,'' डॉ. सूर्यकांत ने बताया।
सब्जी बेचने वाला सुपर स्प्रेडर
डॉ. सूर्यकांत के मुताबिक अप्रेल के पहले सप्ताह में आगरा में एक सब्जी वाला कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। इस सब्जी वाले से लंबी चेन बनी थी। इस चेन ने भी आगरा मॉडल को फेल करने का काम किया है। डॉ. सूर्यकांत कहते हैं, ''कोरोना के लिए ट्रेसिंग बहुत जरूरी है, लेकिन सब्जी वाले ने किसे-किसे सब्जी बेची है यह कोई कैसे ट्रेस करेगा। हमारी टीम के प्रस्ताव के बाद ऐसे सभी लोगों की जांच हुई और फिर मरीज सामने आने लगे।''
सब्जी वाले कोरोना पॉजिटिव के अलावा अप्रेल के पहले सप्ताह में ही तब्लीगी जमात के मरकज में शामिल लोग भी आगरा लौटे थे। ऐसे करीब 300 लोगों की स्क्रीनिंग हुई थी और उनमें से 105 लोग पॉजिटिव निकले थे।
प्राइवेट अस्पतालों से भी फैला कोरोना
आगरा में प्राइवेट अस्पताल भी सुपर स्प्रेडर बन कर उभरे थे। अप्रेल के मध्य में आगरा के पारस हॉस्पिटल का मामला सामने आया। इस अस्पताल में भर्ती एक महिला कोरोना पॉजिटिव पाई गई। इसके अलावा अस्पताल के कर्मचारी और दूसरे मरीज भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। यह इतना बड़ा आउटब्रेक था कि जिला प्रशासन को इस अस्पताल में इलाज करा चुके मरीजों को भी ट्रेस करना पड़ा।
डॉ. सूर्यकांत प्राइवेट अस्पतालों को भी एक बड़ा कारण मानते हैं। वो कहते हैं, ''अप्रेल में बड़ी संख्या में प्राइवेट अस्पतालों में लापरवाही की खबरें आ रही थीं। यह अस्पताल सुपर स्प्रेडर बन गए थे। हमारी टीम ने प्रशासन से कहा कि अस्पतालों को बताया जाए कि हर रोगी को चाहे वो किसी भी चीज का इलाज कराने आए, उसे कोविड-19 का पॉजिटिव माना जाए, जब तक रिजल्ट न आ जाए। इस पॉलिसी को लागू किया गया और तब से अब तक किसी भी प्राइवेट अस्पताल में ऐसी चूक देखने को नहीं मिली है।''
‘फेल हो चुका था आगरा मॉडल’
इन तमाम घटनाओं के बाद सवाल वही बना हुआ है कि 'क्या आगरा मॉडल फेल हो गया?' इस सवाल के जवाब में डॉ. सूर्यकांत कहते हैं, ''आगरा का कंटेनमेंट मॉडल फेल हो चुका था। हमारी टीम जब आगरा गई और जो प्रस्ताव दिए उसके बाद अब सुधार हो रहा है। एक महीने के बाद आगरा के हालात में सुधार दिखने लगेगा और वो रेड जोन से ऑरेंज और ग्रीन जोन में बदल जाएगा।''
आगरा के मेयर ने कहा था - आगरा देश का वुहान बन जाएगा
उत्तर प्रदेश सरकार की इस ऑडिट टीम के विजिट के बाद ही आगरा के मेयर का एक लेटर भी वायरल हुआ था। आगरा के मेयर नवीन जैन ने 21 अप्रेल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह लेटर लिखा था। इस लेटर में वह जिला प्रशासन पर कोरोना को लेकर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हैं। नवीन जैन लिखते हैं, ''आगरा में कोरोना के मरीजों की संख्या 313 तक पहुंच चुकी है। आशंका है कि उचित प्रबंधन नहीं हुआ तो आगरा देश का वुहान बन सकता है।''