भारत इस समय कोरोना वायरस के नए और तीव्र संक्रामक वैरिएंट ओमिक्रॉन से उपजी लहर का सामना कर रहा है। इसे ध्यान में रखकर मेडिकल विशेषज्ञों ने पुरानी गल्तियों को न दोहराने, खासकर इलाज से जुड़ीं बातों को लेकर चेतावनी दी है।
कोरोना की पहली दो लहरों में इसके मरीजों के इलाज के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, स्वास्थ्य-लाभ से जुड़ी प्लाज्मा थेरेपी, आइवरमेक्टिन, फेविपिरवीर, डॉक्सीसाइक्लिन और एंटीबायोटिक्स का देश में बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया गया था।
उस समय इन सभी की प्रभावशीलता को लेकर सवाल भी उठाए गए थे, हालांकि अब यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस से प्रभावित मरीजों के इलाज में इनमें से किसी की कोई भूमिका नहीं थी।
स्वास्थ्य-विश्लेषक और महामारी-विशेषज्ञ चंद्रकांत लहरिया ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा, ‘कोरोना की पहली दो लहरों में लोगों की जान बचाने के लिए प्रयोग के तौर पर किसी खास थेरेपी का इस्तेमाल करना सही था। जबकि अब हमें कोविड-19 के इलाज के बारे में पहले से कहीं बेहतर जानकारी है।’