कोविड 19 संकट : लद्दाख के पर्व लोसार में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक

ठंड के दिनों में लद्दाख में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और श्वसन संबंधी रोग से ग्रसित मरीजों की संख्या बढ़ने लगती है। वहीं कोविड-19 के नाजुक वक्त में पटाखों से स्थिति संवेदनशील हो सकती है।
कोविड 19 संकट : लद्दाख के पर्व लोसार में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक
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वायु प्रदूषण, ठंड और कोविड-19 के गठजोड़ से पैदा होने वाले खतरे की आशंका के चलते संघ शासित प्रदेश लद्दाख में 31 दिसंबर, 2020 तक पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक रहेगी। ऐसे में नए साल का पारंपरिक पर्व लोसार, नया साल या क्रिसमस के मौके पर लद्दाख में पटाखों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। 

कोविड-19 महामारी संकट और वायु प्रदूषण के गठजोड़ से स्थिति खराब होने की आशंका के चलते इस बार दीपावली पर्व में दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी। हालांकि, यह पूरी तरह कामयाब नहीं रही। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के 5 नवंबर, 2020 के आदेश को ध्यान में रखते हुए लद्दाख के कमिश्नर रिगजियान सैंफल ने हाल ही में आदेश जारी कर कहा है कि 01 दिसंबर से 31 दिसंबर, 2020 तक संघ शासित प्रदेश में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक रहेगी। यदि कोई आदेश का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। 

लद्दाख में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने संबंधी जारी आदेश में कहा गया है कि ठंड के समय में लद्दाख में ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाती है और श्वसन संबंधी रोग वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ जाती है। ऐसे में यह महसूस किया गया है कि लोसार, नए वर्ष, और क्रिसमस के मौके पर पटाखे जलाए या दगाये जाते हैं जिससे हवा में खतरनाक रसायन तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे घर में आइसोलेट किए गए लोग जो कोरोना संक्रमण के कारण श्वसन संबंधी परेशानियां झेल रहे हैं, उनकी मुसीबतें और ज्यादा बढ़ सकती हैं। 

दिल्ली-एनसीआर में इस बार पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद पटाखे जलाए गए थे, हालांकि मौसम के सहयोग के चलते प्रदूषण हवा में कैद न हो सका और दमघोंटू स्थिति ज्यादादेर तक टिक नहीं पाई। वहीं, पहाड़ी क्षेत्रों में ऊंचाई पर जहां ऑक्सीजन की उपलब्धता कम है, वहां जरूर पटाखे स्थिति को भयावह बना सकते हैं। 

लोसार एक तिब्बती पर्व है, यह नए साल के शुरुआत का पर्व है, जिसे लद्दाखी लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। 

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