16 महीने में कोविड संक्रमण से उतनी मौतें, जितनी 20 साल की प्राकृतिक आपदाओं में नहीं हुईं

यह महामारी बेहद जानलेवा साबित हो रही है। हालिया इतिहास में इतने कम समय में किसी भी आपदा ने तीन लाख से ज्यादा लोगों की जान नहीं ली है।
photo : wikipedia
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नोवल कोरोना वायरस (कोविड-19) ने बेहद कम समय में बड़ी संख्या में लोगों की जिंदगी का दिया बुझा चुका है। कोरोना वायरस के कारण कुछ महीनों के भीतर होने वाली मौतों का आंकड़ा बीते कई सालों में किसी प्राकृतिक या चिकित्सकीय आपदा के मुकाबले बहुत ज्यादा हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, 17 अप्रैल 2021 को कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 30 लाख का आंकड़ा पार गई। इस आंकड़े तक पहुंचने में सिर्फ एक साल चार महीने का वक्त लगा।

कोरोना महामारी दुनिया भर के 219 देशों में फैली हुई है, लेकिन सात देश ऐसे हैं, जहां से दुनिया में कोरोना से हुई कुल मौतों (3,014,240) के आधे मामले सामने आए हैं। इन देशों में अमेरिका (579,942), ब्राजील (369,024), मैक्सिको (211,693), भारत (175673), यूके (127,225), इटली (116,366) और फ्रांस (100,404) शामिल हैं।

डब्ल्यूएचओ के पास साप्ताहिक आधार पर दर्ज होने वाले कोरोना संबंधी मौत के वैश्विक मामलों में जनवरी 2021 में उछाल आया और उसके बाद घट गया। लेकिन 10 मार्च, 2021 के बाद आंकड़े फिर से बढ़ने लगे हैं।

दुनिया के साथ-साथ भारत के स्तर पर अगर कोविड-19 से होने वाली मौतों की प्राकृतिक या चिकित्सा आपदा में मौतों की तुलना करें तो वे आंकड़ें बहुत कम हैं।

उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन) (यूएनओडीआरआर) के मुताबिक साल 2000 और 2019 के बीच दुनिया की 10 सबसे घातक प्राकृतिक आपदाओं में 0.94 मिलियन लोगों ने जान गंवाई। इनमें तीन बड़ी आपदाएं- 2004 हिंद महासागर सुनामी, म्यामार में 2008 चक्रवाती तूफान नरगिस और 2010 हैती भूकंप शामिल हैं।

दुनिया में दूसरी हालिया स्वास्थ्य आपदाओं के मुकाबले कोविड-19 किस रफ्तार से लोगों की जिंदगी छीन रही है, इसका आकलन करके मौतों की संख्या को समझा जा सकता है।

एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) ने तीन साल - 2017, 2018 और 2019 में 24 लाख लोगों की जिंदगी छीनी, जबकि कोविड-19 ने 1 वर्ष और 4 महीने के कम समय में 30 लाख से ज्यादा लोगों के जीवन में अंधेरा कर दिया है।

टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस के चलते दो साल में लगभग 29 लाख लोगों की मौत हुई। भारत में, 17 अप्रैल 2021 तक कोविड-19 की वजह से 0.175 मिलियन से ज्यादा लोगों की मौत हुई।

भारत में महामारी से मरने वालों का आंकड़ा हाल के दो दशकों (2000-2019) के दौरान 320 से अधिक प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों की संख्या का दोगुना है।

2020 में जारी यूएनओडीआरएर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2000-2019 के दौरान 321 प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 79,732 लोगों की मौत हुई।

तीसरी सबसे बड़ी वजह

इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएसएमई) के हालिया आलकनों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर हृदय रोग और स्ट्रोक के बाद कोविड-19 अब मौत की तीसरी प्रमुख वजह बन चुका है।

आईएचएमई, वाशिंगटन विश्वविद्यालय, यूएस में एक स्वतंत्र वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र है।  भारत में सितंबर 2020 से लेकर फरवरी 2021 के बीच तक कोविड-19 के दैनिक मामलों और मौतों की संख्या में गिरावट देखी गई थी, लेकिन अब ठीक उलटा रुझान है।

संक्रमण के मामलों का बढ़ना चिंताजनक है और मौतों की संख्या का बढ़ना तो और भी ज्यादा चिंताजनक है।

16 अप्रैल, 2021 को 1338 लोगों की मौत के साथ महामारी बेहद जानलेवा साबित हो रही है। महज एक हफ्ते (10-16 अप्रैल, 2021) में कोविड-19 के चलते होने वाली मौतें लगभग 60 फीसदी बढ़ गई हैं।

मार्च 2021 के अंत में, जब रोजाना होने वाली मौतें औसतन 530 प्रतिदिन थीं,  तब भारत में मौत के कारणों में कोविड-19 15वें नंबर पर था।

10-17 अप्रैल, 2021 के बीच रोजाना होने वाली मौतों पर बारीकी से नजर डालने से पता चलता है कि प्रति दिन औसतन 1,000 से ज्यादा लोग मर रहे हैं. यह उछाल एक हफ्ते के भीतर आया है, क्योंकि 3-10 अप्रैल, 2021 के सप्ताह में प्रति दिन औसतन 618 लोगों की मौत हुई थी।

अगर कोई 31 मार्च, 2021 को भारत के लिए आईएसएमई के अनुमानों को देखें तो कोविड-19 मधुमेह को पीछे छोड़कर मौत की आठवीं प्रमुख वजह बनता दिखाई दे सकता है।

बीते चार दिनों के रुझानों के आधार पर अब यह टीबी की जगह मौत की सातवीं बड़ी वजह होने के नजदीक है।

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