एक हालिया शोध से पता चला है कि जिन मरीजों को टाइप 1 और टाइप 2 मधुमेह के साथ-साथ कोविड-19 है, उनके गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा 3 गुना ज्यादा होता है। साथ ही उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की भी आवश्यकता पड़ती है। यह शोध जर्नल डायबिटीज केयर में प्रकाशित हुआ है।
इसे समझने के लिए वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, अमेरिका के शोधकर्ताओं ने 614,113 मरीजों के स्वास्थ्य सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इनमें से 613,840 रोगी सिर्फ कोविड-19 से ग्रस्त थे, जबकि 273 मरीज कोविड-19 के साथ-साथ टाइप 1 और टाइप 2 मधुमेह से भी ग्रस्त थे।
शोध के अनुसार जिन मरीजों को टाइप 1 डायबिटीज के साथ कोविड-19 भी है उनके अस्पताल में भर्ती होने की सम्भावना, केवल कोविड-19 से ग्रस्त मरीजों की तुलना में 3.9 गुना ज्यादा होती है। साथ ही उनके कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार होने की सम्भावना 3.35 गुना ज्यादा थी। अध्ययन के अनुसार टाइप 2 डायबिटीज रोगियों में कोविड-19 का जोखिम कहीं ज्यादा होता है।
जिसका मतलब था कि टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज़ के साथ-साथ कोविड-19 से पीड़ित रोगियों के गंभीर रूप से बीमार होने की सम्भावना कम से कम तीन गुना ज्यादा थी। साथ ही बिना डायबिटीज वाले लोगों की तुलना में उनके अस्पताल में भर्ती होने की सम्भावना कहीं ज्यादा थी।
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जस्टिन ग्रेगोरी के अनुसार विश्लेषण से पता चला है कि टाइप 1 या टाइप 2 मधुमेह रोगियों में कोविड-19 से गंभीर रूप से ग्रस्त होने का खतरा कहीं ज्यादा है यही वजह है कि हृदय और फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त लोगों की तरह ही मधुमेह से ग्रस्त रोगियों पर भी विशेष ध्यान देने की जरुरत है। साथ ही उनके टीकाकरण की जरुरत भी ज्यादा है।
शोध के अनुसार जो रोगी अपने मधुमेह को कंट्रोल करने के लिए बेहतर तकनीक का उपयोग करते हैं, उनके गंभीर रूप से बीमार होनी की सम्भावना कम थी। साथ ही अध्ययन के अनुसार उम्र, वंश और अन्य कारक भी उसपर असर डालते हैं।
टाइप 1 डायबिटीज रोगियों पर कोविड-19 कितना गंभीर असर डालेगा यह ग्लाइसेमिक, वस्कुलर और सामाजिक-आर्थिक जोखिमों पर भी निर्भर करता है। यदि रोगियों को कोविड-19 के साथ टाइप 1 डायबिटीज है तो रोगी के मरने की सम्भावना 3.5 गुना ज्यादा थी। जबकि यदि उसे टाइप 2 डायबिटीज है तो यह सम्भावना दो गुना ज्यादा है।
इस मामले में विशेषज्ञों को चिंता है कि कोविड-19 का प्रसार सर्दियों में बहुत अधिक बढ़ जाएगा और मधुमेह से ग्रस्त मरीजों को यह कहीं ज्यादा प्रभावित करेगा। तापमान में गिरावट के साथ-साथ, लोग घरों में रहने को मजबूर हो जाएंगे, आर्द्रता में कमी आएगी और सामाजिक दूरी बनाए रखना भी मुश्किल हो जाएगा।
पिछले अध्ययनों से पता चला है कि सर्दियों के मौसम में जब तापमान में गिरावट आती है और ठंड बढ़ती है तो उसके साथ-साथ कमरे में सापेक्ष आर्द्रता भी कम हो जाती है। फ्लू से जुड़े वायरस ऐसे समय में आसानी से जीवित रहते है और ठंडी और शुष्क हवा में अधिक आसानी से प्रसारित होते हैं। यह बात सार्स-कोव-2 वायरस पर भी लागु होती है, जिसकी संरचना और आकर भी फ्लू वायरस के समान ही होती है।