देश मांगे ऑक्सीजन : मध्य प्रदेश में पंद्रह दिन में आठ गुना हुई आक्सीजन की सप्लाई, फिर भी लगातार मौतें

अस्पतालों ने मरीजों से यह लिखवाना भी शुरू कर दिया कि आक्सीजन की सप्लाई बाधित है और वह अनहोनी के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। मरीजों के परिजनों को खुद आक्सीजन लाने की शर्त पर एडमिट करना शुरू किया
देश मांगे ऑक्सीजन : मध्य प्रदेश में पंद्रह दिन में आठ गुना हुई आक्सीजन की सप्लाई, फिर भी लगातार मौतें
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मध्य प्रदेश में भी ऑक्सीजन की कमी और उससे होने वाली मौतों को लेकर हंगामा है। अभी तक जितनी भी खबरें ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मृत्यु की आई हैं उन सभी खबरों के विपरीत शासन-प्रशासन ने यह बताने की कोशिश की है कि आक्सीजन खत्म नहीं हुई, बल्कि प्रेशर कम हुआ तो कहीं यह बताया गया कि गंभीर संक्रमित मरीजों की मौत हुई। लेकिन इन दावों के उलट कई मरीजों की अटेंडरों ने इन घटनाओं के वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालें हैं, जिनमें आक्सीजन ख़तम हो जाने का अलर्ट दिखाई और सुनाई दे रहा है। प्रशासन लगातार स्थिति सामान्य बताता रहा, लेकिन वास्तव में लोग आक्सीजन को लेकर अब भी परेशान हैं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केंद्र और पडोसी राज्यों से गुहार लगा चुके हैं। इसके बाद भी संकट टला नहीं है।

मध्य प्रदेश (मप्र) में 23 अप्रैल के हेल्थ बुलेटिन के अनुसार राज्य में 87540  एक्टिव केस हैं, पोजिटीविटी रेट 23.7 तक पहुँच गया है, सबसे ज्यादा केस मप्र के चार महानगरों में निकल रहे हैं, इंदौर और भोपाल में एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ लगी है। 14 मार्च को पोजिटीविटी रेट 4.5 और उससे एक माह पहले 14 फरवरी को 1.5 प्रतिशत था। 23 अप्रैल को प्रदेश में कुल 74 मृत्यु होना बताया है, अब तक कोविड से 4937 लोगों की मौत हुई है। हेल्थ बुलेटिन के अनुसार 14 फरवरी तक प्रदेश में दो लाख 57 हजार 646 केस दर्ज हुए थे,  जो बढकर 472785 तक पहुँच गए हैं।

इस बीच प्रदेश में रेम्देसिबिर इंजेक्शन, आक्सीजन बेड, आई सी यू और आक्सीजन सिलेंडर की भारी अफरातफरी मची हुई है।

दरअसल मप्र में मेडिकल आक्सीजन का अपना कोई प्लांट ही नहीं है। आक्सीजन का बड़ा हिस्सा नागपुर (महाराष्ट्र) से आता है। इसे बॉटलिंग और डिस्ट्रीब्यूशन के जरिए अस्पतालों को सप्लाई किया जाता है,

भोपाल में साठ प्रतिशत सप्लाई गोविन्दपुरा स्थित एक प्लांट के जरिए होती है। संकट तब शुरू हुआ इस प्लांट में अप्रैल के पहले सप्ताह में छह दिन तकनीकी कारणों से काम ही हो नहीं पाया। उधर कोरोना के सबसे बड़े हॉट स्पॉट इंदौर में भी मरीज बढने के साथ आक्सीजन का संकट शुरू हो गया।प्रशासन ने ओद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर की आक्सीजन से संकट को कम किया।

ऐसा नहीं है कि आक्सीजन के इस संकट का अंदाजा नहीं था, पहली लहर में आक्सीजन की जरूरत को देखते हुए सरकार मध्यप्रदेश के बाबई मुहासा में आक्सीजन प्लांट लगाने की घोषणा पिछले साल अक्टूबर में की थी। 210 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता वाले प्लांट को 125 करोड़ की लागत से बनाया जाना था, लेकिन केस कम होने के साथ ही इसका काम भी ठंडा पड़ता चला गया, बीते सात महीनों में इसकी केवल चारदीवारी ही खड़ी हो सकी।

मध्यप्रदेश में 6 अप्रैल को 60 मीट्रिक टन आक्सीजन प्राप्त हो रही थी, जिसे 9 अप्रैल तक तीन गुना बढाकर 180 मीट्रिक टन कर दिया गया, 15 अप्रैल को 295 मीट्रिक टन से बढकर 22 अप्रैल तक 463 मीट्रिक टन हो गयी। पिछले पन्द्रह दिनों में आक्सीजन की उपलब्धता को आठ गुना तक बढाया गया है, लेकिन इसके बावजूद अस्पतालों में आक्सीजन कम पड़ रही है।

बताया जाता है कि प्रदेश में कुल आवश्यकता का 25 प्रतिशत कम है। इसी वजह से अस्पतालों ने मरीजों से यह लिखवाना भी शुरू कर दिया कि आक्सीजन की सप्लाई बाधित है और वह किसी भी अनहोनी के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। वहीँ की अस्पतालों ने मरीजों के परिजनों को खुद आक्सीजन लाने की शर्त पर भर्ती किया है।

गुरूवार को ही भोपाल शहर के एक गैर सरकारी अस्पताल में आक्सीजन एक घंटे की रह गयी थी। आक्सीजन की सप्लाई के लिए बेहीईल अपनी बड़ी भूमिका निभा रहा है, यहाँ हद दिन आक्सीजन के लिए अस्पताल के वाहनों की लम्बी कतार लग रही है

यह कमी तब पड़ रही है जब सरकार के अलावा इंदौर में भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय, जबलपुर में कांग्रेस नेता विवेक तनखा, छिंदवाडा में कमलनाथ। जबलपुर में ही पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नोई और नेता और स्वयंसेवी संगठन भी व्यक्तिगत रूप से आक्सीजन का इन्तेजाम कर रहे हैं।

उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया है कि केंद्र सरकार से 22 अप्रैल से 643 मीट्रिक टन प्रतिदिन ऑक्सीजन आपूर्ति की स्वीकृति मिली है। राज्य सरकार ने 2000 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदे गए हैं। 34 जिलों में स्थानीय व्यवस्था से एक हजार से अधिक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स लगाए जा चुके हैं।

इन मौतों के बाद प्रदेश के 5 जिला चिकित्सालयों (भोपाल, रीवा, इंदौर, ग्वालियर और शहडोल) में 1 करोड़ 60 लाख रुपए की लागत से ऑक्सीजन प्लांट्स लगाए जा रहे हैं। इनमें 300 से 400 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन बनेगी।

अगली कड़ी में पढ़िए छत्तीसगढ़ में क्या है ऑक्सीजन की स्थिति 

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