कोरोनावायरस: बड़ी समस्याओं का कारण बन गई टेस्टिंग में की गई छोटी गलतियां

कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति के मन में एंटीबॉडी टेस्ट देने को ले कर जितना उत्साह है, उतना ही उस पर विवाद भी है...
Photo: Monika Wisniewska/shutterstock
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जब आर्थिक गतिविधियां शुरु होंगी, तब नया एंटीबॉडी परीक्षण जनता को संक्रमण से मुक्त रखने में गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं। इस बीमारी की गिरफ्त में आ चुके लोगों को इम्युनिटी पासपोर्ट देने से हजारों लोग काम पर लौट सकेंगे।

हालांकि, इस नए विचार को लेकर जितना उत्साह है, उतना ही विवाद भी है। कई लोगों के मन में इस टेस्ट को ले कर शंकाएं हैं। कठिन आर्थिक परिस्थितियों में लोगों को काम पर भेजने के लिए अवांछित तरीके से प्रोत्साहित किया जा सकता है। कई लोग मेडिकल डेटा के केंद्रीकृत भंडारण से संबंधित गोपनीयता की समस्या से सशंकित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इस बात पर संदेह जताया है कि कोविड-19 से उबरने वाले लोगों को भविष्य में संक्रमण से कैसे बचाया जाएगा।

परीक्षण की सटीकता से संबंधित चिंताओं पर सबसे कम ध्यान दिया गया है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने कोविड-19 के लिए एंटीबॉडी टेस्ट लाने के लिए सात निर्माताओं को एक आपातकालीन उपयोग अधिकार दिया है। जिस पहले टेस्ट को ये अधिकार मिला है, उसे सेलेक्स द्वारा विकसित किया गया था। यदि आपके शरीर में कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी हैं, तो इसका परीक्षण आपको 93.8 प्रतिशत बार आपको सही रिजल्ट बताएगा (यह परीक्षण की 'संवेदनशीलता' है) और यदि एंटीबॉडी नहीं है, तो यह 95.6 प्रतिशत बार सही रिजल्ट बताएगा (यह परीक्षण की 'विशिष्टता' है)। 90 प्रतिशत से अधिक सही परिणाम प्राप्त करना काफी उत्साहजनक दिखता है।

लेकिन इस बात पर विचार करें कि अगर 10,000 लोगों का परीक्षण हो तो क्या होगा, जैसाकि नीचे दिए डायग्राम में बताया गया है। हालांकि, (अनुमान में काफी भिन्नता है), डब्ल्यूएचओ ने हाल ही में सुझाव दिया था कि वैश्विक जनसंख्या का 3 प्रतिशत कोविड-19 से संक्रमित हो सकता है। इसका मतलब है कि 10,000 में से 9,700 लोगों को यह बीमारी नहीं होगी। अब जो 300 कोविड-19 मरीज ठीक हो चुके है, उनका 93.8 प्रतिशत यानी 281  को सही-सही बताया जाएगा कि उनके पास रोग के खिलाफ एंटीबॉडी हैं। जिन 9,700 लोगों को बीमारी नहीं थी, उनमें 4.4 प्रतिशत यानी 427 लोगों को ये परीक्षण गलत तरीके से बताएगा कि उन्हें यह बीमारी थी और अब वे ठीक हो गए हैं।

जब आबादी के बीच बीमारी का प्रसार कम होता है तब फाल्स पॉजिटिव, ट्रु पॉजिटिव को पीछे छोड़ सकती है और परीक्षण में विशिष्टता का अभाव होता है।

संक्षेप में, अधिकतर लोगों को ट्रु (सही) पॉजीटिव रिजल्ट की तुलना में फाल्स (गलत) पॉजीटिव रिजल्ट मिलेगा। जो लोग फिर से काम पर भेजे जाएंगे, उनमें से 60 प्रतिशत को संक्रमण का खतरा हो सकता है और अनजाने में दूसरों को ये बीमारी फैल सकती है। इससे कोविड-19 महामारी का एक दूसरा चरण शुरु हो सकता है। यदि आबादी में बीमारी का वास्तविक प्रसार 1 प्रतिशत है, तो यह आंकड़ा 80 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

जैसाकि मैंने मैथ्स ऑफ लाइफ एंड डेथ में बताया है, स्क्रीनिंग प्रोग्राम्स में यह स्थिति आम है। उदाहरण के लिए, ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग में फाल्स पॉजिटिव 3:1 के अनुपात में ट्रु पॉजिटिव को पीछे धकेल सकती है। नतीजा, अनावश्यक प्रक्रियाओं को अपनाने की जरूरत और बेवजह की चिंता।

हालांकि, उसी एंटीबॉडी टेस्ट को दोहराने से फाल्स पॉजिटिव की दर कम हो सकती है। उन लोगों का दुबारा टेस्ट करना, जो पहले टेस्ट में पॉजिटिव निकले और केवल उन लोगों को इम्यूनिटी पासपोर्ट जारी करना, जिनका दो पॉजिटिव रिजल्ट आ चुका है, एक महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है, क्योंकि ये फाल्स पॉजिटिव का अनुपात 7 प्रतिशत से नीचे ला सकता है (नीचे डायग्राम देखें)।

लेकिन डबल-टेस्टिंग तभी काम करते हैं जब दोनों टेस्ट के नतीजे स्वतंत्र हों। हालांकि, फाल्स पॉजिटिव का कारण व्यवस्थित है। उदाहरण के लिए, अन्य कोरोना वायरस से एंटीबॉडी का पता लगाया जाएगा तो फिर दूसरा टेस्ट, पहले टेस्ट के मुकाबले बेहतर होगा, ऐसा मानना मुश्किल है।

यदि कोई अधिक सटीक टेस्ट उपलब्ध नहीं है, तो सभी पॉजिटिव टेस्टिंग रोगियों की दुबारा टेस्टिंग से  नाटकीय रूप से फाल्स पॉजिटिव की दर कम हो सकती है, लेकिन ऐसा तभी होगा अगर त्रुटि व्यवस्थित नहीं है।

फाल्स निगेटिव्स

जब व्यापक समुदाय में फाल्स पॉजिटिव पहले से एक समस्या है, ऐसे में अस्पताल फाल्स निगेटिव जैसी समस्या का सामना भी कर सकते हैं। कोविड-19 संक्रमित मरीजों की आरटी-पीसीआर टेस्ट, कई कारणों से (गलत तरीके से स्वैबिंग और वैरिएबल वायरल लोड आदि) 30 प्रतिशत तक फाल्स निगेटिव रिजल्ट देते हैं। जब एक समूह में बीमारी का प्रसार अधिक होता है (जैसाकि संदिग्ध कोविड-19 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया जाता है),  फाल्स निगेटिव, ट्रु निगेटिव को पीछे छोड देते है और फिर नतीजे विनाशकारी होते हैं।

यह मानना ​​स्वाभाविक है कि कोविड-19 के गंभीर लक्षणों के साथ अस्पताल जाने वाले लोगों को शायद यह बीमारी हो। इनकी जांच सही ढंग से होनी चाहिए, ताकि उन्हें सामान्य अस्पताल से अलग रख कर बेहतर इलाज दिया जा सके।

यह मानते हुए कि इनमें से 90 प्रतिशत मामलों में बीमारी होगी, यह सवाल स्वाभाविक है कि निगेटिव टेस्ट रिजल्ट का कितना अनुपात सही है। इसके जवाब में पहले के गणितीय तर्क का उपयोग करते हुए नीचे दिए गए डायग्राम को देखते है। 10,000 रोगियों के नमूने पर विचार करें, तो हर चार में से एक मामले में निगेटिव रिजल्ट सही हो सकता है।

अस्पतालों के लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या है। जिन मरीजों को अलग-थलग किया जाना चाहिए, उन्हें गलत तरीके से कोविड-19 निगेटिव वार्डों में भेजा जा सकता है। इन्हें गलत उपचार दिया जा सकता है या यह सोच कर घर भेजा जा सकता है कि वे बीमारी फैलाने वाले संक्रामक मरीज नहीं हैं।

निगेटिव आरटी-पीसीआर टेस्ट रिजल्ट का चौथाई हिस्सा अही हो सकता हैं। इस डायग्राम में 90 प्रतिशत संक्रमितों के बीच 5 प्रतिशत की फाल्स पॉजिटिव दर और 30 प्रतिशत की फाल्स निगेटिव दर है।

सतह पर दिखने वाले परीक्षणों के लिए फाल्स पॉजिटिव और फाल्स निगेटिव की चौंकाने वाली दरों को समझना, स्वास्थ्य नीति के लिए काफी मददगार हो सकते हैं। गणितीय गणना और मॉडल पर ध्यान न देने से हम वहां पहुंच सकते हैं, जिसके आगे महामारी फिर से बढ़ने लगती है और मौतों की संख्या बढ़ सकती हैं।

क्रिश्चियन येट्स, यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ में मैथेमैटिकल बायोलॉजी के सीनियर लेक्चरर हैं। यह लेख द कंवर्सेशन से लिया गया है। जिसे क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के तहत प्रकाशित किया गया है।

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