कोरोनावायरस: क्या रैपिड टेस्ट किट पर रोक लगाना सही है?

विशेषज्ञों का कहना है कि लोगों के बीच वायरस जोखिम को देखते हुए तेजी से परीक्षण करना वक्त की जरूरत है
Photo: creative commons
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इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने नोवेल कोरोना वायरस (सार्स-सीओवी-2) के लिए रैपिड-एंटीबॉडी टेस्ट किट के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। हालांकि, आईसीएमआर के सूत्रों और स्वतंत्र विशेषज्ञों ने कहा हैं कि 21 अप्रैल, 2020 को रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट को 'दोषपूर्ण' बता कर इस पर रोक लगाने से पहले फील्ड रिजल्ट का इंतजार करना बेहतर होता।

आईसीएमआर ने ऐसी सात लाख किट खरीदी थी, जिसका पहला लॉट अभी पांच दिन पहले ही आया था।

21 अप्रैल को एक संवाददाता सम्मेलन में आईसीएमआर के महामारी विज्ञान प्रमुख आर गंगाखेडकर ने कहा, "तीन राज्यों से शिकायत मिली थी कि किट सही जांच नहीं कर पा रहा है। आरटी-पीसीआर पॉजिटिव मामलों में 6 से 71 प्रतिशत का अंतर आ रहा था।"

आरटी-पीसीआर एक मॉलीक्यूलर टेस्ट है, जो शरीर में सार्स-सीओवी-2 की मौजूदगी का पता लगाती है। दूसरी ओर, एंटीबॉडी टेस्ट शरीर में “एंटीबॉडीज” की मौजूदगी का पता लगाता है, जिसका निर्माण आमतौर पर बीमारी की शुरुआत के 7 से 14 दिनों के बाद शरीर का इम्यून सिस्टम करता है।

शरीर में एंटीबॉडी की उपस्थिति से ये संकेत मिलता है कि इंसान पहले से ही वायरस से संक्रमित है और शरीर ने इससे लड़ने के हथियार विकसित कर लिए थे।

गंगाखेडकर ने कहा, "आरटी-पीसीआर नमूनों में पॉजिटिव कोविड-19 केसेज की पहचान करने में जो अंतर आ रहा है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।”

आईसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक लोकेश शर्मा ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया, "रिजल्ट वेरिएशन का मतलब है कि जहां आरटी-पीसीआर किसी केस को पॉजिटिव बता रहा है, वहीं रैपिड टेस्ट ने इसे निगेटिव बता दिया।"

उन्होंने कहा, “हालांकि, यह इतना सरल मामला नहीं है। शरीर में एंटीबॉडीज 7 से 14 दिनों से पहले विकसित नहीं होते हैं। यदि इससे पहले किसी ने रैपिड टेस्ट करवा लिया, तो जाहिर है कि नतीजा निगेटिव ही होगा।”

वे आगे कहते हैं, “ हमें यह देखना होगा कि टेस्ट कब हुआ। क्या इम्यून सिस्टम को खून में पर्याप्त एंटीबॉडी बनाने के लिए पर्याप्त समय मिला था? टेस्ट के लिए केवल दो बूंद खून निकाला जाता है। यदि खून में पर्याप्त एंटीबॉडी नहीं है, तो फिर रिजल्ट निगेटिव ही आएगा।”

आईसीएमआर के आठ संस्थानों की टीमें फील्ड में जा कर जांच करेंगी कि रैपिड टेस्ट कैसे किए जा रहे हैं। शर्मा ने कहा, “हम ये भी देखेंगे कि क्या टेस्ट उन इलाकों में हुए, जहां वायरस का प्रसार अधिक था। अन्यथा, सटीक रिजल्ट पाना मुश्किल हो सकता है।” 

क्या जांच के वक्त ये सावधानियां बरती गई थी? इसकी जांच करने के लिए डीटीई जयपुर के सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज की माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख नित्या व्यास के के पास पहुंची। व्यास की टीम ने ही बताया था कि रैपिड टेस्ट सिर्फ 5।4 प्रतिशत सही नतीजे दे रही है। हालांकि, उन्होंने ये कहते हुए कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि यह विभागीय रिपोर्ट है और इसके विवरण साझा नहीं किए जा सकते है।

हालांकि, महत्वपूर्ण बात है कि आईसीएमआर ने ऑर्डर देने से पहले इन टेस्ट किट मॉडल को मान्यता दी थी। 17 अप्रैल, 2020 को आईसीएमआर द्वारा अपडेटेड सूची के अनुसार, 75 ऐसी किटों को मंजूरी दी गई थी। जिन दो कंपनियों की किट पर सवाल उठ रहे हैं, उनके पास भी यूरोपीय संघ द्वारा जारी सीई सर्टिफिकेट है।

फील्ड बनाम लैब

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, बंगलुरू के महामारी विज्ञान के प्रमुख गिरिधर बाबू ने डीटीई को बताया, “आईसीएमआर अपने लैब में एक किट को सही मानता है। लेकिन, किट का लैब में सही होना, फील्ड में भी सही होने की गारंटी नहीं है।”  

बाबू ने आगे बताया, "फील्ड में किट के सही होने या न होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। जैसे, बीमारी की शुरुआत की अवधि, वायरस और अन्य लोगों के बीच संपर्क का स्तर आदि।"

क्या राज्यों को किट की आपूर्ति करने से पहले फील्ड में इसका सत्यापन करना आईसीएमआर के लिए संभव नहीं था? बाबू कहते हैं, “सरकार पर जल्दी काम करने और परिणाम देने का भारी दबाव है। इसलिए, यह विचार आया होगा कि फील्ड में सत्यापन करने में समय बर्बाद न किया।”

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक प्रमुख शोध संस्थान से जुड़े एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा,“आप किसी टेस्ट के अनुमानित मूल्य के आधार पर उसे अच्छा या बुरा मानते हैं। एक खराब परीक्षण के लिए निगेटिव अनुमानित मूल्य होगा। यह दो कारकों पर निर्भर करता है। सीरो-प्रीवैलेंस (किसी इंसान में रोगजनक की मौजूदगी का स्तर), परीक्षण की विशिष्टता और संवेदनशीलता मूल्य।"

उन्होंने बताया, "यदि लोगों में सीरो-प्रीवैलेंस, जो कि वायरस के संपर्क में आने वाली जनसंख्या का अनुपात है, 10 प्रतिशत से कम है और यदि इन किट्स का वहां इस्तेमाल होता है, तभी आपको वांछिट और सटीक नतीजे मिलेंगे।”

टेस्ट विशिष्टता का अर्थ किट की उस क्षमता से है जो फाल्स निगेटिव नतीजे नहीं देती है और संवेदनशीलता का अर्थ उस क्षमता से है, जो पॉजिटिव केसेज को भूलता नहीं है।

गंगाखेड़कर शुरू में ही साफ कर चुके थे कि इन टेस्ट्स का उपयोग डायगोनस्टिक पर्पज (नैदानिक ​​उद्देश्य) या कोविड-19 केसेज की पुष्टि करने के लिए नहीं किया जाना था। इनका उपयोग केवल बीमारी की निगरानी को समझने के लिए किया जाना था।

शर्मा ने कहा,“कंपनियों को वापस भेजे जाने से पहले, हमें इस बात को ले कर आश्वस्त होना होगा कि किट्स वाकई दोषपूर्ण हैं। इसलिए, हमें कोई भी अंतिम फैसला लेने से पहले दो दिन तक इंतजार करना चाहिए।“

हालांकि, भारत ऐसी समस्या का सामना करने वाला अकेला देश नहीं है। यूके और स्पेन समेत कई यूरोपीय देशों ने विभिन्न चीनी निर्माताओं द्वारा आपूर्ति की गई इन टेस्ट किट्स के ऐसी समस्याओं का सामना किया है।

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