सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि कोरोनावायरस से होने वाली बीमारी (कोविड 19) का टेस्ट मुफ्त में होना चाहिए। इसके लिए सरकार ऐसी व्यवस्था बनाए कि लोगों को टेस्ट के लिए भुगतान न करना पड़े, बल्कि सरकार की ओर से प्राइवेट लैब को टेस्ट का पैसा दिया जाए।
इससे पहले सरकार ने प्राइवेट लैब को कोविड-19 टेस्ट की इजाजत देते हुए कहा था कि वे मरीजों से 4500 रुपए शुल्क ले सकते हैं।
8 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट में डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की सुरक्षा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना से लड़ रहे डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मचारी एक यौद्धा हैं और उनकी व उनके परिवारों की सुरक्षा बेहद जरूरी है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्राइवेट लैब द्वारा शुल्क न वसूलने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर सरकार विचार करेगी। अभी देश में 118 लैब की रोजाना लगभग 15000 टेस्ट क्षमता है। जो कम है, इसलिए लगभग 47 प्राइवेट लैब को टेस्ट की इजाजत दी जा रही है।
सुधी ने डाउन टू अर्थ से कहा कि अदालत पूरी तरह से इस पक्ष में है कि लोगों से शुल्क न वसूला जाए।
यहां यह उल्लेखनीय है कि 12 मार्च को इंडियन कौंसिल औफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने कहा था कि प्राइवेट लैब संचालक चाहते हैं कि उन्हें भी कोरोना टेस्ट की इजाजत दी जाए। इसलिए उन्हें इजाजत देने का निर्णय लिया गया है।
आईसीएमआर ने प्राइवेट लैब संचालकों से कहा था कि वे मुफ्त में कोरोना जांच करें। लेकिन कुछ देर बाद सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि प्राइवेट लैब संचालकों को 4,500 रुपए तक वसूलने की इजाजत दी जाती है।
हर जिले में वेंटिलेटर हों
सुधी ने अपनी याचिका में कहा था कि सरकार के पास इस महामारी से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
अपनी याचिका में सुधी ने कहा कि देश के ज्यादातर अस्पतालों में वेंटिलेटर्स नहीं हैं। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर जिला अस्पताल में पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर्स उपलब्ध कराया जाए। सुधी ने कोविड-19 से संबंधित सभी जानकारी देने में पारदर्शिता बरती जाए।