गांव में कोरोना संकट : बुनियादी सुविधाओं से वंचित पन्ना की इस पंचायत में बढ़ता जा रहा संक्रमण

शहर तक केंद्रित कोरोना जांच जब गांव पहुंचा तो स्थिति और भी बदतर नजर आई। गांव में जितनी जांच हुई उसमें करीब 50 फीसदी पॉजिटिव पाए गए।
Photo : Rakesh Malviya
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राकेश कुमार मालवीय

घस्सू कुशवाहा की कोविड टेस्टिंग के लिए जब गांव में टीम आई और जांच हुई तो वह कोरोना पॉजिटिव निकले। उन्हें तुरंत घर में ही आइसोलेट कर दिया गया ताकि परिवार के छह और सदस्य सुरक्षित रह सकें। घुस्सू के परिवार की सदस्य तारा बाई डाउन टू अर्थ से बताती हैं कि दो दिन हो गए और कोई दवाई उन्हें नहीं मिली तो उन्होने दूसरे कोविड पॉजीटिव मरीज के निजी चिकित्सिक सलाह वाले पर्चे से ही मेडिकल स्टोर से दवा मंगवा ली है।

यह स्थिति पन्ना जिले से दो किलोमीटर की दूरी पर बसी ग्राम पंचायत पुरुषोत्तमपुर का है। इस ग्राम पंचायत में चार छोटी बस्तियां भी हैं।  लगभग 2200 की आबादी वाले इस पुरुषोत्तमपुर गांव में ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं। यहां के सरंपच भी इन दिनों कोरोना पॉटिजिव हैं। 

शहर तक केंद्रित कोरोना जांच जब गांव पहुंचा तो स्थिति और भी बदतर नजर आई। गांव में जितनी जांच हुई उसमें करीब 50 फीसदी पॉजिटिव पाए गए। 

पन्ना जिले में संक्रमण पर लगाम लगाने के लिए प्रशासन ने डोर टू डोर सर्वेक्षण शुरु किया है। इसमें रैपिड एंटीजन टेस्ट किट से जांच की जा रही। इस सर्वेक्षण के शुरुआती दो दिन में ही सात सौ टेस्ट में 103 मरीज निकले। जबकि पुरषोत्तमपुर गांव में 303 परिवार का सर्वेक्षण किया गया, इनमें से 92 लोग सर्दी—खांसी और बुखार से पीड़ित मिले। इनमें 16 मरीज रैपिड एंटीजन टेस्ट किट में ही पॉजीटिव आ गए।

पन्ना से दूर के गांव में भी यही हाल है, लोग बीमार हैं पर टेस्टिंग की सुविधा नहीं है। पन्ना से 35 किमी दूर ब्रजपुर पंचायत में भी बीमारों की संख्या ज्यादा होने के बाद जब प्रशासन पहुंचा और रेपिड किट से जांच की तो वहां दस संक्रमित निकले।

पन्ना जिला पहली लहर में कोविड संक्रमण से बचा रह गया था, लेकिन दूसरी लहर जिले को बख्शने के मूड में नहीं है। अकेले अप्रैल महीने के 29 दिनों में यहां 3173 केस बढ़े हैं। पंद्रह मौते हुई हैं। जिले में 29 अप्रैल तक 4456 पॉजीटिव मरीज पाए गए हैं जबकि 833 एक्टिव केस हैं, अब तक कुल बीस लोगों की मृत्यु हुई है।

जबकि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में गांव—गांव मजदूर वापस आए थे, लेकिन प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने स्थिति को संभाले रखा था।  

युसूफ बेग एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता थे जो प्रशासन के साथ मिलकर कोविड में लोगों को राहत पहुंचाने का लगातार काम कर रहे थे। पुरुषोत्तमपुर भी उनके कार्यक्षेत्र में था। काम के दौरान ही युसूफ संक्रमण का शिकार हुए, 16 अप्रैल को उनकी रिपोर्ट पॉजीटिव आई, उन्हें जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। ऑक्सीजन की तंगी के बीच उन्हें रेमिडिसिवर इंजेक्शन भी लगाया गया। लेकिन 18 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई। 

एक शिक्षक की भी रैपिड एंटीजन टेस्ट में नेगेटिव रिपोर्ट आई, उन्हें सीटी स्कैन के लिए सतना ले जाया गया। उनकी रिपोर्ट आई उससे तीन घंटे पहले उनकी मृत्यु हो चुकी थी। रिपोर्ट में पता चला 75 प्रतिशत फेफड़ों में संक्रमण था।

ऐसी घटनाओं से लोगों में कोरोना को लेकर खासा खौफ बैठ गया है। सहायक सचिव अनूप रावत बताते हैं कि सर्वेक्षण से अच्छी बात हो रही है कि केस सामने आ रहे हैं। वह कहते हैं कि प्रशासन ने पंचायत और फ्रंट लाइन वर्कर्स को इस काम में तो लगा दिया, लेकिन उन्हें मास्क और सेनेटाइजर तक नहीं दिए हैं। यह काम खतरे से खाली नहीं है।

वह बताते हैं कि इस सर्वेक्षण के काम में लगे थे और किट से टीम का ही टेस्ट किया तो उस टीम के दो सदस्य संक्रमित पाए गए। सरकार ने पहली लहर के बाद पिछले साल पंचायतों को तीस-तीस हजार रुपए का अतिरिक्त फंड आवंटित किया था, इस साल ऐसी कोई रकम नहीं मिल पाई है।

गांव में अब तक चालीस से ज्यादा केस निकल चुके हैं, और स्थिति गंभीर होती जा रही है, ऐसे में हम चाहें कि गांव को सेनेटाइज कर दें, लेकिन हमारे पास कोई फंड नहीं हैं।

सरपंच पति मनोज कुशवाहा ने बताया कि पंचायत ने अपने स्तर पर दो स्कूलों में लोगों के रहने का इंतजाम किया है। खाने की व्यवस्था भी व्यक्तिगत स्तर पर है, उनका कहना है कि सरकारी प्रक्रियाओं में समय बहुत लगता है, पर हम लोगों को भूखे नहीं रख सकते। हालांकि अभी अस्सी प्रतिशत लोग घर में ही आइसोलेट हैं।

गांव में अब तक नल-जल योजना शुरू नहीं हो पाई है। सरपंच पति मनोज कुशवाहा ने बताया कि पंचायत स्तर पर चार बोर करवाकर मोटर डाली गई है। ग्रामवासी यहीं से पानी लेते हैं, पर इसके लिए इंतजार करना पड़ता है।

सहायक सचिव अमित बताते हैं कि इसमें भी खतरा यह है कि कोविड संक्रमित परिवार के लोग भी पानी भरते हैं। तारा बाई कुशवाहा कहती हैं कि यह हमें भी पता है कि संक्रमण फैल सकता है, इसलिए सावधानी रखती हैं और सबसे आखिरी में पानी भरती हैं।

अमित बताते हैं कि शहर में काम पूरी तरह से बंद हैं। ऐसे में लोग समूहों में ताश खेलने बैठै रहते हैं, इससे खतरा और बढ़ गया है। हालांकि अच्छी बात यह है कि लोगों को मार्च महीने तक का राशन मिल गया है। लेकिन सरकार ने इस लॉकडाउन में जो अतिरिक्त राशन की घोषणा की है, उसका कोई अता-पता नहीं है। बच्चों को पोषण आहार भी नहीं मिला है। 

पन्ना जिले के अस्पताल में आक्सीजन, सीटी स्कैन जैसी मशीन की दिक्कत हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जब इसके लिए आवाज उठाई तो वीडी शर्मा ने सीटी स्कैन मशीन देने का कहा है, पर अब तक लग नहीं पाई है। एक सीमेंट कंपनी ने बीस आक्सीजन कांस्ट्रेटर मशीनें दी हैं, जिससे थोड़ी राहत मिली है।

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