संयुक्त राष्ट्र संगठन यूनिटेड ने चेतावनी दी है कि यदि हम टीबी संक्रमितों के संपर्क में आने वाले लोगों को ढूंढने और इस बीमारी की रोकथाम के लिए उपायों को लागू करने में विफल रहते हैं, तो यह बीमारी 2035 तक करीब दस लाख लोगों की मौत की वजह बन सकती है।
यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने इसकी रोकथाम के लिए एक व्यापक रणनीति लागू करने पर जोर दिया है। इसके तहत घर-परिवार में टीबी संक्रमितों के सम्पर्क में आए लोगों की पहचान करने के साथ इसकी रोकथाम के लिए जरूरी उपचार प्रदान करना काफी अहम है।
इस बारे में अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में प्रकाशित विश्लेषण के मुताबिक इस संयुक्त रणनीति को लागू करना न केवल लागत प्रभावी है, साथ ही इसकी मदद से अगले 12 वर्षों में घरेलू संपर्क और एचआईवी से पीड़ित लोगों के बीच होने वाली मौतों में 35 फीसदी तक की कमी लाई जा सकती है। इसका प्रभाव विशेष रूप से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कहीं ज्यादा स्पष्ट था, जिनमें इस बीमारी के चलते मृत्यु का खतरा ज्यादा होता है।
यह अध्ययन अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय, ऑरम इंस्टीट्यूट और स्वास्थ्य एजेंसी यूनिटेड द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। बता दें कि तपेदिक यानी टीबी एक संक्रामक बीमारी है। ऐसे में इससे पीड़ित व्यक्ति के निकट संपर्क में रहने वाले लोगों में संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
अध्ययन के मुताबिक इस रणनीति को अपनाकर 2035 तक 8.5 लाख जिंदगियां बचाई जा सकती हैं, जिनमें बड़ी तादाद में बच्चे (700,000) भी शामिल होंगे। आंकड़ों की मानें तो फिलहाल 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों में टीबी का पता लगाने की दर बेहद कम है। अनुमान है कि टीबी से पीड़ित दस में से केवल तीन बच्चों की ही पहचान हो पाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी टीबी से संक्रमित है और उनमें सक्रिय तौर पर इस बीमारी के विकसित होने का जोखिम है, जो गम्भीर रूप धारण कर सकती है। यदि डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट 2022 की मानें तो 2021 के दौरान दुनिया भर में टीबी के एक करोड़ से ज्यादा मामले सामने आए थे। पता चला है इस वर्ष में टीबी के कारण 16 लाख लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें से 187,000 लोग एचआईवी से ग्रस्त थे। यही वजह है कि इसे दुनिया का 13वां सबसे बड़ा हत्यारा माना गया है। कोविड-19 के बाद यह दूसरी संक्रामक बीमारी है जो सबसे ज्यादा लोगों की जान ले रही है।
रिपोर्ट के अनुसार टीबी भारत के लिए भी एक बड़ी समस्या है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो 2021 के दौरान देश में टीबी के 21.4 लाख मामले सामने आए थे, जो 2020 की तुलना में 18 फीसदी ज्यादा हैं। ‘ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट 2022’ के अनुसार 2021 के दौरान भारत में प्रति लाख लोगों पर टीबी के 210 मामले दर्ज किए गए थे।
2021 के दौरान वैश्विक स्तर पर जिन आठ देशों में टीबी के दो तिहाई से ज्यादा मामले सामने आए थे, उनमें भारत (28 फीसदी), इंडोनेशिया (9.2 फीसदी), चीन (7.4 फीसदी), फिलीपींस (7.0 फीसदी), पाकिस्तान (5.8 फीसदी), नाइजीरिया (4.4 फीसदी), बांग्लादेश (3.6 फीसदी) और कांगो (2.9 फीसदी) शामिल हैं।
लाइलाज नहीं टीबी फिर भी दुनिया की सबसे जानलेवा बीमारियों में शामिल
इस रिसर्च में जो नतीजे सामने आए हैं वो डब्ल्यूएचओ द्वारा की गई सिफारिशों के अनुरूप ही हैं, जिसके मुताबिक तपेदिक की रोकथाम के लिए उन लोगों को उपचार दिया जाना चाहिए, जिनमें संक्रमण के होने का खतरा सबसे ज्यादा है।
इनमें एचआईवी/ एड्स के जीने को मजबूर लोगों के साथ टीबी संक्रमितों के सम्पर्क में आए उनके परिवार के सदस्य शामिल हैं। देखा जाए तो टीबी कोई लाईलाज बीमारी नहीं है। सही समय पर इसकी पहचान से इसकी रोकथाम और इलाज मुमकिन है, लेकिन फिर भी यह दुनिया की सबसे जानलेवा बीमारियों में शामिल है।
इस बारे में ऑरम इंस्टीट्यूट के सीईओ प्रोफेसर गेविन चर्चयार्ड का कहना है कि, "रोकथाम और इलाज योग्य होने के बावजूद, टीबी अभी भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक बीमारी बनी हुई है।"
उनके अनुसार हालांकि एचआईवी पीड़ित लोगों में टीबी की रोकथाम में प्रगति हुई है, लेकिन माता-पिता के बीमार होने पर परिवार के सदस्यों-विशेषकर बच्चों-को बीमारी से मुक्त रखने में हम पीछे रह गए हैं। उन्हें उम्मीद है कि यह नया अध्ययन उन लोगों के बीच टीबी निवारक उपचार के उपयोग को बड़े पैमाने पर बढ़ाने के लिए आवश्यक साक्ष्य प्रदान करेगा, जिनमें टीबी विकसित होने का खतरा है।
अध्ययन के अनुसार हाल के वर्षों में, टीबी निवारक इलाज में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है। 3एचपी (बारह सप्ताह में एक बार साप्ताहिक उपचार) और 1एचपी (एक महीने से अधिक दैनिक उपचार) नामक नई, छोटी उपचार पद्धतियां सक्रिय रोग बनने से पहले ही टीबी के संक्रमण को साफ कर सकती हैं।
साथ ही यूनिटेड और अन्य भागीदारों के नेतृत्व में सिलसिलेवार वार्ताओं की मदद से 2017 के बाद से इसके उपचार की लागत में 70 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। नतीजन टीबी की रोकथाम और इलाज अब पहले की तुलना में कहीं ज्यादा आसान हुआ है।
यदि लागत के नजरिए से देखें तो यह उपचार कहीं ज्यादा प्रभावी है और अपेक्षाकृत कम समय तक चलने के कारण इसकी मदद से टीबी संक्रमण को सक्रिय बीमारी बनने से पहले ही ठीक किया जा सकता है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि संक्रमितों के सम्पर्क में आने से जिन लोगों में टीबी की बीमारी बनती हैं उनकी संख्या में 12-सप्ताह तक चलने वाले उपचार 3एचपी की मदद से 13 फीसदी की कमी की जा सकती है।
गौरतलब है कि सितम्बर 2023 में दुनिया भर के नेता टीबी पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र की दूसरी उच्चस्तरीय बैठक के लिए तैयार हो रहे हैं। ऐसे में यूनिटेड ने इस बीमारी की रोकथाम और उससे होने वाली मौतों को रोकने के लिए पहले से कहीं अधिक प्रतिबद्धता और वित्त पोषण का आहवान किया है।