ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा की गई नई रिसर्च से पता चला है कि बच्चों की नाक बड़ो के मुकाबले कोविड-19 संक्रमण का सामना करने में कहीं ज्यादा सक्षम है।
इस बारे में क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ केमिस्ट्री एंड मॉलिक्यूलर बायोसाइंसेज से जुड़ी डॉक्टर किर्स्टी शॉर्टका कहना है कि यह एक कारण हो सकता है जिसकी वजह से बच्चों की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अब तक कोविड-19 से बचने और लड़ने में कहीं ज्यादा प्रभावी साबित हुई हैं।
उनके अनुसार अब तक यह तो जानकारी थी कि बड़ों की तुलना में बच्चों में कोविड-19 की संक्रमण दर और लक्षण हलके होते हैं। लेकिन ऐसा क्यों होता है इस बारे में अब तक सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं थी।
जर्नल प्लॉस बायोलॉजी में प्रकाशित इस रिसर्च से पता चला है कि बड़ों की तुलना में बच्चों की नाक में जो परत होती है वो पहले के सार्स-कॉव-2 संक्रमण के खिलाफ कहीं ज्यादा प्रतिक्रिया करती है और उसका सामना करने में कहीं ज्यादा सक्षम होती है। लेकिन जब बात ओमीक्रॉन स्ट्रेन की आती है तो यह खेल पूरी तरह बदल जाता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 23 स्वस्थ्य बच्चों और 15 स्वस्थ वयस्कों को शामिल किया था। इस रिसर्च में उन्होंने उनकी नाक में मौजूद परत के सेल्स के नमूनों पर सार्स-कॉव-2 वायरस के प्रभावों की जांच की थी।
क्या कुछ बनाता है बच्चों को अलग
जांच के निष्कर्ष में सामने आया है कि यह वायरस बच्चों की नाक में मौजूद कोशिकाओं में उतना आसानी से नहीं फैल पाता। इतना ही नहीं बच्चों का शरीर उस वायरस का सामना करने के लिए कहीं ज्यादा बेहतर एंटीवायरल प्रतिक्रिया करता है।
ऐसा क्यों होता है इस बारे में डॉक्टर शॉर्ट ने जानकारी दी है कि बचपन में शरीर ऐसे वायरस या बैक्टीरिया जैसे बढ़ते खतरों के प्रति अनुकूलन कर सकता है। इसके साथ ही इस बात की भी सम्भावना है कि बचपन में इन खतरों के ज्यादा संपर्क में आने से उनका नाक इस वायरस के प्रति कहीं बेहतर प्रतिक्रिया करने के लिए अपने आप को तैयार कर लेती है। या फिर यह बच्चों के मेटाबॉलिक सिस्टम की वजह से हो सकता है जो बड़ों के मुकाबले बच्चों में कहीं ज्यादा बेहतर प्रतिरक्षा पैदा करता है। यह वायरस का मुकाबले करने वाली जीन को कहीं बेहतर तैयार कर लेता है।
रिसर्च से पता चला है कि वयस्कों की तुलना में बच्चों की नाक की कोशिकाओं में कोविड-19 के डेल्टा वैरिएंट की दोहराने की संभावना काफी कम होती है। लेकिन ओमिक्रॉन के मामले में यह प्रवृत्ति पूर्णतः स्पष्ट नहीं थी। ऐसा क्यों होता है यह एक बड़ा सवाल है। डॉक्टर शॉर्ट के मुताबिक शायद यह प्रवत्ति सार्स-कॉव-2 के पहले के वैरिएंट में तो दिखती है लेकिन यह वायरस विकसित हो सकता है और अपने आप में सुधार कर सकता है।
वैश्विक स्तर पर देखें तो कोविड-19 के अब तक 59 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। वहीं 64 लाख से ज्यादा लोगों की जान यह महामारी ले चुकी है। हालांकि इसकी वैक्सीन उपलब्ध है इसके बावजूद संक्रमण का खतरा अब तक पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। भारत सहित दुनियाभर में अब भी यह वायरस कहर ढा रहा है। ऐसे में इसके बारे में बेहतर समझ ही इससे सुरक्षित रख सकती है।
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