स्कूलों में पिछड़ रहे हैं कोरोना काल में पैदा हुए बच्चे

अमेरिकी शिक्षा विशेषज्ञों ने कहा, कोविड-19 महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चे अब स्कूलों में पहुंच रहे हैं, लेकिन उनमें कौशल में कमी देखी जा रही है
फोटो का इस्तेमाल प्रतीकात्मक किया गया है।
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कोरोना महामारी के समय पैदा हुए बच्चे अब स्कूल की दहलीज पर आ पहुंचे हैं। लेकिन, वे अब इस छोटी सी उम्र में अपने जीवन में आ रही कई परेशानियों से संघर्ष करते नजर रहे हैं। शिक्षकों ने इस वर्ष छात्रों पर महामारी के तनाव और अलगाव के प्रभावों को स्पष्ट रूप से देखा। इनमें कई छात्र ऐसे हैं जो कि बड़ी मुश्किल से कुछ बोल पाते हैं। कई ऐसे छात्र हैं जो कक्षाओं में पूरे समय तक केवल चुपचाप बैठ रहते हैं जैसे उनका कुछ खो गया हो और कई तो ऐसे छात्र हैं जो पेंसिल भी नहीं पकड़ पा रहे हैं।

ध्यान रहे कि करोना महामारी काल में जन्म लेने वाले नवजात बच्चे अब प्री-स्कूल में जाने की उम्र के हो गए हैं। महामारी का उन पर प्रभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है। उनमें से कई शैक्षणिक बातों को पकड़ नहीं पाते हैं। साथ ही उनका विकास भी धीमा है। यह स्थिति दो दर्जन से अधिक शिक्षकों, बाल रोग विशेषज्ञों और नवजात के विशेषज्ञों के साथ किए गए साक्षात्कार के आधार पर कही गई है। इसमें एक ऐसी नई पीढ़ी दिख रही है जिनमें उम्र के अनुसार कौशल विकसित नहीं हो पाया है। जैसे पेंसिल पकड़ने, अपनी जरुरतों को बताने, आकृतियों और अक्षरों को पहचानने, अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने या साथियों के साथ अपनी समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से यह भी पता चला है कि महामारी ने कई छोटे बच्चों के शुरुआती विकास को प्रभावित किया है। इन अध्ययनों में पाया गया है कि लड़कियों की तुलना में लड़के अधिक प्रभावित हुए है।

रिपोर्ट में अमेरिका के पोर्टलैंड स्थित ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जैमे पीटरसन ने कहा है कि निश्चित रूप से लगता है कि महामारी के समय पैदा हुए बच्चों को पिछले वर्षों की तुलना में विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। वह कहते हैं कि हमने उनसे मास्क पहनने, वयस्कों से न मिलने, घर के बाहर बच्चों के साथ नहीं खेलने के लिए लगातार दबाव बनाया। वास्तव में हमने उनसे उनके सभी प्रकार के संपर्कों को खत्म कर दिया। ध्यान रहे कि बच्चों के लिए वह गुजरा समय वापस नहीं लौेटता। वहीं यदि बड़े बच्चों पर महामारी के प्रभाव को देखें तो उन्हें स्कूल बंद होने के दौरान घर भेज दिया गया था। ऐसे छात्र गणित जैसे अहम विषय में पिछड़ गए हैं। लेकिन, जहां तक सबसे छोटे बच्चों पर प्रभाव का मामला है, कुछ मायनों में तो यह आश्चर्यजनक है।

विशेषज्ञों ने कहा कि जब महामारी शुरू हुई तो बच्चे औपचारिक स्कूल में नहीं थे। उस उम्र में बच्चे वैसे भी घर पर बहुत अधिक समय बिताते हैं। हालांकि, बच्चे के शुरुआती साल उनके मस्तिष्क के विकास के लिए सबसे अहम होते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि महामारी के कई कारकों ने छोटे बच्चों को प्रभावित किया है। जैसे माता-पिता का तनाव, लोगों के बीच कम संपर्क, प्री-स्कूल में कम उपस्थिति, स्क्रीन पर अधिक समय और खेलने में कम समय। बच्चे जब बड़े हो रहे होते हैं, उस समय उनका दिमाग तेजी से विकसित हो रहा होता है, वे भी तेजी से विकास करने की स्थिति में हैं। वाशिंगटन में हेड स्टार्ट और राज्य प्रीस्कूल केंद्रों के नेटवर्क के साथ काम करने वाले जोएल रयान ने कहा कि सबसे कम उम्र के बच्चे अमेरिकी शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़ने वाली "महामारी सुनामी" का प्रतिनिधित्व करते है।

एक जुलाई 2024 को करिकुलम एसोसिएट्स द्वारा जारी किए गए एक आंकडेÞ के अनुसार, जिन स्कूलों में ज्यादातर अश्वेत या जहां ज्यादातर परिवारों की आय कम है, वहां के बच्चे सबसे अधिक पीछे हैं, वहीं उच्च आय वाले परिवारों के छात्र अधिक गति से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन करिकुलम एसोसिएट्स में मूल्यांकन और अनुसंधान के उपाध्यक्ष क्रिस्टन हफ ने कहा कि ज्यादातर युवा छात्र भी कुछ हद तक अकादमिक रूप से प्रभावित हुए हैं।

विशेषज्ञों ने कहा कि रिकवरी यानी सुधार संभव है, हालांकि छात्रों को ठीक होने में मदद करने के लिए स्कूलों को वितरित की गई 122 बिलियन डॉलर की संघीय सहायता का मुख्य केंद्र छोटे बच्चे नहीं रहे हैं। यह आश्चर्यजनक है। न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार महामारी में माताओं और शिशुओं पर एक शोध परियोजना की अध्यक्ष और कोलंबिया में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कैथरीन मोंक ने कहा कि हमारे पास बच्चों और परिवारों को ठीक होने में मदद करने के लिए 100 प्रतिशत उपकरण मौजूद हैं, लेकिन क्या हम जानते हैं कि उन्हें जिन सेवाओं की जरूरत है, उन तक निष्पक्ष तरीके से कैसे पहुंचा जाए? उन्होंने कहा कि मैंने बच्चों को एक किताब के लिए कालीन पर स्थिर होकर बैठना सिखाने में लंबा समय लगाया। यह कुछ ऐसा है जो हमें पहले करने की जरूरत नहीं पड़ती थी। सेंट पीटर्सबर्ग, (फ्लोरिडा) के किंडरगार्टन शिक्षक डेविड फेल्डमैन ने कहा कि हम 4 और 5 साल के बच्चों की बात कर रहे हैं जो बिना किसी कारण के कुर्सियां फेंक रहे हैं, एक-दूसरे को काट रहे हैं, मार रहे हैं। इसके अलावा टॉमी शेरिडन (डिप्टी डायरेक्टर, नेशनल हेड स्टार्ट एसोसिएशन मार्टिन) ने 11 साल तक किंडरगार्टन में पढ़ाया है। इस साल पहली बार उन्होंने कहा कि कई छात्र मुश्किल से बोल पा रहे थे, कई शौचालय जाने में परेशान थे। और कई तो पेंसिल पकड़ने में भी परेशानी महसूस कर रहे थे। इसके अलावा कई बच्चे कल्पनाशील खेल में शामिल नहीं होते हैं या दूसरे बच्चों की तलाश नहीं करते हैं।

प्री-स्कूल शिक्षिका फ्रेडरिक ने कहा कि इस साल आने वाले बच्चे इतने अधिक निपुण नहीं थे जितने महामारी से पहले थो। इसकेअलावा फ्लोरिडा में अपने प्री-स्कूल में लिसा ओरुरके ने बच्चों के बीच सबसे बड़ा अंतर देखा है कि अब वे उनकी भावनाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ थीं, बच्चे कुर्सियों को गिरा रहे थे, चीजें फेंक रहे थे और अपने साथियों को मार रहे थे।

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