डेंगू के वायरस को और खतरनाक बना रही है बदलती जलवायु, वैज्ञानिकों ने चेताया

वैज्ञानिकों के मुताबिक, दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन ने डेंगू फैलाने वाले मच्छरों को दुनिया के नए लेकिन अब गर्म क्षेत्रों में अपना विस्तार करने में मदद की है।
फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स, मुहम्मद महदी करीम
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जैसे-जैसे डेंगू वैश्विक 'डेंगू क्षेत्र' से आगे बढ़ रहा है, वैज्ञानिक इस बीमारी के बारे में पारंपरिक ज्ञान को खारिज कर रहे हैं। डेंगू के संक्रामक संक्रमण के बारे में अनजान और खतरे बरकरार हैं। शोध में कहा गया है कि अब मच्छर जनित बीमारी के प्रति प्रतिरक्षा के बारे में पारंपरिक ज्ञान के रूप में स्वीकार की जाने वाली धारणा गलत हो सकती है।

यह शोध महामारी विज्ञान मॉडल और निकारागुआ में 4,400 से अधिक लोगों के आंकड़ों पर आधारित है। शोध के हवाले से शोधकर्ता ने कहा कि प्रतिरक्षा विज्ञानी डेंगू के प्रति जनसंख्या की प्रतिरक्षा को समझने के लिए एक नया ढांचा विकसित करने का समय आ गया है।

दशकों से, यह माना जाता था कि जब एक बार आप डेंगू वायरस से संक्रमित हो जाते हैं, तो प्रतिरक्षा जीवन भर बनी रहती है। यह मत अवलोकन संबंधी आंकड़ों के सामने कायम रही, जिसमें पाया गया कि जो लोग पहले संक्रमित थे, उनके दोबारा संक्रमित होने के बहुत अधिक आसार होते हैं।

लेकिन शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अब निर्णायक रूप से दिखाया है कि प्रतिरक्षा न केवल कम हो जाती है, बल्कि घटती-बढ़ती रहती है। यह एक ऐसी खोज से पता चलता है कि डेंगू संक्रमण पहले की तुलना में कहीं अधिक जटिल है।

साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित एक नए शोध पत्र की मुख्य लेखिका रोज़मेरी ए. आओगो लिखती हैं, ऐसा माना जाता है कि कई डेंगू वायरस सीरोटाइप के संक्रमण से डेंगू रोग से स्थायी सुरक्षा मिलती है। ए. आओगो ने शोध के निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा बार-बार डेंगू संक्रमण के बाद लंबे समय तक एंटीबॉडी में कमी देखी गई है।

ए. आओगो और उनकी टीम ने पाया कि जब अगली महामारी आई तो एंटीबॉडी के घटने के बाद एंटीबॉडी में बढ़ोतरी हुई। उनकी टीम की खोज ने एक नए मॉडल के निर्माण में मदद दी जो डेंगू संक्रमण के प्रति आबादी की संवेदनशीलता का सबसे अच्छा वर्णन करता है, विशेष रूप से डेंगू के प्रकोप की चक्रीय प्रकृति के बारे में।

जब डेंगू की बात आती है, तो लोग स्थायी रूप से प्रतिरक्षित नहीं होते हैं, लेकिन संक्रमण के प्रति संवेदनशील होते हैं, फिर प्रतिरक्षित होते हैं और अंततः फिर से संवेदनशील होते हैं। इसलिए, ए. आओगो और उनकी टीम द्वारा नया प्रस्तावित मॉडल का प्रस्ताव रखा गया।

डेंगू एक विनाशकारी संक्रामक संक्रमण है जो एडीज एजिप्टी मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है। उड़ने वाली हाइपोडर्मिक वायरस जो भारी प्रकोप के दौरान तेजी से फैलता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि डेंगू की कई महामारियां शहरों में होती हैं।

कभी हड्डी तोड़ बुखार के नाम से जाना जाने वाला डेंगू संक्रामक संक्रमण की वजह से भयंकर सिरदर्द, तेज बुखार, मतली, उल्टी, ग्रंथियों में सूजन और शरीर में दाने हो सकते हैं। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि बहुत से लोग जो संक्रमित होते हैं उनमें कोई लक्षण ही नहीं होते हैं। हालांकि, दुर्लभ मामलों में, डेंगू रोग घातक हो सकता है।

ए. आओगो और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए नए शोध में निकारागुआ में 4,478 बच्चों और वयस्कों के रक्त के नमूनों की जांच की गई, जो दुनिया के डेंगू वाले इलाकों के केंद्र में स्थित एक देश है। यह मध्य अमेरिका से लेकर अधिकांश दक्षिण अमेरिका तक फैला है, फिर महासागरों और टाइम जोन जो अधिकांश उप-सहारा अफ्रीका, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया को भी शामिल करता है।

2023 में दुनिया का सबसे भयानक डेंगू का प्रकोप प्रमुख डेंगू के इलाके वाला क्षेत्र में था, जिससे बांग्लादेश में हजारों लोग प्रभावित हुए। वहां, मच्छर से फैलने वाले वायरस से 12 नवंबर तक लगभग 1,500 लोगों की मौत हो गई, जबकि 2,91,000 से अधिक लोग संक्रमित हुए।

मैरीलैंड के बेथेस्डा में यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शियस डिजीज में संक्रामक रोगों की प्रयोगशाला में एक संक्रामक महामारी विशेषज्ञ ए. आओगो ने कहा कि उन्होंने और उनकी टीम ने अपने निकारागुआ के आंकड़ों से अतिरिक्त अनोखे निष्कर्ष निकाले।

शोधकर्ताओं का कहना है कि वे अब सटीक तरीके से पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि निकट संबंधी जीका वायरस का संक्रमण डेंगू से सुरक्षा प्रदान कर सकता है और यहां तक कि व्यापक पैमाने पर डेंगू के फैलने में देरी भी कर सकता है। वास्तव में, हाल ही में जीका के प्रकोप के कारण अगली डेंगू महामारी में देरी हो सकती है, लेकिन बाद में डेंगू वायरस का पुनरुत्थान हुआ, जिसने ज्यादातर कमजोर  लोगों को प्रभावित किया, जैसा कि अध्ययन में पाया गया है।

डेंगू और जीका दोनों वायरस फ्लेवीवायरस परिवार से संबंधित हैं, जो न केवल करीबी रिश्तेदार हैं, वे एक ही क्षेत्र में फैलते हैं और पिछले दशक में बड़ी महामारी का कारण बने हैं। तथ्य यह है कि एक दूसरे के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान कर सकता है, यह एक ऐसी खोज है जिसका संक्रामक और टीकों के विकास के लिए व्यापक प्रभाव है।

अपने अध्ययन में, एओगो और सहकर्मियों ने विनाशकारी 2016 और 2017 में जीका महामारी के प्रभाव का विश्लेषण किया, जिससे पता चला कि जीका वायरस डेंगू के खिलाफ प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त था। इस जानकारी के साथ, टीम, जिसमें मानागुआ में निकारागुआ के सस्टेनेबल साइंसेज इंस्टीट्यूट के वायरोलॉजिस्ट शामिल थे, वैज्ञानिकों के पास अब नए आंकड़ों का भंडार है क्योंकि वे भविष्य में फ्लेविवायरस महामारी का सामना कर रहे हैं।

ए. आओगो का शोध तब सामने आया है जब सामान्य उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बाहर जहां डेंगू स्थानीय हो गया है, डेंगू संक्रमण में वृद्धि दर्ज की गई है। पिछली गर्मियों में, इटली और फ्रांस के कुछ हिस्सों में डेंगू का प्रकोप हुआ। वैज्ञानिकों को संदेह है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन ने डेंगू फैलाने वाले मच्छरों को दुनिया के नए लेकिन अब गर्म क्षेत्रों में अपना विस्तार करने में मदद की है।

इसके अतिरिक्त, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में भविष्यवाणी की है कि इस दशक के भीतर दक्षिण अमेरिका, दक्षिण  यूरोप और अफ्रीका के नए हिस्सों में डेंगू एक बड़ा खतरा बन जाएगा क्योंकि एडीज एजिप्टी मच्छर अपनी सीमा का विस्तार करना जारी रखेंगे और डेंगू वायरस को अपने साथ ले जाएंगे।

डेंगू मच्छरों द्वारा फैलने वाला सबसे आम वायरस है, जो दुनिया भर में सालाना 39 करोड़ लोगों को संक्रमित करता है। आमतौर पर प्रभावित होने वाले अधिकांश देशों में चक्रों में प्रकोप होता है, जो महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना जानकारी है क्योंकि देश लोगों को सुरक्षित रहने में मदद करने के लिए मच्छर नियंत्रण प्रयासों और अभियानों में सुधार करते हैं।

ए. आओगो और उनकी टीम ने निष्कर्ष निकाला, यह कार्य डेंगू की घटनाओं को आकार देने वाले कारणों में जानकारी प्रदान करता है और जनसंख्या प्रतिरक्षा को बनाए रखने के लिए टीका प्रयासों में जानकारी देकर मदद कर सकता है।

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