एचआईवी प्रोटीन से मुक्त होने के बाद भी कोशिकाओं में संजोई रहती है एचआईवी संक्रमण की 'स्मृति'

यह मूल एचआईवी संक्रमण की एक तरह की "इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी" है, जिसके चलते एचआईवी संक्रमित बीमारी से उबरने के बाद भी लंबे समय तक अन्य बीमारियों के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील रहते हैं
मोजाम्बिक में एचआईवी/ एड्स रोगी; फोटो: एस्किंडर देबेबे/ संयुक्त राष्ट्र
मोजाम्बिक में एचआईवी/ एड्स रोगी; फोटो: एस्किंडर देबेबे/ संयुक्त राष्ट्र
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भले ही आज एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं ने एचआईवी एड्स को ऐसी बीमारी बना दिया है जिसके साथ भी इंसान एक बेहतर जीवन व्यतीत कर सकता है। हालांकि इस बीमारी से ग्रस्त लोग अकसर पुरानी सूजन और जलन से पीड़ित रहते हैं जो उनमें कार्डियोवैस्कुलर डिजीज और न्यूरोकॉग्निटिव डिसफंक्शन जैसी कॉमोरबिडिटी को विकसित होने के जोखिम को बढ़ा सकता है।

देखा जाए तो यह बीमारियां लम्बी आयु जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। लेकिन दवाओं के बावजूद जब सब कुछ ठीक चल रहा होता है और एचआईवी संक्रमण लगभग खत्म हो गया होता है तो भी यह सूजन और जलन क्यों होती है, यह एक बड़ा सवाल है। लेकिन वैज्ञानिकों ने शायद इसका जवाब ढूंढ लिया है। इस बारे में किया विस्तृत अध्ययन जर्नल सेल रिपोर्टस में प्रकाशित हुआ है।

इस बारे में जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता ने बताया है कि एचआईवी प्रोटीन स्थाई रूप से प्रतिरक्षा कोशिकाओं को इस तरह से बदल देता है, जिससे वो अन्य रोगों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाती हैं।

जानें क्या है इसके पीछे की वजह 

रिसर्च से पता चला है कि जब प्रोटीन इन प्रतिरक्षा कोशिकाओं में जाता है तो सूजन से जुड़ी उन कोशिकाओं में जीन सक्रिय या अंकित हो जाते हैं। इतना ही नहीं सूजन और जलन से जुड़े यह जीन तब भी अंकित रहते हैं जब एचआईवी प्रोटीन उन कोशिकाओं में नहीं होता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह मूल एचआईवी संक्रमण की एक तरह की "इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी" है। जिसके चलते एचआईवी संक्रमित बीमारी से उबरने के बाद भी लंबे समय तक इस सूजन और जलन के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील रहते हैं। इसके चलते उन लोगों में हृदय रोग और अन्य सह-रुग्णता यानी कॉमोरबिडिटी के विकसित होने का खतरा अधिक होता है।

शोध के विषय में जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन एंड हेल्थ साइंस माइक्रोबायोलॉजी, इम्यूनोलॉजी और ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता माइकल बुकरिंस्की ने बताया कि, “यह शोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि एचआईवी के इलाज या समाप्त होने के बाद भी इन खतरनाक कॉमोरबिडिटीज का जोखिम खत्म नहीं होता है।“

ऐसे में उनके अनुसार मरीजों और उनके चिकित्स्कों को अभी भी सूजन और जलन को कम करने के तरीकों पर चर्चा करनी चाहिए और शोधकर्ताओं को इसके उन संभावित चिकित्सीय इलाजों को ढूंढ़ना जारी रखना चाहिए जो एचआईवी संक्रमित रोगियों में सूजन और सह-रुग्णता को कम कर सकते हैं।

बुकरिंस्की का मानना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष यह समझाने में मदद कर सकते हैं कि क्यों कुछ कॉमरेडिटीज, कोविड-19 सहित अन्य वायरल संक्रमणों के बाद भी बनी रहती हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस यानी एचआईवी, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को निशाना बनाता है। यह वायरस कई संक्रमणों और कैंसर के खिलाफ लोगों के इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है, जिनसे स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग अधिक आसानी से लड़ सकते हैं। चूंकि यह वायरस प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्य को नष्ट और बाधित करता है, ऐसे में संक्रमित व्यक्ति की इम्युनिटी धीरे-धीरे घटती जाती है।

वहीं एचआईवी संक्रमण की सबसे एडवांस्ड स्टेज को एक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम यानी एड्स कहते हैं। जो इलाज न किए जाने पर कई वर्षों में विकसित हो जाते है। हालांकि कोई व्यक्ति कितने समय में इससे ग्रस्त होगा यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है।

अब तक चार करोड़ से ज्यादा लोगों को लील चुकी है यह बीमारी

एड्स की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है जिनके अनुसार 2021 के अंत तक दुनिया भर में करीब 3.84 करोड़ लोग इस बीमारी के साथ जीवन काटने को मजबूर थे। इनमें से करीब दो-तिहाई यानी 2.56 करोड़ अफ्रीका में रह रहे हैं। देखा जाए तो एड्स सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है जो अब तक चार करोड़ से भी ज्यादा लोगों की जान ले चुका है।

वहीं हाल ही में यूनाइटेड नेशंस प्रोग्राम ऑन एचआईवी /एड्स (यूएनएड्स) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘इन डेंजर: ग्लोबल एड्स अपडेट 2022’ से पता चला है कि सिर्फ वर्ष 2021 में ही एचआईवी संक्रमण के 15 लाख नए मरीज सामने आए थे। वहीं 6.5 लाख लोगों को एड्स की वजह से असमय जान से हाथ धोना पड़ा था।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 में करीब 1.2 लाख बच्चों की जान एचआईवी संक्रमण के कारण गई थी। यही नहीं 2020 में कम से कम तीन लाख बच्चे एचआईवी संक्रमित हुए थे, जिसका मतलब है कि हर दो मिनट में एक बच्चा इस बीमारी की चपेट में आता है।

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