क्या इम्युनिटी और सामाजिक दूरी से जीती जा सकती है कोरोना के खिलाफ जंग

जब तक बीमारी पर 50 फीसदी असर करने वाली वैक्सीन नहीं बनती और वो इतनी ही आबादी तक नहीं पहुंचती, तब तक सामाजिक दूरी बहुत मायने रखती है
क्या इम्युनिटी और सामाजिक दूरी से जीती जा सकती है कोरोना के खिलाफ जंग
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क्या इम्युनिटी और सामाजिक दूरी की मदद से कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है| यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि इस वायरस से निपटने के लिए अब तक कोई दवा नहीं बन सकी है| वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे में लोगों की शारीरिक इम्युनिटी और उनके बीच की सामाजिक दूरी इस वायरस के खिलाफ अहम भूमिका निभा सकती है| इस विषय पर ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर ग्लाइकोमिक्स और कनाडा के अल्बर्टा विश्वविद्यालय द्वारा एक शोध किया गया है, जोकि जर्नल एमबायो में प्रकाशित हुआ है|

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यदि 50 फीसदी लोगों द्वारा ऐसी दवा ली जाती है जो इस वायरस के प्रति 50 फीसदी भी कारगर है तो इसकी मदद से मरने वालों की संख्या को कम किया जा सकता है| इसमें सामाजिक दूरी की भी बहुत बड़ी भूमिका होगी| यदि लोगों के शरीर में इम्युनिटी एक वर्ष तक रहती है तो वो इसमें बहुत कारगर सिद्ध हो सकती है|

वैज्ञानिकों ने एक मैथामैटिकल मॉडल की मदद से जो शोध किया है उससे पता चला है कि आंशिक प्रतिरक्षा और सामाजिक दूरी की मदद से मृत्यु दर को कम किया जा सकता है| इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता माइकल गुड एओ ने बताया कि हमने वैक्सीन बनने से पहले के तीन वर्षों के लिए महामारी का मॉडल तैयार किया है|

उनके अनुसार यदि लोगों के शरीर में प्राकृतिक रूप से एक वर्ष तक इम्युनिटी बनी रहती है तो वो इस महामारी से मरने वालों की संख्या को काफी कम कर सकती है| शोध के अनुसार जब 60 फीसदी लोग सामाजिक दूरी का पालन नहीं कर रहे हो तब भी यह इम्युनिटी बीमारी से बचाव में कारगर सिद्ध होगी|

सब के लिए कारगर वैक्सीन आने तक सामाजिक दूरी होगी पहला हथियार 

उनके अनुसार यदि प्राकृतिक रूप से इम्युनिटी विकसित होती है तो वो सबसे पहले उन लोगों में होगी जिनमें पहले इस बीमारी के कुछ लक्षण सामने आए हैं| अब तक सामने आए सबूतों से पता चला है कि 20 से 64 वर्ष की उम्र के लोगों में संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा है| जबकि इसी आयु वर्ग के लोगों में इम्युनिटी के विकसित होने की सम्भावना सबसे ज्यादा है| लेकिन इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम नहीं जानते कि यदि इस पूरे वर्ग में इम्युनिटी विकसित कर दी जाए, तो क्या वो समाज के लिए भी फायदेमंद होगी| उनके अनुसार यदि इन्फ्लूएंजा वैक्सीन की तरह 50 फीसदी फायदा करने वाली वैक्सीन भी स्थिति को बदल सकती है| 

गौरतलब है कि दुनिया भर में 44 करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं। जबकि यह अब तक 1,181,296 लोगों की जान ले चुका है। भारत में भी इस वायरस के चलते अब तक 120,527 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि यह 80 लाख से भी ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। यह वायरस कितना गंभीर रूप ले चुका है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह दुनिया के 216 देशों में फैल चुका है और शायद ही इस धरती पर कोई ऐसा होगा जिसे इस वायरस ने प्रभावित न किया हो।

हालांकि अब तक जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार यदि इस बीमारी की वैक्सीन आती है तो वो सबसे पहले बुजुर्गों को दी जाएगी, जिनमें इम्युनिटी कम उम्रदराज लोगों के मुकाबले कम होती है| ऐसे में जब तक बीमारी पर 50 फीसदी असर करने वाली वैक्सीन नहीं बनती और वो समाज की 50 फीसदी आबादी तक नहीं पहुंचती, तब तक सामाजिक दूरी बहुत मायने रखती है| यह इस बीमारी से होने वाली मौतों को रोकने का अब तक का सबसे कारगर हथियार है| जिसका निरंतर पालन करना जरुरी है|

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