बजट 2020-21: क्या स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किया गया आवंटन काफी है?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2020-21 में स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में 10 फीसदी का इजाफा किया है, लेकिन विशेषज्ञ इस पर सवाल उठा रहे हैं
Photo: Vikas Choudhary
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राष्ट्रीय ग्रामीण स्वस्थ्य मिशन (एनआरएचएम) को इस साल बजट में मिला फंड पिछले साल के बजट के बराबर है। हालांकि अगर हम पिछले साल किये गए आवंटन के रिवाइज किये हुए आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि आवंटन कम ही हुए हैं।
एनआरएचएम को पिछले साल बजट में 27,039 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। हालांकि नए आंकड़े बताते हैं कि असल में आवंटन इससे कुछ ज्यादा था। यह 27,833.60 करोड़ रुपए था। लेकिन इस साल का आवंटन पिछले साल के बजट में किये गए 27039.00 करोड़ रुपए के आवंटन के बराबर है। विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा पन्द्रवें वित्त कमीशन को सौंपी गयी एक रिपोर्ट समेत कई अन्य रिपोर्ट्स ने यह बताया है कि ग्रामीण आबादी को उपचार मुहैया कराने वाली प्राथमिक चिकित्सा में ज्यादा फंडिंग की जरुरत है। 
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया है कि वह 'टीबी हारेगा देश जीतेगा' प्रोग्राम को मजबूत करेंगी। इसलिए ऐसी उम्मीद थी कि एनआरएचएम के फंड में इजाफा होगा।
इस साल बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को कुल 69,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। यह पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी बढ़ोतरी है। दिसंबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में सालाना आधार पर मुद्रास्फीति दर (इंफ्लेशन रेट) 7.5% था। भारतीय स्वास्थ्य संगठन के सचिव अशोक केवी ने कहा, 'बढ़े हुए आवंटन में से आधे से ज्यादा महंगाई दर को रोकने में ही चला जाएगा। इससे सरकार को क्या हासिल होगा। हम किसी भी तरीके से स्वास्थ्य को जीडीपी का 2.5 फीसदी आवंटन करने के 2011 के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएंगे।'
वित्त मंत्री ने पीपीपी मोड पर जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेजों से जोड़ने के नीति आयोग के प्रस्ताव पर भी मुहर लगाई। पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट की अध्यक्ष टी सुंदरारमन ने कहा कि, जो राज्य मेडिकल कॉलेज को अस्पतालों की सभी सुविधाएं मुहैया कराते हैं और छूट पर जमीन उपलब्ध कराने के इच्छुक हैं, वे वायाबिलिटी गैप फंडिंग पा सकेंगे। इस स्कीम की डिटेल्स अभी तय की जाएंगी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने यह पहले ही साफ कर दिया है कि वे इस स्कीम को लागू नहीं करेंगे। आयोग का कहना है कि कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों ने कई टुकड़ों में पीपीपी मॉडल को लागू किया है। ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे आप यह अंदाजा लगा सकें कि इन राज्यों का यह प्रयास सफल रहा है, क्योंकि इन राज्यों के बाद कहीं और इस स्कीम को लागू नहीं किया गया। साथ ही अगर निजी मेडिकल कॉलेजों को जिला अस्पतालों से जोड़कर डॉक्टरों की कमी पर ध्यान लाने की कोशिश की जा रही है, तो यह संभव नहीं है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इस कदम को 'घर का सोना बेचने' जैसा बताया है।
बजट भाषण में सीतारमण ने कहा कि विदेश में हमारे स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी डिमांड है, लेकिन उनकी स्किल (योग्यता) वहां की जरूरतों के मुताबिक नहीं हैं। उन्होंने कहा 'मेरा प्रस्ताव है कि स्वास्थ्य मंत्रालय और कौशल विकास मंत्रालय पेशेवर संस्थाओं के साथ मिलकर ऐसे कोर्स डिजायन करें, जिससे हमारे स्वास्थ्य कर्मियों की क्षमताएं बढ़ सकें।' हालांकि विशेषज्ञों को ऐसे कोर्सेज की जरूरत नहीं लगती है। सुंदरारमन ने डाउन टू अर्थ को बताया, 'हमारे यहां डॉक्टरों की कमी है। किसी भी सरकार को सबसे पहले भारतीय टैलेंट को यहीं बनाए रखने और उसे जरूरी संसाधन मुहैया कराने पर ध्यान देना चाहिए। आखिर जनता का पैसा ठीक इसका उलटा करने में क्यों ज़ाया किया जाए।' 
संक्रामक रोगों के प्रति आवंटन को पिछले साल के 5003 करोड़ रुपये से घटाकर 4459.35 रुपये कर दिया गया है। पिछले साल प्रकाशित हुई नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट में कहा गया था कि सभी बीमारियों में से संक्रामक रोग भारतीयों को सबसे ज्यादा बीमार बनाते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा इस मद में आवंटन घटाने की बात समझ नहीं आती है। इन इन्फेक्शंस में मलेरिया, वायरल हेपेटाइटिस/पीलिया, गंभीर डायरिया/पेचिश, डेंगू बुखार, चिकिनगुनिया, मीसल्स, टायफॉयड, हुकवर्म इन्फेक्शन फाइलारियासिस, टीबी व अन्य शामिल हैं। 
एक योजना जिसके आवंटन में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है, वह है राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना। पिछले साल इस योजना को 156 करोड़ रुपये मिले थे, इस साल यह सिर्फ 29 करोड़ रह गए। आयुष्मान भारत के आवंटन में भी काई इजाफा नहीं किया गया है, यह भी तब जब इस योजना को विस्तार दिया जाना है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक संस्थान को मिलने वाले फंड को भी 360.00 करोड़ रुपये से कम करके 283.71 करोड़ रुपये कर दिया गया है। सीतारमण ने जन औषधी केंद्रों को भी सभी जिलों तक विस्तार देने की बात कही है। राज्य सभा में जून, 2019 में दी गई जानकारी के मुताबिक यह केंद्र खोलने के लिए 48 जिले ही बाकी रह गए हैं।

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