क्या होने वाला बच्चा बेटा होगा या बेटी, यह प्रदूषण भी तय कर सकता है? बात हैरान कर देने वाली जरूर है, पर सोलह आने सच भी है। हाल ही में जर्नल प्लोस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी में छपे एक शोध से पता चला है कि पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स (पीसीबी),लेड, मरकरी, आयरन, कार्बन मोनोऑक्साइड और एल्यूमीनियम जैसे प्रदूषक जन्म के समय बच्चे के लिंग को प्रभावित कर सकते हैं।
इसी तरह पानी में मिलने वाले आर्सेनिक और क्रोमियम भी जन्म के समय लिंगानुपात को प्रभावित कर सकते हैं। शोध के मुताबिक एक तरफ जहां पारा, क्रोमियम और एल्यूमीनियम के संपर्क में रहने के चलते जहां लड़के के जन्म की सम्भावना बढ़ जाती है, वहीं लेड प्रदूषण के चलते लड़कियों के अनुपात में वृद्धि देखी गई थी। सिर्फ इतना ही नहीं वैज्ञानिकों की मानें तो कृषि क्षेत्रों से निकटता ने भी लिंगानुपात को प्रभावित किया था, संभवतः ऐसा खेतों में अधिक मात्रा में उपयोग किए जा रहे केमिकल्स के कारण हो रहा है जो स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।
यही नहीं 100 से भी ज्यादा परिकल्पनाओं की जांच करने के बाद वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जन्म के बच्चों के लिंग पर समय मौसम, तापमान, अपराध की दर, बेरोजगारी जैसे अन्य कारकों का कोई खास प्रभाव नहीं देखा गया था।
क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने
अध्ययन के अनुसार कुछ खास तरह के प्रदूषकों के संपर्क में रहने से जहां बेटा होने की सम्भावना बढ़ जाती है वहीं अन्य से बेटी होने की सम्भावना रहती है। अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने अमेरिका और स्वीडन में जन्में 60 लाख बच्चों के रिकॉर्ड का अध्ययन किया है। साथ ही उनके लिंग को प्रभावित कर सकने वाले 100 से भी ज्यादा संभावित कारकों की जांच की है, जिनमें वायु और जल सम्बन्धी प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाएं, गरीबी और संघर्ष जैसे कारकों को शामिल किया है।
इस शोध में इस्तेमाल किए गए 30 लाख अमेरिकी बच्चों के जन्म सम्बन्धी रिकॉर्ड आईबीएम हेल्थ मार्केटस्कैन इंश्योरेंस क्लेम डाटाबेस से लिए गए थे जोकि 2003 से 2011 के बीचे के थे, वहीं 30 लाख स्वीडिश बच्चों के रिकॉर्ड स्वीडिश नेशनल हेल्थ रजिस्ट्री से लिए गए थे, जोकि 1983 से 2013 के बीच की अवधि के थे। इन बच्चों के जन्म के समय मौसम, प्रदूषण और अतिरिक्त जानकारी के लिए अन्य नेशनल डाटाबेसों का विश्लेषण किया गया था।
यदि जैविक आधार पर देखें तो होने वाला शिशु बेटा होगा या बेटी यह उनके पिता के हार्मोन और जीन्स पर निर्भर करता है। हालांकि पहले के शोधों ने भी इस बात के संकेत दिए हैं कि प्रदूषण, मौसम में आते बदलावों और मानसिक तनाव भी इसको प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन उन अधिकांश अध्ययनों में एक समय में केवल एक या दो कारकों का ही अध्ययन किया गया था, पर यह पहला मौका है जब 100 से भी ज्यादा कारकों के पड़ने वाले प्रभावों को समझने का प्रयास किया गया है।
यह शोध 60 लाख बच्चों के जन्म सम्बन्धी रिकॉर्ड पर आधारित है, जो दर्शाता है कि यह शोध कितना व्यापक है पर साथ ही वैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस अध्ययन में मृत जन्म लेने वाले बच्चों के लिंग सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण नहीं किया है। साथ ही अमेरिका के आंकड़ें निजी चिकित्सा बीमा कंपनी से लिए गए थे, इसलिए वो पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
साथ ही वैज्ञानिकों के अनुसार यह अध्ययन जन्म के समय विभिन्न कारकों और लिंगानुपात के बीच के संबंध को दर्शाता है। लेकिन ऐसा क्यों होता है यह उन कारणों और प्रभावों को स्पष्ट नहीं करता है। अभी इसे जानने के लिए भविष्य में और शोध करने की जरुरत है। लेकिन कुल मिलकर इतना तो स्पष्ट है कि वायु और जल में मौजूद यह हानिकारक तत्व बड़े पैमाने पर हमारे स्वास्थ्य को हमारी सोच से ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं, जिनसे बचने के लिए इनकी रोकथाम जरुरी है।