मुजफ्फरपुर के बाद अब गया में बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया है। दो जुलाई से अब तक वहां दिमागी बुखार के लक्षण वाले 22 बच्चे भर्ती हो चुके हैं, इनमें छह बच्चों की मौत हो चुकी है। वहां भर्ती एक बच्चे में दिमागी बुखार की पुष्टि भी हो चुकी है। हालांकि मुजफ्फरपुर में 180 से अधिक बच्चों की मौत के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि मगध में एक भी बच्चे को मरने नहीं दिया जायेगा। इसको लेकर गया और आसपास के इलाकों में चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों की ट्रेनिंग भी की गयी। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता कार्यक्रम भी चलाये गये। इसको लेकर टीकाकरण अभियान भी चलाया जाता रहा है। मगर बरसात के मौसम के शुरुआत में ही उनका यह दावा फेल होता नजर आ रहा है।
ये सभी बच्चे गया के मगध मेडिकल अस्पताल में भर्ती हैं। दिमागी बुखार से मौतों का सिलसिला दो जुलाई से ही शुरू हो गया है। उस रोज बतूरा, औरंगाबाद के अमित कुमार की मृत्यु इलाज के दौरान हो गयी थी। तीन जुलाई को टनकुप्पा के सागर कुमार, चार को डुमरिया के संदीप कुमार, छह को बेलागंज के कृष कुमार और कोंच के बिमलेश कुमार की और रविवार की सुबह वजीरगंज की अमृता कुमारी की मौत हो गयी। सोमवार को किसी बच्चे की मृत्यु की खबर नहीं है। दो जुलाई से इस अस्पताल में अब तक 22 मरीज भर्ती हुए हैं, इनमें दो ठीक होकर वापस घर लौट चुके हैं। 14 अभी भी अस्पताल में इलाजरत हैं।
अस्पताल के अधीक्षक विजय कृष्ण प्रसाद के मुताबिक सभी बच्चों का इलाज चमकी बुखार के तर्ज पर ही किया जा रहा है, मगर अभी बच्चों में इस रोग की पुष्टि होना बाकी है। रविवार को राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट, पटना की टीम यहां से चार बच्चों के सैंपल लेकर गयी, उनमें से सोमवार को एक बच्चे में जापानी बुखार की पुष्टि हुई है।
दिक्कत यह है कि अभी तक मगध अस्पताल में दिमागी बुखार के बच्चों के लिए अलग वार्ड नहीं बना है, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 20 जून की अपनी यात्रा में ही इसके लिए हिदायत देकर गये थे। अपनी उस यात्रा में उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं, इस साल मगध में एक भी बच्चे की मौत न हो।
उन्होंने जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया और दिमागी बुखार के लिए विशेष वार्डों की स्थापना करने कहा। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि इस कार्य में जो भी संसाधन लगेंगे उनका आकलन कर स्वास्थ्य विभाग को भेजें, डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की जो कमी है वह भी बतायें। ताकि हर हाल में इस रोक को काबू किया जा सके। उनके जाने के बाद स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सकों की ट्रेनिंग भी हुई और जागरूकता अभियान भी चलाये गये, मगर महज एक हफ्ते में छह बच्चों की मौत से इन तैयारियों की गंभीरता का पता चल रहा है।
बिहार में जिस तरह मई-जून के महीने में मुजफ्फरपुर के इलाके में चमकी बुखार का प्रकोप रहता है, उसी तरह बरसात के मौसम में मगध प्रमंडल और खास कर गया जिले में दिमागी बुखार(जापानी इन्सेफ्लाइटिस) का प्रकोप नजर आता है। यह रोग गंदगी की वजह से फैलता है और घोड़ों और सूअर के इलाकों में इसका सर्वाधिक प्रकोप रहता है, क्योंकि यह इनके जरिये फैलता है। मगध के इलाके में महादलित बस्तियों में सूअर पाले जाते हैं, इसलिए इनका प्रकोप अधिक रहता है। इसलिए इस रोग को रोकने के लिए साफ-सफाई का सर्वाधिक महत्व है। जबकि स्थानीय प्रशासन इसको लेकर स्वच्छता अभियान चलाने में बहुत अधिक दिलचस्पी नहीं लेता।
हालांकि 2013 से बिहार सरकार इसके प्रभाव वाले जिलों में जेइ का वेक्सीनेशन भी करवाती है। गया और नवादा जिले में इसे दुहराया भी जा चुका है। मगर आंकड़े बताते हैं कि वैक्सीन देने के बावजूद पिछले कुछ साल से जेइ का प्रकोप घटने के बदले बढ़ा ही है। नियंत्रित नहीं हुआ है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जेई से बीमार और मरने वाले बच्चों का आंकड़ा इस प्रकार है
वर्ष बीमार मृत
2011 199 26
2012 42 02
2013 29 03
2014 24 03
2015 71 12
2016 100 25
2017 74 11
2018 74 11
कुल 613 93
जिन जिलों में जेइ का प्रभाव रहता है
गया, जहानाबाद, नालंदा, नवादा, औरंगाबाद