बंगाल: मवेशियों के दूध, अंडे और गोश्त में भी मिले आर्सेनिक  

उबले हुए अंडे के सफेद हिस्से में आर्सेनिक की मौजूदगी 9.7-30.6 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम मिली और पीले हिस्से में 9.78-22.1 माइक्रोग्राम प्रति किलो आर्सेनिक मौजूद था।
Photo : Umesh Kumar Ray
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भूगर्भ जल और अनाज में आर्सेनिक की मौजूदगी तो कई शोधों में सामने आ चुकी है, लेकिन अब एक नये शोध में मवेशियों के दूध, मुर्गियों के अंडे व बकरी के गोश्त में भी आर्सेनिक की मौजूदगी का पता चला है।

‘आर्सेनिक टॉक्सिसिटी इन लाइवस्टॉक ग्रोइंग इन आर्सेनिक एंडेमिक एंड कंट्रोल साइट्स ऑफ वेस्ट बंगाल: रिस्क ऑप ह्यूमन एंड एनवायरमेंट’ नाम से छपे शोधपत्र में बताया गया है कि गाय के दूध में प्रति लीटर 3.29-13 माइक्रोग्राम तक आर्सेनिक मिला है। वहीं, बकरियों के दूध में 6.12-9.51 माइग्रोग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक पाया गया है।

आर्सेनिक एक रसायन है, जो गंगा के मैदानी इलाकों में भूगर्भ में पाया जाता है। इसका रिसाव होने से ये भूगर्भ जल में मिल गया है। इस रसायन के अत्यधिक सेवन से लोगों को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है।

यह शोध पत्र जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल स्टडीज की तरफ से तैयार किया गया है, जिसे ए. दास, एम ज्वारदार, एनआर चौधरी, ए. डे, डी. मृधा शामिल ने तैयार किया। शोध का नेतृत्व स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल स्टडीज में रिसर्चर व प्रोफेसर डॉ तरित राय चौधरी ने किया।

डॉ तरित ने ने डाउन टू अर्थ को बताया, “उबले हुए अंडे के सफेद हिस्से में आर्सेनिक की मौजूदगी 9.7-30.6 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम मिली और पीले हिस्से में 9.78-22.1 माइक्रोग्राम प्रति किलो आर्सेनिक मौजूद था। इसी प्रकार मुर्गे के गोश्त में 51.2-163 माइक्रोग्राम/किलो (सूखा हुआ) और लिवर में 118-328 माइक्रोग्राम (प्रति किलो के हिसाब से) आर्सेनिक मिला है। वहीं, बकरे के गोश्त में 89 से 124 माइक्रोग्राम प्रति किलो के हिसाब से आर्सेनिक पाया गया है।”

आर्सेनिक प्रभावित व कंट्रोल्ड इलाकों से लिये गये सैंपल

 शोध के लिए पश्चिम बंगाल के आर्सेनिक से प्रभावित इलाकों और जहां आर्सेनिक को लेकर सरकारी हस्तक्षेप हुआ है, दो जगहों से सैंपल लिया गया था। “शोध के लिए आर्सेनिक से ग्रस्त हावड़ा, मिदनापुर, उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिलों से 30 मवेशी, 15 बकरियां और 10 मुर्गियां तथा सरकारी हस्तक्षेप वाले इलाकों से 10 मवेशियों का चयन किया गया था,” डॉ रायचौधरी ने बताया।

 शोध से पता चला है कि मवेशियों के शरीर में आर्सेनिक का प्रवेश पेयजल के अलावा सरसों की खली, धान के पुआल, धान के छिलके, गेहूं के भूसे से भी हो रहा है। कृषि उत्पादों में हालांकि आर्सेनिक की पुष्टि बहुत पहले हुए शोधों में की जा चुकी है।

यहां ये भी बता दें कि मनुष्य के शरीर में सामान्य से ज्यादा आर्सेनिक की मौजूदगी के निशान शरीर के बाहरी हिस्से में साफ दिख जाता है, इससे शरीर में काले चकत्ते हो जाते हैं। लेकिन मवेशियों में भौतिक संकेत नहीं मिलते हैं। बल्कि, सामान्य से ज्यादा आर्सेनिक की मौजूदगी के चलते मवेशियों का वजन घटने लगता है, उनकी प्रजनन क्षमता घट जाती है और पेट की तकलीफें जैसी शिकायतें नजर आने लगती हैं।

कितनी चिंताजनक है ये रिपोर्ट

गौरतलब हो कि पौष्टिक आहार के रूप में मवेशियों के दूध के साथ-साथ मीट का सेवन किया जाता है। स्कूलों में मिड डे मील में अंडे भी शामिल हैं। चावल, गेहू व अन्य अनाजों में पहले से ही आर्सेनिक की पुष्टि हो चुकी है, ऐसे में पौष्टिक आहार के रूप मे दूध व अंडे-मीट का सेवन भी शरीर में आर्सेनिक की मौजूदगी बढ़ा सकता है, जो अंततः लोगों को नुकसान ही पहुंचाएगा।

शोध पत्र के मुताबिक “अंडा, दूध और मीट के साथ साथ पानी व अनाज में मौजूद आर्सेनिक को लेने से जोखिम बहुत बढ़ जाता है।”

डाउन टू अर्थ के साथ बातचीत में तरित रायचौधरी कहते हैं, “मवेशियों के दूध, अंडे और मीट में आर्सेनिक का होना चिंता की बात है क्योंकि प्रोटीन व अन्य पौष्टिक आहार के लिए लोग इनका सेवन करते हैं। चूंकि गाय का गोबर व गोमूत्र का इस्तेमाल खाद के रूप में भी किया जाता है, तो इसका नुकसान ये भी है कि इस तरह के खाद का फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं, गोबर व गोमूत्र में मौजूद आर्सेनिक अनाज में भी पहुंच जाता है।”

आर्सेनिक की इस समस्या के समाधान के लिए रायचौधरी का कहना है कि सतही जल का परिशोधन कर इस्तेमाल, वर्षा जल संचयन व कुएं तथा तालाब जैसे जलस्रोतों का संरक्षण और उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होने आगे कहा, “इसके अलावा बड़े स्तर पर इसको लेकर जागरूकता फैलाने की भी जरूरत है और ये भी जरूरी है कि खेतीबारी में सिंचाई के लिए भूगर्भ जल की जगह सतही जल का इस्तेमाल किया जाए।” 

बंगाल में सबसे ज्यादा आर्सेनिक प्रभावित बसाहटें

देश के 15 जिलों की 6061 बसाहटों के भूगर्भ जल में सामान्य से ज्यादा आर्सेनिक मौजूद है। इनमें से 50 प्रतिशत बसाहटें सिर्फ पश्चिम बंगाल में हैं। इस साल 18 मार्च को जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से एक सवाल के जवाब में बताया गया कि पश्चिम बंगाल की 3115 बसाहटें आर्सेनिक से बुरी तरह प्रभावित हैं। 2291 बसाहटों के साथ असम दूसरे और 385 बसाहटों के साथ बिहार तीसरे स्थान पर है।

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