इस सदी के शुरुआती वर्षों में उत्तरी अमेरिका के ग्रेट लेक्स के आसपास के मैदानों में कंबल की एक अजीबोगरीब खोज शुरू हुई। ये कोई साधारण कंबल नहीं थे। जंगली सांड की खाल से बने ये कंबल चेचक से भरे शारीरिक द्रव के साथ सने हुए थे और 250 साल पहले अमेरिकन इंडियन लोगों को विस्थापित करने के लिए इस्तेमाल किए गए थे। 9/11 के बाद अमेरिकी अधिकारियों ने आशंका जताई थी कि इस तरह के कुछ कंबल अब भी मौजूद हो सकते हैं और चेचक फैलाने का एक स्रोत गलत हाथों में पड़ सकता है। उस वक्त अमेरिका और कनाडा में कई क्षेत्रों को बंद कर दिया गया था।
हालांकि यह पूरी कार्रवाई गोपनीय ही रही। इस खोज से और तो कुछ हासिल नहीं हुआ, लेकिन इससे अमेरिकी इतिहास के पहले घिनौने पन्ने सामने आ गए। कई इतिहासकारों के अनुसार अमेरिकी इतिहास में 1763 के वसंत के दौरान घटे एक भीषण प्रकरण में इन कुख्यात कंबलों के इस्तेमाल होने का पता लगता है। उस वर्ष डेलावेयर इंडियंस की एक पार्टी ने अपने ओटावा प्रमुख पोंटियाक के नेतृत्व में ब्रिटिश स्वामित्व वाले फोर्ट पिट (अब पिट्सबर्ग, पेंसिल्वेनिया) की घेराबंदी की। उस दिन एक स्विस सैनिक और किले के वरिष्ठ अधिकारी कैप्टन शिमोन इकुयर ने अंग्रेजों को मुसीबत से बचाया। इंडियंस 2 कंबल और 1 रुमाल के उपहार के बदले अस्थायी रूप से अपनी घेराबंदी खत्म करने पर सहमत हुए। उन्हें इस बात की भनक भी नहीं थी कि विली इकुयर ने जानबूझकर तोहफों को चेचक से संक्रमित किया हुआ था।
इस प्रकरण की पुष्टि फोर्ट पिट में यूरोपीय उपनिवेशियों के रक्षक सेना के नेता विलियम ट्रेंट ने अपने जर्नल में की है। अधिकतर इतिहासकार इस स्रोत को “संकटग्रस्त किले में चिंतित दिनों और रातों के सबसे विस्तृत समकालीन वृत्तांत” के तौर पर देखते हैं। 24 मई 1763 की एक प्रविष्टि में ट्रेंट लिखते हैं, “मुझे आशा है कि इन साधनों का वांछित प्रभाव होगा।” उनका प्रभाव वास्तव में पड़ा। 17 जुलाई तक चेचक डेलावेयर इंडियंस के बीच स्थानिक महामारी बन गया था।
इस कहानी के दूसरे खलनायक हैं लॉर्ड जेफरी एमहर्स्ट, जो फ्रांसीसी और इंडियंस के युद्ध (1756-1763) की अंतिम लड़ाई के दौरान उत्तरी अमेरिका में ब्रिटिश सेनाओं के कमांडर थे। जनरल के पत्राचार से पता चलता है कि उन्होंने अपने कट्टर औपनिवेशिक प्रतिद्वंद्वी, फ्रांसीसियों के साथ एक अनकही सहभागिता शुरू की, जिससे इकुयर द्वारा शुरू की गई संदिग्ध गतिविधियों को आगे बढ़ाया जा सके। अपनी पुस्तक, “द कॉन्सपिरेसी ऑफ पोंटियाक एंड द इंडियन वॉर आफ्टर द कनक्वेस्ट ऑफ कनाडा” में इतिहासकार फ्रांसिस पार्कमैन ने लिखा है कि एमहर्स्ट ने एक फ्रांसीसी जनरल हेनरी बुके के साथ विद्रोही इंडियन जनजातियों के बीच चेचक फैलाने के बारे में नियमित पत्रों का आदान-प्रदान किया।
ईकुयर की कार्य विधि के बारे में बुके को पता था। 23 जून 1763 को लिखे गए एक पत्र में उन्होंने फोर्ट पिट में इंडियंस के बीच चेचक फैलने का उल्लेख किया है। और 13 जुलाई 1763 को उन्होंने इंडियंस को संक्रमित करने के लिए चेचक से लिप्त कंबलों के वितरण का सुझाव दिया। एमहर्स्ट ने 16 जुलाई 1763 के एक पत्र में विधि का अनुमोदन किया और “इस अधम प्रजाति को समाप्त करने” के अन्य तरीकों के बारे में अपने फ्रांसीसी वार्ताकार से भी पूछताछ की। बुके और एमहर्स्ट ने एक स्पेनिश पद्धति की भी चर्चा की थी जिसमें इंडियंस का शिकार करने के लिए कुत्तों के उपयोग होता था, लेकिन इस विधि को व्यवहार में नहीं लाया जा सकता था, क्योंकि वहां पर्याप्त कुत्ते नहीं थे।
एमहर्स्ट इंडियंस के साथ ही साथ फ्रांसीसियों के साथ भी युद्ध में लिप्त थे, लेकिन वह उन्हें पृथ्वी की सतह से गायब कर देने जैसी किसी भी जुनूनी इच्छा से प्रेरित नहीं थे। पर इंडियंस के लिए जनरल के मन में ऐसी कोई झिझक न थी। उनके पत्र में “उन दरिंदों ने मानवता के अधिकारों के सभी दावों को खारिज कर दिया है” जैसे वाक्यांशों की भरमार होती थी। इतिहासकार जेसी लॉन्ग ने जनरल को यह कहते हुए रिकॉर्ड किया कि “मैं प्रांतों (पिट्सबर्ग) के लिए तब खुश होता, जब उनमें एक हजार मील के भीतर (अमेरिकन) इंडियंस की बस्ती नहीं होती।”
एमहर्स्ट और बुके जैसे यूरोपीय उपनिवेशवादी उन कुख्यात कंबलों का इस्तेमाल करके अमेरिकन इंडियंस का विनाश कर सकते थे क्योंकि वे स्वयं संक्रमण के ज्ञान से लैस थे। इस प्रक्रिया की खोज एक डच फिजियोलॉजिस्ट जान इंगेनहास ने की थी और 1721 में किसी लेडी मैरी वोर्टली मोंटेग द्वारा इसे इंग्लैंड लाया गया था। इसमें स्वस्थ मनुष्यों को उन व्यक्तियों के फोड़ों से निकले मवाद से संक्रमित किया जाता था, जिनमें इस बीमारी के हलके लक्षण पाए गए होते थे, लेकिन अक्सर इसके घातक परिणाम होते थे। लेकिन, एमहर्स्ट जैसे उपनिवेशवादियों को लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ा। 18वीं शताब्दी के आखिरी दशकों तक वे इस काम को बिना किसी डर के अंजाम देते रहे।
उस समय तक ब्रिटिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर के चेचक और गायों में होने वाले चेचक के बीच के संबंध पर अनुसंधान से निर्णायक परिणाम आने शुरू हो गए थे। 1796 में जेनर ने बताया कि चेचक से बचाव के लिए मनुष्यों का टीकाकरण संभव है यदि उन्हें गायों के चेचक की एक छोटी खुराक दी जाए। उपनिवेशों में इस तरह की जानकारियों को मूल निवासियों से दूर रखा जाता था।
आज के वक्त में पश्चिम हर समय उन बिमारियों के डर के साए में रहता है जो एशिया (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम, या सार्स, एवियन इन्फ्लूएंजा) और अफ्रीका (एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम या एड्स, इबोला और मंकीपॉक्स) में उत्पन्न होती हैं। लेकिन, लगभग सभी प्रकार के टीकाकरण विकसित दुनिया के नागरिकों की सुरक्षा के लिए डिजाइन किए गए हैं। इन हिंसक बीमारियों से जिनको सबसे ज्यादा खतरा है, उन लोगों को बचाने के लिए बहुत थोड़े प्रयास हुए हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीका में चेचक के टीकाकरण को बंद करने से कई लोग बंदर को होने वाले चेचक जैसे अन्य संबंधित संक्रमणों के संपर्क में आ गए हैं।