दुनिया के ज्यादातर देशों में मरीजों की पहुंच से बाहर हैं कैंसर की बुनियादी दवाएं

भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों में मरीज कैंसर की बुनियादी दवाओं का खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं। यहां तक की पुरानी जेनेरिक और सस्ती कीमोथेरेपी दवाओं भी उनकी पहुंच से बाहर हैं
दुनिया के ज्यादातर देशों में मरीजों की पहुंच से बाहर हैं कैंसर की बुनियादी दवाएं
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दुनिया के ज्यादातर देशों में मरीजों के पास कैंसर की बुनियादी दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। किंग्स कॉलेज लंदन और किंग्स्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। यह शोध प्रोफेसर रिचर्ड सुलिवन के नेतृत्व में कैंसर पर शोध कर रहे एक अंतराष्ट्रीय दल ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से किया है। यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त जर्नल द लैंसेट ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। 

इस शोध में प्रोफेसर सुलिवन और अंतरराष्ट्रीयशोधकर्ताओं के एक दल ने दुनिया के 82 देशों में 948 फ्रंटलाइन कैंसर डॉक्टरों का सर्वेक्षण किया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि मरीजों की देखभाल के लिए उन्हें कैंसर की कौन सी दवाएं सबसे महत्वपूर्ण लगती हैं। कैंसर की दवाओं को लेकर व्याप्त असमानता को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के ऑन्कोलॉजिस्ट से कैंसर की सबसे महत्वपूर्ण दवाओं की सूची बनाने के लिए कहा था। साथ ही उन्हें यह जानकारी देने के लिए कहा था कि क्या मरीज इन दवाओं को अपने देश में एक्सेस कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि ऑन्कोलॉजिस्ट द्वारा मुख्य रूप से पहचानी गई सबसे महत्वपूर्ण दवाएं पुरानी सस्ती कीमोथेरेपी और हार्मोन की दवाएं हैं। वहीं यदि एक दवा को छोड़ दें तो कैंसर के उपचार के लिए उपयोग की जा रही सभी प्रमुख 20 दवाएं, महत्वपूर्ण दवाओं की सूची (ईएमएल) में शामिल हैं। ऑन्कोलॉजिस्ट इन दवाओं को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि यह कई तरह के कैंसर रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद हैं।

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 1977 से हर दो वर्ष में आवश्यक दवाओं की सूची (ईएमएल) जारी करता है। यह सूची दुनिया भर के नीति निर्माताओं को इस बात की प्राथमिकता देने में मदद करती है कि मरीजों को कौन सी दवाएं उपलब्ध कराई जाएं।

सस्ती और जेनेरिक कीमोथेरेपी दवाएं भी मरीजों की पहुंच से हैं बाहर 

इन 20 में से 15 दवाएं सभी तीनों प्रमुख सूचियों की शीर्ष 20 दवाओं में शामिल हैं। हालांकि निम्न और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों की सूची में किसी भी इम्यूनोथेरेपी एजेंट को शामिल नहीं किया है। वहीं एकमात्र हार्मोन थेरेपी दवाओं में केवल टैमोक्सीफेन को इसमें शामिल किया गया है। वहीं उच्च आय और उच्च-मध्यम आय वाले देशों की लिस्ट में नए हार्मोनल उपचारों को शामिल किया गया है। 

यही नहीं शोध के मुताबिक दुनिया के अधिकांश देशों में मरीज कैंसर की बुनियादी दवाओं का खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं। जहां निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिकांश कैंसर रोगियों के लिए कैंसर रोधी दवाओं को खरीद पाना बड़ा ही मुश्किल काम है। यहां तक की मरीज पुरानी, जेनेरिक और सस्ती कीमोथेरेपी दवाओं को भी खरीद पाने के काबिल नहीं हैं। वहीं कई विकसित देशों में भी मरीज वित्तीय बाधाओं को झेलने के लिए मजबूर हैं। 

इस बारे में जानकारी देते हुए इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और किंग्स कॉलेज लंदन के प्रोफेसर रिचर्ड सुलिवन ने बताया कि शोध से पता चला है कि दुनिया भर की कई सरकारी स्वास्थ्य प्रणालियों द्वारा सबसे महत्वपूर्ण कैंसर दवाओं को पर्याप्त रूप से प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। ऐसे में यह कैंसर देखभाल की बुनियादी जरुरत तक भी मरीजों की पहुंच को सीमित कर देती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार मरीजों के लिए दवाएं उपलब्ध न होने का सबसे प्रमुख कारण इन दवाओं का महंगा होना है। यह बड़े दुःख की बात है क्योंकि इनमें से अधिकांश पुरानी जेनेरिक दवाएं हैं, जो मरीजों के लिए अत्यंत लाभदायक होती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार यह समस्या निम्न-मध्य और उच्च-मध्यम आय वाले देशों में सबसे ज्यादा है, जहां कैंसर की समस्या तेजी से पैर पसार रही है।

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के आंकड़ों को देखें तो वैश्विक स्तर पर कैंसर मृत्यु का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। अनुमान है कि 2018 में कैंसर के चलते 96 लाख लोगों की जान गई थी। इस तरह दुनिया में हर छह में से एक की मौत के लिए कैंसर जिम्मेवार था।

यदि भारत की बात करें तो आईसीएमआर द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2020 में कैंसर के 13.9 लाख मरीज थे जिनके बारे में अनुमान है कि वो 12 फीसदी की वृद्धि के साथ 2025 तक बढ़कर 15.7 लाख हो जाएंगे। वहीं यदि 2017 के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी हेल्थ फाइनेंसिंग प्रोफाइल को देखें तो देश के करीब 68 फीसदी लोग अपने स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च का भुगतान अपनी जेब से कर रहे हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 18.2 फीसदी है। ऐसे में वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर इससे जुड़ी नीतियों की तत्काल जरुरत है, जिससे देश और दुनिया भर के कैंसर मरीजों को प्रमुख और प्रभावी दवाएं कम कीमत पर उपलब्ध हो सकें। 

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