बांग्लादेश ने स्वास्थ्य क्षेत्र में हासिल की ऐतिहासिक उपलब्धि, कालाजार मुक्त पहला देश बन रचा इतिहास

इससे पहले बांग्लादेश मई 2023 में लिम्फैटिक फाइलेरियासिस से भी मुक्त हो गया था। इस तरह बांग्लादेश एक ही वर्ष में दो उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों का उन्मूलन करने वाला पहला देश बन गया है
फोटो: आईस्टॉक
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जानकारी दी है कि बांग्लादेश से विसरल लीशमैनियासिस का खतरा अब पूरी तरह खत्म हो चुका है। इसके साथ ही आंत संबंधी इस बीमारी का सफलतापूर्वक उन्मूलन करने वाला बांग्लादेश दुनिया का पहला देश बन गया है। गौरतलब है कि विसरल लीशमैनियासिस एक घातक संक्रामक रोग है, जिसका परजीवी बालू मक्खी (सैंडफ्लाई) के जरिए फैलता है।

यह उष्णकटिबंधीय बीमारी ने केवल बांग्लादेश बल्कि भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में बहुत आम है। इस बीमारी को ब्लैक फीवर, काला बुखार, दमदम बुखार, काला ज्वर या कालाजार जैसे अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है।

गौरतलब है कि इससे पहले मई 2023 में  लिम्फैटिक फाइलेरियासिस से भी मुक्त हो गया था। इस तरह बांग्लादेश एक ही वर्ष में दो उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों का उन्मूलन करने वाला पहला देश भी बन गया है। बता दें कि लिम्फैटिक फाइलेरियासिस जिसे लसीका फाइलेरिया या आमतौर पर एलिफेंटियासिस (हाथी पांव) के नाम से भी जाना जाता है, एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी है। यह संक्रमण तब होता है, जब मच्छरों के माध्यम से फाइलेरिया परजीवी मनुष्यों में फैल जाता है।

डब्ल्यूएचओ ने इस बारे में एक वक्तव्य जारी करते हुए कहा है कि बांग्लादेश से ब्लैक फीवर अब पूरी तरह खत्म हो चुका है। इस तरह बांग्लादेश दुनिया में इस घातक बीमारी से मुक्त होने वाला पहला आधिकारिक मान्यता प्राप्त देश बन गया है। बता दें कि बांग्लादेश में पिछले तीन वर्षों के दौरान उप-जिला स्तर पर कहीं भी लगातार 10,000 की आबादी पर इस बीमारी के एक से ज्यादा मामले सामने नहीं आए हैं। यही वजह है कि डब्ल्यूएचओ ने इस बात की औपचारिक घोषणा कर दी है कि बांग्लादेश इस बीमारी से मुक्त हो चुका है।

यह उपलब्धि बांग्लादेश सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), उष्णकटिबंधीय रोगों के अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए बनाए विशेष कार्यक्रम टीडीआर, यूके सरकार, गिलियड साइंसेज आईएनसी, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, द इंटरनेशनल सेंटर फॉर डायरियल डिजीज रिसर्च और अन्य संगठनों के साझा प्रयासों का परिणाम है।

स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों का ही नतीजा है कि पिछले एक दशक में दक्षिण-पूर्व एशिया में कालाजार के मामलों में 95 फीसदी की गिरावट आई है। 2022 में दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र को 2026 तक कालाजार मुक्त करने के लिए एक रणनीतिक रूपरेखा भी पेश की गई थी।

मालदीव से भी हुआ कुष्ठ रोग का सफाया

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने इस बीमारी के उन्मूलन में हासिल महत्वपूर्ण प्रगति के लिए बांग्लादेश की प्रशंसा की है। साथ ही उन्होंने इस तरह की बीमारियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व, प्रतिबद्धता और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया है।

बता दें कि कालाजार, लीशमैनियासिस का सबसे घातक रूप है। जो संक्रमित मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज नामक कीट के काटने से फैलता है। इसके काटने से लीशमैनिया प्रोटोजोआ परजीवी रोगी के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

यह बीमारी मुख्य रूप से कमजोर ग्रामीण समुदायों को प्रभावित करती है जो पहले ही गरीबी, आवास, कुपोषण, और अन्य बीमारियों से जूझ रहे होते हैं। इतना ही नहीं विशेषज्ञों के मुताबिक लीशमैनियासिस जलवायु के प्रति संवेदनशील है और तापमान, वर्षा और नमी में बदलाव इसके विकास चक्र (ब्रीडिंग साइकल) में मददगार साबित हो सकता है

इस बीमारी में लम्बे समय तक बुखार, वजन कम होना, एनीमिया, रूखी त्वचा, बाल झड़ना के साथ प्लीहा और यकृत में सूजन जैसे लक्षण सामने आते हैं। यदि इस बीमारी का सही समय पर उपचार न किया जाए तो 95 फीसदी से अधिक मामलों में यह बीमारी घातक साबित हो सकती है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यह मलेरिया के बाद परजीवियों से होने वाली दूसरी सबसे घातक बीमारी है।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान कालाजार के मामलों में कमी आई है। 2022 में, बांग्लादेश इस बीमारी के 47 मामले सामने आए थे। वहीं दक्षिण-पूर्व एशिया में इसके 1,069 मामले दर्ज किए गए, जो इसमें ऐतिहासिक कमी की ओर इशारा करते हैं।

ऐसी ही अच्छी खबर मालदीव से भी सामने आई है। मालदीव, कुष्ठ रोग के प्रसार में रोकथाम की पुष्टि करने वाला पहला देश बन गया है। मालदीव में, लगातार पांच वर्षों से अधिक समय से किसी भी बच्चे में, कुष्ट रोग का कोई मामला नहीं पाए जाने के बाद यह मुकाम हासिल किया है।

बता दें कि मालदीव ने 2030 तक कुष्ठ रोग उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए, 2019 में एक योजना की रूपरेखा जारी की थी। साथ ही डब्ल्यूएचओ ने इस बात की भी पुष्टि की है कि उत्तरी कोरिया में स्थानीय तौर पर रूबेला वायरस का सफाया हो चुका है। 

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