जर्नल लैंसेट माइक्रोब में 02 जून को छपे एक शोध के अनुसार यदि कोई व्यक्ति सामुदायिक प्रसार (कम्युनिटी स्प्रैड) के चलते कोविड-19 वायरस से संक्रमित हुआ है, तो साथ ही उसमें बैक्टीरियल इंफेक्शन का होना सामान्य नहीं है। यदि स्पष्ट शब्दों में कहें तो इस तरह के सार्स-कोव-2 से संक्रमित लोगों में बैक्टीरियल इंफेक्शन की सम्भावना बहुत कम होती है। इसके बावजूद उन्हें रोगाणुरोधी दवाओं (एंटीमाइक्रोबियल या एंटीबायोटिक दवाओं) का दिया जाना एक चिंता का विषय है।
शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसे में एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के अनावश्यक उपयोग से बचना चाहिए। इन दवाओं को तभी दिया जाना चाहिए जब परीक्षण के बाद इस बात की पुष्टि हो जाए कि संक्रमित व्यक्ति में किसी तरह का बैक्टीरियल इंफेक्शन है। उनके अनुसार इस तरह की गाइडलाइन को कोविड-19 के इलाज में शामिल करने से इन एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के अनावश्यक उपयोग में कमी आएगी जिससे लम्बे समय में होने वाले सूक्ष्मजीवीरोधी प्रतिरोधक क्षमता (एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस) को रोकने में मदद मिलेगी।
इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता और ग्लासगो विश्वविद्यालय में संक्रामक रोगों पर काम कर रही एंटोनिया हो ने बताया कि "महामारी से पैदा हुई अभूतपूर्व चुनौतियों को देखते हुए, विशेष रूप से शुरुआती चरणों में जब रोगी बहुत ज्यादा बीमार थे और प्रभावी उपचार सीमित थे। साथ ही कोविड-19 के साथ अन्य इंफेक्शन क्यों हो रहे हैं इस बारे में जानकारी नहीं थी, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि डॉक्टरों ने एंटीमाइक्रोबियल दवाएं दी थी।"
"हालांकि अब जब हम यह जानते हैं कि सामुदायिक प्रसार के जरिए सार्स-कोव-2 से संक्रमित लोगों में बैक्टीरियल इंफेक्शन की सम्भावना बहुत कम होती है। चूंकि रोगाणुरोधी प्रतिरोध हमारे समय की सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, ऐसे में जरुरी है कि इनके अनावश्यक उपयोग से बचा जाए, जिससे यह जीवन रक्षक दवाएं भविष्य में भी संक्रमण के लिए एक प्रभावी उपचार बनी रहें।"
क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने
यह शोध 6 फरवरी से 8 जून 2020 के बीच इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स के 260 अस्पतालों में भर्ती हुए 48,902 मरीजों के आंकड़ों पर आधारित हैं, जिनकी औसत आयु 74 वर्ष थी और जिनमें 43 फीसदी महिलाएं थीं। इनमें से 37 फीसदी मरीजों को बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती होने से पहले ही रोगाणुरोधी दवाएं दी गई थी। अस्पताल में भर्ती होने के बाद 85 फीसदी को कम से कम एक रोगाणुरोधी दवा दी गई थी।
शोध के अनुसार मार्च और अप्रैल 2020 के बीच रोगाणुरोधी दवाओं का उपयोग सबसे ज्यादा किया गया था जो मई के दौरान कम हो गया था। इन 48,902 मरीजों में से 8,649 रोगियों (18 फीसदी) की माइक्रोबायोलॉजिकल जांच, जैसे रक्त का परीक्षण किए गए थे। जिनमें से 13 फीसदी (1107) मरीजों में कोविड-19 से सम्बन्धी सांस या रक्तप्रवाह में जीवाणु संक्रमण पाया गया था। वहीं इन्फ्लूएंजा से गंभीर रूप से ग्रस्त 23 फीसदी मरीजों के शरीर में जीवाणु सह-संक्रमण होता है।
वहीं जिन मरीजों में कोविड -19 के साथ-साथ बैक्टीरियल इंफेक्शन की भी पुष्टि हो गई थी। उन 1,080 में से 762 में यह सेकेंडरी इंफेक्शन था, जो अस्पताल में भर्ती होने के दो दिन या उससे अधिक समय के बाद सामने आया था।
इन मरीजों को कौन सी एंटीमाइक्रोबायल्स दवाएं दी गई थी उसके बारे में शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि सभी नुस्खों में से 3.8 फीसदी में कार्बापेनम एंटीबायोटिक दिया गया था, जोकि गंभीर या उच्च जोखिम वाले जीवाणु संक्रमण के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है। वहीं इसके विकल्पों का जितनी बार भी नुस्खे दिए गए थे उनका केवल 0.2 से 1.5 फीसदी बार ही उपयोग किया गया था।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि कोविड -19 के रोगियों को दिए जाने वाले उपचार में रोगाणुरोधी दवाओं के प्रबंधन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जिससे उनके अनावश्यक उपयोग से बचा जा सके और रोगी को सही इलाज मिल सके। साथ ही यदि जांच में इस बात की पुष्टि हो जाती है कि मरीज को बैक्टीरियल इंफेक्शन नहीं है तो इन एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के उपयोग से बचना चाहिए।
यदि इन रोगाणुरोधी दवाओं का इस्तेमाल करना पड़े तो रोगजनकों (पैथोजन) और स्थानीय स्तर पर मौजूद एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स पैटर्न को भी ध्यान में रखना चाहिए।
कितना बड़ा है एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स का खतरा
दुनिया के लिए एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स एक बड़ा खतरा है जिसकी पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी की है। एफएओ के मुताबिक एंटीबायोटिक सहित एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का लम्बे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है और उनका गलत इस्तेमाल भी हो रहा है, जिससे सूक्ष्मजीवीरोधी प्रतिरोधक क्षमता का तेजी से फैलाव हो रहा है।
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एएमआर की वजह से सामान्य संक्रमण का इलाज भी मुश्किल हो जाता है और बीमारी के फैलने, उसके गंभीर रूप धारण करने या मौत होने का खतरा बढ़ जाता है। यह खतरा कितना बड़ा है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दवा-प्रतिरोधक बीमारियों के कारण हर वर्ष कम से कम सात लाख लोगों की मौत हो जाती है। वहीं 10 वर्षों में लगभग ढाई करोड़ लोग एएमआर के कारण चरम गरीबी का शिकार हो सकते हैं।