विश्वभर के एकत्रित आंकड़े इस बात के संकेत दे रहे हैं कि कारोनावायरस संक्रमण के लिए स्कूल-कॉलेज हाट स्पाट नहीं हैं। तमाम आशंकाओं के बाद जब स्कूल-कॉलज बंद कर दिए गए और यह उम्मीद जताई गई कि अब महामारी का फैलाव कम होगा लेकिन हुआ इसके ठीक उलट और महामारी का प्रकोप पहले के मुकाबले और अधिक बढ़ गया। यह बात नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है। हालांकि, शोध से यह भी पता चलता है कि बच्चे वायरस से संक्रमित हो सकते हैं और छोटे बच्चों की तुलना में बड़े बच्चे महामारी को दूसरों के बीच फैलाने में अधिक कारगर साबित हो रहे हैं।
ऐसा कहा जाता है कि स्कूल और कॉलज कोरोनोवायरस ट्रांसमिशन के लिए एक आदर्श स्थिति पैदा करते हैं लेकिन इसके बावजूद शोध में कहा गया है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस संबंध में बर्लिन के रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट के महामारी रोग विशेषज्ञ वाल्टर हास कहते हैं कोविड-19 संक्रमण अभी भी वयस्कों की तुलना में बच्चों में बहुत कम है। विश्व स्तर पर एकत्र किए गए आंकड़ों ने पहले यह दिखाया है कि सामुदायिक ट्रांसमिशन कम होने पर स्कूल सुरक्षित रूप से फिर से खुल सकते हैं। यहां तक कि उन स्थानों पर भी जहां सामुदायिक संक्रमण बढ़ रहा है। स्कूलों में प्रकोप असामान्य थे, खासकर जब संचरण को कम करने के लिए सावधानी बरती गई थी। इटली में 65,000 से अधिक स्कूल सितंबर, 2020 में फिर से खुल गए। उस समय मामलों की संख्या समुदायिक स्तर पर बढ़ रही थी। लेकिन केवल इटली के 1,212 स्कूली परिसरों में चार सप्ताह बाद महामारी फैलने की जांच की गई तो वह था 93 प्रतिशत मामलों में केवल एक संक्रमण और केवल एक हाई स्कूल में 10 से अधिक संक्रमित लोगों का एक समूह पाया गया था।
इसी प्रकार से ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में जहां जुलाई में कोविड-19 संक्रमण की एक दूसरी लहर आई। हालांकि स्कूल केवल आंशिक रूप से खुले थे। 1,635 कोविड-19 संक्रमितों में से केवल एक मामला स्कूल में था। ऐसे ही अमेरिका में कई स्थानों पर सामुदायिक रूप से कोविड के बढ़ने का स्तर उच्च था। यह वह समय था जब अगस्त में स्कूलों को फिर से खोलना शुरू हुआ और बच्चों में संक्रमण का अनुपात चढ़ना जारी रहा, आयोवा में यह बात बाल रोग विशेषज्ञ एओलॉश काउशिक ने कही। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि स्कूलों में उत्पन्न होने वाली महामारी के प्रकोप कितनी बार सामुदायिक स्तर पर बढ़ाने में योगदान करते हैं। क्योंकि व्यवसायों और समारोहों पर प्रतिबंधों में ढील सहित अन्य कारकों ने भी सामुदायिक प्रसार में योगदान दिया है। वहीं इंग्लैंड में स्कूल में महामारी के प्रकोपों के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि वयस्क संक्रमित होने वाले पहले थे। जून,2020 में 30 में से अधिकांश की पुष्टि स्कूल स्टाफ के सदस्यों के बीच आपस में महामारी के फैलने के कारण हुई थी और इनमें से केवल 2 ही ऐसे छात्र थे जो कि एक-दूसरे के संपर्क में आने के कारण संक्रमित हुए।
शोधकर्ताओं को संदेह है कि स्कूलों में कोविड-19 हॉट स्पॉट बने हैं, विशेष रूप से 12-14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में। एक व्यापक अध्ययन के अनुसार 0-5 वर्ष की आयु के बच्चे संक्रमित होते हैं तो इनसे वायरस को दूसरों पर फैलाने की संभावना कम होती है। जर्मन स्कूलों के एक विश्लेषण में पाया गया कि स्कूलों के बड़े बच्चों और वयस्कों की तुलना में 6 से 10 वर्ष की आयु के बच्चों में संक्रमण कम पाया गया। अध्ययन में कहा गया है कि उम्र बढ़ने के साथ संचार करने की क्षमता बढ़ जाती है और किशोरों में वायरस के संचारित होने की संभावना अधिक होती है। अध्ययन में कहा गया है कि किशोर छात्रों और शिक्षकों को इससे बचने के लिए मास्क पहनना चाहिए।
अमेरिका में 12–17 वर्ष की आयु के बच्चों में संक्रमण की दर दोगुनी है। ब्राउन विश्व विद्यालय की अर्थशास्त्री एमिली ओस्टर ने स्कूलों के आंकड़े एकत्रित किए हैं। यह आंकड़े 47 अमेरिकी राज्यों के 200,000 स्कूली छात्रों से एकत्रित किए गए हैं। इसके अनुसार हाई-स्कूल के छात्रों में संक्रमण सबसे अधिक था, उसके बाद मिडिल स्कूल और फिर प्राथमिक स्कूल में। विक्टोरिया स्कूल के महामारी फैलाव संबंधी अध्ययन में शामिल मेलबर्न विश्वविद्यालय के बाल रोग विशेषज्ञ फियोना रसेल कहते हैं, आमतौर पर बच्चे सामान्य स्कूली माहौल में नहीं होते हैं। इसके बजाय वे मास्क पहनने और अन्य सावधानियों का कड़ाई से पालन करते हैं। इसीलिए छोटे बच्चों में नए कोरोनोवायरस के फैलने की संभावना कम होती है।