मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के शोधकर्ता प्रोटीन के एक टुकड़े 'पेप्टाइड' पर परीक्षण कर रहे हैं, जो कोरोनावायरस कोविड-19 को फेफड़ों की कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोक सकता है। यह दवा कोविड-19 से निपटने में मददगार हो सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह दवा एक छोटा प्रोटीन का टुकड़ा, जिसे पेप्टाइड कहते है, जोकि मानव कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले प्रोटीन की तरह दिखता है। उनके अनुसार यह पेप्टाइड उस वायरल प्रोटीन को रोक सकता है जिसका उपयोग कोरोनावायरस मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए करता है। इसकी मदद से कोरोनावायरस को शरीर में फैलने से पहले ही रोक सकते हैं| एमआईटी में केमिस्ट्री के एसोसिएट प्रोफेसर ब्रैड पेंटेल्यूट, जो इस शोध का नेतृत्व भी कर रहे हैं, ने बताया कि यह एक ऐसा योगिक है जिसे हम ढूंढ रहे थे, क्योंकि यह कोरोनावायरस से सम्बंधित प्रोटीन से उसी तरह प्रतिक्रिया कर रहा है जैसा हमने इसके बारे में सोचा था। यही वजह है कि इसकी मदद से कोरोनावायरस को सेल में प्रवेश करने से रोका जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पेप्टाइड के नमूने मानव कोशिकाओं पर परीक्षण करने के लिए भेज दिए हैं। एमआईटी द्वारा किये जा रहे इस शोध से जुड़े प्रारंभिक निष्कर्ष 20 मार्च को एक ऑनलाइन प्रिपरेशन सर्वर, बायोरेक्सिव पर डाले गए हैं। हलांकि उसकी अभी तक वैज्ञानिकों या चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा नहीं की गयी है।
मार्च की शुरुआत से ही पेंटेल्यूट लैब ने इस परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया था। जब से पता चला है कि यह वायरस बीमार व्यक्ति के सेल्स को अपने ट्रिमेरिक स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन के माध्यम से जोड़ लेता है। साथ ही उस शोध में यह भी पता चला था कि कोविड-19, सार्स वायरस की तुलना में 10 गुना अधिक मजबूती से होस्ट सेल्स में चिपक जाता है। उसमें यह भी पता चला था कि यह वायरस होस्ट के किसी विशिष्ट हिस्से में 'रिसेप्टर' से जुड़ जाता है। यह रिसेप्टर, मानव कोशिकाओं की सतह पर पाया जाता है, जिनमें फेफड़े भी शामिल हैं।
यह जानने के बाद पेंटेल्यूट की लैब में सिमुलेशन की मदद से उस स्थान का पता लगाया गया जहां कोरोनावायरस ग्लाइकोप्रोटीन की मदद से अपने आप को होस्ट सेल के रिसेप्टर से जोड़ लेता है। साथ ही यह भी पता चला की यह दोनों आपस में किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं। यह जानने के बाद इससे निपटने के लिए लैब ने पेप्टाइड सिंथेसिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया, जो उन्होंने पहले ही विकसित कर रखी थी| इसकी मदद से उन्होंने उस पेप्टाइड का निर्माण किया जो इस वायरस के ग्लाइकोप्रोटीन को बांध सकता है| साथ ही यह कितनी मजबूती से उसे रोक सकता है, इस बात की भी जांच की गयी है| इसे समझने के लिए उन्होंने 100 से भी ज्यादा प्रकार के पेप्टाइड का निर्माण किया है| इसके बारे में प्रोफेसर पेंटेल्यूट ने बताया कि हमें पूरा भरोसा है कि हम वास्तव में जानते हैं कि यह अणु शरीर में कहां प्रतिक्रिया करते हैं| हम इस जानकारी की मदद से इस वायरस को शरीर में प्रवेश करने से रोक सकते हैं| गौरतलब है कि शोधकर्ताओं ने उस पेप्टाइड को लैब में भेज दिया है जहां इसे ह्यूमन सेल्स और कोविड-19 से संक्रमित जानवरों पर टेस्ट किया जा सकता है| उनका मानना है कि पेप्टाइड्स के अणु बड़े होते हैं, इसलिए वे कोरोनावायरस पर पकड़ बना सकते हैं और उसे कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोक सकते हैं| जबकि यदि आप एक छोटे अणु का उपयोग करते हैं, तो यह वायरस के पूरे क्षेत्र को अवरुद्ध नहीं कर पाते हैं| हालांकि एंटीबॉडी की सतह भी बड़ी होती है, इसलिए वे भी इसे रोकने में उपयोगी साबित हो सकते हैं। पर उसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है की वो खोज और निर्माण में अधिक समय लेते हैं। जबकि ऐसी दवाओं का फायदा यह है कि उन्हें बड़ी मात्रा में निर्मित करना अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा आसान हैं।
पेप्टाइड दवाओं का सबसे बड़ा दोष यह है कि उन्हें आमतौर सीधे तौर पर नहीं खाया जा सकता, उन्हें शरीर में इंजेक्ट करना पड़ता है| साथ ही उसमें बदलाव करने की भी जरुरत है जिससे वो ज्यादा समय तक ब्लड में रह सके और अधिक प्रभावी हो सके| वर्तमान में लैब इस पर भी काम कर रही है। प्रोफेसर पेंटेल्यूट के अनुसार "यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि हम कब तक रोगियों पर इस दवा का परीक्षण कर सकेंगे| लेकिन मेरा उद्देश्य है कि अगले कुछ हफ्तों में हम ऐसा कर सकें|" दुनिया भर में यह वायरस 6 लाख से भी ज्यादा लोगो को अपनी चपेट में ले चुका है, साथ ही इससे अब तक 27,456 लोगों की जान जा चुकी है| ऐसे में यदि जल्दी ही इससे निपटने के लिए कोई दवा नहीं आती, तो इससे मरने वालों का आंकड़ें इससे कई गुना ज्यादा हो सकता है|