आंवला के पावडर और तुलसी के रस का नियमित सेवन से फ्लोरोसिस के शुरुआती चरण में काफी लाभ हो सकता है। यह जानकारी पटना महिला महाविद्यालय में हुए कुछ शोधों से निकल कर सामने आयी है। महाविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग में पिछले कुछ सालों से लगातार पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा से होने वाले रोगों के संबंध में चल रहे हैं। इन्हीं शोधों से यह जानकारी निकल कर आयी है। इस जानकारी से राज्य के फ्लोराइड अधिकता वाले ग्यारह जिलों के निवासियों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
पटना महिला महाविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग की अध्यक्ष शाहला यास्मीन बताती हैं कि यहां उनके निर्देशन में 2011 से ही फ्लोराइड की अधिकता से होने वाले रोगों को लेकर शोध चल रहा है। उन लोगों ने गया जिले के फ्लोराइड प्रभावित इलाकों के 53 लोगों को दो हिस्से में बांट कर प्रयोग किया, इनमें 27 लोगों को आंवले का चूर्ण खिलाया, 26 को नहीं खिलाया। प्रयोग में उन्होंने पाया कि आंवला खाने वाले लोगों के मूत्र में फ्लोराइड की मात्रा कम पायी जा रही है। सुमित रंजन के साथ किया गया उनका यह शोध करंट साइंस नामक पत्रिका में उस वक्त प्रकाशित हुआ था।
इस साल उनकी छात्राओं ने ड्रोसोफिला नामक मक्खी पर जो फ्लोराइड युक्त वातावरण के प्रभाव में थीं, तुलसी के रस का प्रयोग किया। इस प्रयोग में पाया गया कि तुलसी रस के सेवन की वजह से इन मक्खियों के मूवमेंट में और जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी हो रही है। प्रो शाहला कहती हैं कि फ्लोराइड युक्त आहार लेने से इन मक्खियों की उम्र घटकर आधी हो जाती है। मगर जब उन्हें तुलसी का रस दिया जाता है तो उनके जीवन काल में आठ फीसदी तक की वृद्धि होती है। फ्लोराइड युक्त भोजन से ये मक्खियां सुस्त हो जाती हैं, मगर तुलसी के रस के सेवन के बाद इनकी सुस्ती में भी कमी दर्ज की गयी है। इस प्रयोग के नतीजे को उनके विभाग की छात्राएं 27 मार्च को गया में होने वाले इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन ह्यूमन एप्लीकेशन ऑफ बायोटेक्नोलॉजी में प्रस्तुत करेंगी।
इन दोनों शोधों के आधार पर ऐसा माना जा रहा है कि आंवला और तुलसी के सेवन से फ्लोरोसिस के पहले चरण से प्रभावित लोगों को लाभ हो सकता है। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बिहार के ग्यारह जिलों के 4157 टोले फ्लोराइड युक्त जल का सेवन कर रहे हैं। इन टोलों के ज्यादातर लोग फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं। कई गांवों में तो फ्लोरोसिस की वजह से लोगों की हड्डियां तक टेढ़ी हो जा रही हैं और वे विकलांगता के शिकार हो जा रहे हैं।
प्रो शाहला कहती हैं, डेंटल और स्केलेटल फ्लोरोसिस के मामले में तो आंवला और तुलसी का सेवन बहुत कारगर नहीं हो सकता, मगर जो लोग नॉन स्केलेटल फ्लोरोसिस के शिकार हैं और जहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत अधिक नहीं है, वहां के लोगों के लिए यह उपाय लाभदायक हो सकता है।
इसके अलावा विभाग ने हाल ही में एक अन्य शोध भी किया है। इस शोध के मुताबिक चॉक के पावडर और ईंट के चूर्ण से भी फ्लोराइड युक्त जल को साफ किया जा सकता है। वे रॉक सॉल्ट के अधिक सेवन को भी खतरनाक बताती हैं। वे कहती हैं कि रॉक सॉल्ट में फ्लोराइड की मात्रा काफी अधिक 157 पीपीएम होती है, इसके अधिक सेवन से भी फ्लोरोसिस का खतरा रहता है।